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अरविन्द कु सिंह

Inspirational

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अरविन्द कु सिंह

Inspirational

गुन्डे की बेटियाँ

गुन्डे की बेटियाँ

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रास्ते में चलते हुए मीरा ने अपने पति राजेश से पुछा था-" वह गुन्डा हमें अपनी बेटियों को घर लाने देगा ना?"

"पता नहीं।" राजेश ने कहा-" वैसे भी पक्का नास्तिक है। ना पूजा पाठ करता है, ना कभी मंदिर जाता है, ना अपनी बेटियों को मंदिर जाने देता है। किसी से सीधे मुँह बोलता भी नहीं।

काम धंधा तो करना नहीं ,बस आवारागर्दी और लफंगई करता है। लेकिन अपने मोहल्ले में लड़कियाँ हैं नहीं तो उसके यहाँ जाना मजबूरी है वर्ना नवरात्रि में उस नास्तिक का मूँह देखना भी पाप है।"


नवरात्रि चल रही थी। चारों ओर दुर्गापूजा की धूम मची हुई थी।

ऐसे में शहर के बहुत ही संभ्रांत, पढ़े लिखे और धार्मिक प्रवृति के पति-पत्नी मीरा और राकेश ने बहुत ही श्रद्धा से नवरात्रि का व्रत रखा था। आज नवमी तिथि को दोनों ने कन्या पूजन की तैयारी की थी। 

ढेरों पकवान बनाये थे और कन्याओं को देने को महँगे वस्त्र भी खरीदे थे। 

उनके दो बेटे थे। बेटी कोई न थी।

चूंकि मोहल्ले में लड़कियां कम थी तो दोनों मोहल्ले से बाहर रहने वाले 'उसके' पास जा रहे थे जिसकी कुल ग्यारह बेटियाँ थी और जिसको सारे लोग 'गुन्डा' के नाम से जानते थे।

बेटे की आस में उसने ग्यारह बेटियाँ पैदा की थी, ऐसा सबका मानना था और इसीलिए सब उसे जाहिल, गँवार और असभ्य मानते थे।

किसी से भी लड़ाई कर लेना और बात बात पर चाकू दिखाना उसकी आदत थी। सारे लोग उससे डरते थे और उससे तथा उसकी बेटियों से दूर ही रहते थे।


राजेश-मीरा को कन्या पूजन के लिए उसकी बेटियों को घर पर निमंत्रण देना था।

वहाँ पहुँचने पर देखा कि कई लोग उसकी बेटियों को न्योतने आए थे- कोई एक को तो कोई पाँच को।

लेकिन उस 'गुन्डे' ने अपनी बेटियों को पूजा में भेजने से मना कर दिया था और अपना चाकू लेकर दरवाजे पर बैठा था।


किसी की कुछ बोलने की हिम्मत नहीं पड़ रही थी। सब उसकी क्रूरता के कारण डर रहे थे। आखिर छँटा हुआ गुन्डा था वो।

जब किसी तरह बात नहीं बनी तब आखिर राजेश ने हिम्मत करके उससे कहा-"मैं तुम्हारी पत्नी से बात करता हूँ। तुम

देवी पूजा मे बाधक क्यों बन रहे हो?"

"किसकी पत्नी की बात कर रहे हो आप? मेरी तो अभी शादी ही नहीं हुई।" उसने दहाड़कर कह

ा।

सबको बहुत आश्चर्य हुआ।" फिर ये बेटियाँ किसकी हैं?"

पुछने पर उसने कहा

 "बेटियाँ तो सभी मेरी हैं, बस मैंने इन्हें पैदा नहीं किया। यह सारी मुझे कचरे के ढेर में और नालियों में पड़ी मिली हैं जिनको आप जैसे सभ्य लोगों ने बेटे की चाह में जन्म लेते ही फेंक दिया था।

मैंने उनको पाला है। और इसीलिए मैं नास्तिक हूँ क्योंकि आस्तिक लोग ऐसे होते हैं तो मुझे नहीं करनी किसी भगवान की पूजा।

वो जो लंगडा कर चल रही है ना वो मेरी सबसे प्यारी बेटी है। उसे मैंने दुर्ग पुजा के पंडाल में पड़ सुटकेस से पाया था। सुटकेस तो मैंने लालच में उठाया लेकिन उसके अंदर यह मिली जिसकी माँ ने सुटकेस मे डालने के लिये उसका एक पैर तोड़ दिया था। उस सदमे मे यह आज तक नहीं बोल पाती।"

उसने आगे कहा-"आपलोग मुझे गुन्डा कहते हैं लेकिन मैं इन बिन माँ बाप की बच्चियों की समाज के राक्षसों से बचाने के लिये गुंडा बना हूं। हाँ मैं गुंडा हूँ और बच्चियों को मन्दिर नहीं जाने देता क्योंकि वहाँ भी धर्म की आड़ में कई नरपिशाच बैठे हैं।

मैं अकेले इन बच्चियों का पालन कर रहा हूँ लेकिन किसी की मजाल नहीं जो मेरी बेटियों को गलत निगाह से देख ले।"

राजेश को सात साल पहले की घटना याद आ गई जब उसने बेटी होने पर उसे सुटकेस मे भर कर पुजा पंडाल मे छोड़ दिया था।

उसका कलेजा मुंह को आ गया जब उसने उस लंगड़ाती बच्ची को देखा।

बाकी सभी के सिर भी शर्म से झुक गये थे क्योंकि उन्होंने उसके बारे में बहुत गलत सोचा था। राजेश सोच रहा था- असली जाहिल और गँवार कौन था?

कि तभी उसने अचानक कहा " ले जाइए राजेश बाबू कन्या पूजन के लिए मेरी बेटियों को।

इसलिए नहीं भेज रहा कि मुझे आपकी पूजा से कोई मतलब है बल्कि इसलिए भेज रहा हूँ क्योंकि आप अच्छे आदमी हैं और मेरी बेटियों को बहुत दिन बाद अच्छा खाना खाने को मिल जाएगा।"

राजेश को उसका उसे अच्छा आदमी कहना चुभ रहा था कि तभी वह चाकू दिखाते हुए वोला - "और हाँ, खबरदार राजेश बाबू , ध्यान रखना उनका। मेरी बेटियों को खरोच भी आयी तो मैं आपकी जान ले लूँगा। याद रखना ये 'गुन्डे की बेटियाँ' हैं।"

सचमुच बहुत बड़ा गुन्डा था वह।।।।

बदतमीज, बदमिजाज, और गँवार भी।

!!!!जाहिल कहीं का!!!!!



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