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Rekha Bora

Tragedy

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Rekha Bora

Tragedy

भ्रष्टाचार

भ्रष्टाचार

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अरे मैडम जी.. ये जो आँकड़े आप एकत्रित कर रही हैं न..यह सत्य थोड़े ही हैं..झूठ की बुनियाद पर टिके हैं यह..सब रटे-रटाये वाक्य दोहरा रहे हैं।

इस भारी आवाज़ के साथ ही भारी बूटों की आवाज़ भी मेरे कानों में पड़ी। अंदर तक सिहर गयी मैं तो। ..सफ़ेद साड़ी, भारी बूट पहने, ललाट पर काला टीका लगाये और कंधे पर बंदूक टाँगे एक महिला अभिवादन करते हुए मेरे सामने आकर खड़ी हो गयी ।

मैं, जल्दी-जल्दी परिवार नियोजन व परिवार कल्याण से सम्बन्धित आँकड़ों के सत्यापन का कार्य समाप्त करने में लगी हुई थी। यह कार्य मैं एक दस्यु प्रभावित क्षेत्र में करने गयी हुई थी। हालांकि मेरे साथ जिला अस्पताल का स्टाॅफ और गाड़ी भी थी और उनकी तथा गाँव वालों की सलाह के अनुसार मुझे सूर्य डूबने से पूर्व ही अपना कार्य समाप्त करके गाँव से बाहर निकल जाना चाहिए।

मैंने घबराकर उस अजीब वेशभूषा वाली महिला की ओर देखा। मेरी आँखों में प्रश्नचिन्ह देख कर वह महिला ठहाका लगाकर बोली..मैडम जी जिसके कार्यों की पड़ताल आप कर रही हैं न..मैं वही हूँ। मैंने आश्चर्य से उसकी और उसकी वेशभूषा की ओर देखा तो हँसकर बोली..क्या देख रही हैं मैडम जी यह वेशभूषा मुझे मजबूरी में अपनानी पड़ी..वरना मेरा तो कब का राम नाम सत्य हो गया होता।

मैं विभाग की एक ईमानदार कार्यकत्री थी..पर भ्रष्टाचार में लिप्त विभाग की मर्जी के अनुसार नहीं चलती थी.. न ही रिश्वत और कमीशन देती थी।परिणाम यह हुआ कि भ्रष्टजनों द्वारा मेरा वेतन रोक दिया गया..मुझ पर दोषारोपण करके मुझे मीटिंग्स में जलील किया जाने लगा । मेरी प्रोन्नति रोक कर मुझे नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया..मेरे बच्चों का स्कूल छूट गया..घर में भोजन के लाले पड़ गये..पति तो पहले ही स्वर्ग सिधार चुके थे..सहारा देने वाला कोई नहीं बचा था।

आवाज़ उठाने गयी तो मार पीट कर जबरदस्तीे ज़हर मेरे गले में उतार दिया गया। पर मैं मजबूत जान पोस्टमार्टम हाउस में ही होश में आ गयी।

कितने ही वकीलों के चक्कर काटे पर पैसे के अभाव में कोई भी मेरा केस लड़ने को तैयार नहीं हुआ। फिर एक देवतातुल्य वकील साहब मिले जिन्होंने मेरी तकलीफ समझी और बिना पैसों के मेरा केस लड़ा और मुझे मेरी नौकरी और प्रोन्नति दोनों दिलवाये। साथ ही उन भ्रष्टाचारियों को कठोर सज़ा भी दिलवाई ।

तब से मैं इस खराब व्यवस्था के खिलाफ़ बंदूक उठाकर खड़ी हो गयी हूँ। पर गलत काम आज भी नहीं करती हूँ । अपना कार्य उसी ईमानदारी से करती हूँ । यह बंदूक तो अब मेरी हिफाज़त के लिए है । आज भी कुछ बदला नहीं है। एक जाता है दूसरा आता है और भ्रष्टाचार.... भ्रष्टाचार आज भी उसी गति से चल रहा है।

मैंने प्रश्नचिन्ह वाली नज़रों से अपने साथ आये हुए स्टाॅफ की ओर देखा तो उनकी आँखों में महिला की बातों के प्रति पूर्ण समर्थन देखकर मैं सोचने पर मजबूर हो गयी कि कैसा भ्रष्टाचार है यह ..जिसने एक सीधी-सादी ईमानदार कार्यकर्ता को बंदूक उठाने पर मजबूर कर दिया ?


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