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अरविन्द कु सिंह

Abstract

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अरविन्द कु सिंह

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भरोसा

भरोसा

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इस सप्ताहांत रात को ग्यारह बजे सोशल साइट देखते हुए एक खुबसूरत महिला की फ्रेंड रिक्वेस्ट देखा तो फौरन स्वीकार कर लिया।।

तभी उधर से सवाल आया ,"पहचाना ?"

ध्यान से देखा तो पहचान गया। वह मेरे कॉलेज के समय की दोस्त थी, जो कॉलेज की सबसे खूबसूरत लड़की हुआ करती थी और सारे लड़के जिसके दीवाने हुआ करते थे। उन दीवानों में मैं भी था।।इतने समय बाद उसको देख कर मन दबी हसरतें मचल गईं।आज भी वह बेहद खूबसूरत लग रही थी, बड़ी बड़ी आंखें, गोरा दमकता रंग, गुलाबी होंठ ,नर्म मुलायम हाथ।।।

फिर हाय,हैलो के बाद चैट का सिलसिला चल पड़ा।।अतीत और वर्तमान की बहुत सारी बातें शेयर करने के बाद मन के किसी कोने में दबी इच्छा जोर मारने लगी थी कि.........

अचानक मेरे पीछे से कुछ छु गया।। 

मुड़ कर देखा तो वह एक स्त्री शरीर था।। 

अपने सांवले चेहरे पर अपनी रुखी,बेरौनक हथेली रखे बहुत ही सुकून से हो रही रही थी वो। एक खट पर जग जाने वाली वो, इतनी निश्चिंतता से सोई थी कि उसे न तो अपने अस्त व्यस्त कपड़ों की परवाह थी, ना ही अपने अर्द्ध अनावृत शरीर की।। 

और फिर मेरे मन में सवाल उठा।।

कोई स्त्री इतनी बेपरवाही से किसी मर्द के बिस्तर पर कैसे हो रही है? क्यों उसे अपने माता-पिता, भाई-बहनों से दुर इस सुनसान अकेले घर में कोई डर नहीं है। 

ज़बाब था - क्योंकि उसे मुझपर खुद से ज्यादा भरोसा है। इसी भरोसे तो वह सभी अपनों को छोड़ कर मेरे पास आई है।और अभी मेरे पहलू में है,बिना किसी डर ,बिना किसी संकोच के।

अपने मोबाइल पर स्क्रोल करते हुए भी मैंने जब अपने बगल में उस अस्त व्यस्त स्त्री शरीर,दुनिया के सबसे खूबसूरत सांवले सलोने चेहरे और दिन भर मेरी फरमाइशें पुरी करने वाले दुनिया के उन सबसे खूबसूरत हाथों को देखा तो सोशल साइट वाला चेहरा मुझे फीका लगने लगा।

जी हां,वो शरीर,वो हाथ ,वो चेहरा मेरी पत्नी के थे।

बिना एक पल सोचे मैंने अनफ्रेंड वाला बटन क्लिक किया, मोबाइल बंद किया और सुकून की नींद सो गया।

यकीन मानिए उस रात मुझे बहुत अच्छी नींद आई।।


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