बहरुपिया
बहरुपिया


भगवान विष्णु ने आज नगर भ्रमण की सोची और पैदल ही चल दिए ये मेरे संसार की हालत क्या हो गई मैं कैसा भगवान और कहां छुपा इंसान। कुछ इक्का दुक्का लोग रास्ते पर दिखे लेकिन सब दुखी थे। एक वर्दीधारी से पूछा भाई अब तो तू सुखी होगा कोई घर से निकल ही नहीं रहा तो चोरों के पीछे भागना नहीं पड़ रहा होगा। खाक सुखी हूँ मेरी तो सारी कमाई सूखगी तुम सुखी होने की बात कर रहे हो। भाई मेरे तुम भी फालतू में मत घूमो घर जाओ। भगवान सब सुन कर आगे बढ़े तो एक डाक्टर मिल गया उससे पूछा डाक्टर भाई साहब आप सुखी तो है। हे भगवान इस समय आप सुखी होने की बात मत करिये ये पोशाक दस्ताने मास्क पहनकर चार घंटे क्या कुछ ही देर में भाग जाओगे। यह साल तो सर्वाधिक दुखमय बीत रहा है बेटी की शादी नहीं हो पा रही बेटे की नौकरी चली गई नर्सिग होम चल नहीं रहा। भगवान भी जमीन पर आ जाय तो उन्हें भी पता चले कैसे जी रहे हैं हम। हर काम डर डर के करना पड़ रहा है। भाईसाहब लगता है आप सब से सुखी है तभी आप सबसे पूछ रहे हैं। भगवान ने ठहरना की नहीं समझा सोचा कल जरा गेटप बदल कर सर्वे किया जाय चलते चलते एक रजिस्टर खरीद लिया और विष्णु लोक वापस आ गये।
सुबह ही राम के गेटप में अयोध्या की ओर प्रस्थान किया । एक घर का दरवाजा खटखटाया दरवाजे की झिरी में से झांकती हुई महिला बोली बहरुपिए क्या काम है। गेट से हाथ दूर रखो बाहर सेनिटाइजर रखा है उसे हाथों से मसल दो और फिर बताओ अपने आने का प्रयोजन। भगवान ने लपककर सुगंधित द्रव्य को हाथों पर मला और महिला की और मुखातिब हुए बहन आप सुखी है और ये राम मंदिर निर्माण से क्या आप प्रसन्न हैं। देखो भाई चूल्हे पर दाल चढ़ी है महिलाओं से सुखी होने का प्रश्न ही गलत किया है। वे जा संसार में सबसे ज्यादा दुखी हैं महिला आंखों में आँसू भर लाई कोई एक दुख हो तो कहूं। ना ब्यूटी पार्लर जा पा रही ना मेकप कर पा रही सब तो जा मास्क में ढक जाता सभाओं सुंदर सो मुखड़ों किटी पार्टी करें चार महीना हो गए। महिला से के पड़ोसिनों से बात ना हो पा रही थे तो सब से बड़ों दुख से हमाय लाने। भाई थे बताओ रामलीला बारे के पास और कोई आदमी नहीं जो राम को खुद ही चंदा मागनो पड़ रयो है। राम मंदिर बनो जा रहो है अयोध्या की भी कायाकल्प हुई जायेगी। अच्छा जे बताओ आप राम बने घर घर घूम रहे हो ऐसों रिस्क मत उठाओ रामलीला वारे ने पेमेंट ना दई का और सौ का नोट राम के गेटअप में खड़े भगवान की तरफ बढ़ा दिया। और दरवाजा बंद कर लिया। तभी सामने शिव जी प्रगट हो गए वाह प्रभू ऐसे समय में भी सौ रुपए की बोहनी हो गई। आप धरती पर करता कर रहे हैं प्रभू में पृथ्वी पर एक राक्षस का आतंक फैला है उसी को ढूंढने आया था पर वो तो जाजाने कहाँ छुपा बैठा है इसकी वजह हर इंसान घरों में दुबका पड़ा है।
सुना है आप के मंदिर का शुभारंभ किया जाना तय हुआ है आने वाले पांच ताकों सारे देश वासी एक बार फिर दीपावली मनायेंगे कम से कम एक दिन खुशियों वाला आयेगा जिसकी दिन लोग दीप जला कर खुश हो लेंगे। शिव जी इस समय राक्षस के आगे त्रिशूल , चक्, गदा सब नाकाम हो रहे हैं। ये तो अमरत्व प्राप्त राक्षस देश विदेश सब जगह एक ही समय में व्याप रहा है।
खैर ! छोड़ो लक्ष्मी जी को भी एक बार पूछ लीजिए की वे आपके मंदिर बनने से प्रसन्न हैं की नहीं सही याद दिलाया में अभी क्षीर सागर ही जा रहा हूँ लक्ष्मी तो आजकल कुछ बात ही नहीं कर रही है हर समय चरण दबाना तो दूर मास्क लगाकर दूर से ही बात करती है। पृथ्वी पर तो सब मास्क लगाकर ही रहे हैं स्वर्ग ही अब अछूता नहीं है इंसान को सुखी खोजने निकला था पर सुख तो स्वर्ग से भी गायब हो गया लगता है इस राक्षस के आ जाने से।