भरोसा
भरोसा
ऑफिस से लौटे प्रसाद ने देखा, ईशा अपने मोबाइल फोन में कुछ टाइप करने में व्यस्त थी। वो घर के अंदर दाखिल हुआ पर ईशा अब भी अनजान थी। उसने जूते उतारते हुए ईशा से पूछा," ईशु बेटा, मम्मी कहाँ है???"
ईशा तो जैसे अपनी ही दुनिया मे थी,उसने प्रसाद की आवाज़ सुनी ही नहीं थी। जब प्रसाद ने दोबारा थोड़े ज़ोर से वही सवाल दोहराया, तो ईशा ने मोबइल नीचे रखते हुए कहा," हां पापा, आप क्या कह रहे थे?? सॉरी मैं अपने फ़्रेंड ज्योति से बात कर रही थी"।
प्रसाद ने अपना सवाल एक बार फिर दोहराया और जवाब में पाया पत्नी मधु पड़ोस वाली विभा आँटी के साथ सब्ज़ी लेने गई थी।
फ़्रेश होकर जब प्रसाद दोबारा लिविंगरूम में लौटा तो देखा ईशा टीवी के सामने बैठी थी,हाथ मे टीवी का रिमोट था, लेकिन वो टीवी की ओर नही देख रही थी। वो कुछ सोच रही थी शायद,जैसे किसी गहन विचार में डूबी हो। प्रसाद के आने का एहसास होते ही वो टीवी के चैनल्स बदलने लगी।
प्रसाद कुछ कहते इससे पहले ही मधु सब्ज़ी लेकर घर लौट आयी थी।
"आप आ गए ?? मुझे थोड़ी देर हो गईं, वो विभा को कुछ सामान लेना था तो देरी हो गयी, बस अभी फ़्रेश होकर चाय रखती हूं" इतना कहकर वो रसोईघर की तरफ बढ़ गईं।
प्रसाद को ईशा कुछ परेशान सी लग रह थी,जैसे कोई बात उसे अंदर ही अंदर खाये जा रही हो। प्रसाद ने ईशा को बड़े नाज़ों से पाला था। ईशा की हर एक ख़्वाहिश उसने पूरी करने की कोशिश की थी। मधु से ज्यादा ईशा अपने पापा के ज्यादा करीब थी। अपनी लाडली को यूँ परेशान देख प्रसाद भी हैरान थे,ऐसा पहले तो कभी नही हुआ था।
तभी ईशा के मोबाइल की घंटी बजी। ईशा ने मोबाइल कॉल रिसीव किया और "हाँ, ज्योति बोलो" ,कहते हुए अपने कमरे में चली गई।
प्रसाद से रहा नही गया,वो सीधा रसोईघर की ओर बढ़ा, देखा मधु चाय बनाने में व्यस्त थी।
प्रसाद को देख मधु ने पूछा,"क्या बात है, भूक लग गई क्या?? चाय के साथ कुछ नाश्ता भी दे रही हूं"।
"नही, वो बात नही है, आज ईशा कुछ अलग सा बर्ताव कर रही है,कोई बात हुई है क्या??",प्रसाद ने पूछा।
मधु ने चाय छानते हुए कहा,"नही, मेरी तो उससे ऐसी कोई बात नही हुई है"।
"तुम ज़रा उससे पूछ कर देखो ना, आखिर पता तो चले क्या बात है?", प्रसाद ने मधु से कहा।
मधु ने चाय और नाश्ते की प्लेट प्रसाद के हाथ मे थमाते हुए कहा,"मुझे कभी कुछ बताती है वो??? हर बात आप ही से तो शेयर करती है,आप ही क्यूँ नही पूछ लेते उसे की क्या बात है" ।
बात करते करते दोनों रसोईघर से लिविंगरूम में आकर सोफ़े पर बैठ गये।
प्रसाद चाय पीते पीते कुछ सोचने लगा। थोड़ी देर में उसने मधु से कहा,"लेकिन कोई प्यार-व्यार का चक्कर हुआ तो ???
चढ़ती उम्र है,तुम आखिर माँ हो,तुम बात करोगी तो ठीक रहेगा"।
मधु ने कहा,"क्या आप भी!! ऐसी कोई बात नही है,अगर ऐसी कोई बात होती तो मुझे पता चल जाता, आप ऐसा वैसा कुछ सोचने से पहले उससे बात क्यूँ नही कर लेते??"।
"ठीक है,मैं ही करता हूँ उससे बात", कहते हुए प्रसाद ने चाय का कप मेज़ पर रखा और ईशा के कमरे की ओर बढ़ गया।
कमरे का दरवाज़ा खुला ही था,ईशा अपने बेड पर लेटे हुए कोई किताब पढ़ रही थी। प्रसाद ने खुले दरवाज़े पर दस्तक़ दी तो ईशा ने पलटकर देखा और पूछा,"अरे पापा आप?? कुछ चाहिए था??"
प्रसाद को ईशा के कमरे में दाखिल होते देख मधु भी अपने आप को रोक नही पायी,वो चुपके से कमरे के बाहर आकर खड़ी हो गई। वो देखना चाहती थी आखिर ईशा के मन मे क्या चल रहा है।
इधर कमरे में प्रसाद ने कहा,"नही बेटा, कुछ चाहिए नही,बहुत दिन हो गये अपनी बेटी से बैठकर कुछ बात नही की तो सोचा,चलो आज ही कुछ बातचीत हो जाये"।
थोड़ी देर इधर उधर की बातें कर प्रसाद ने ईशा से पूछा,"क्या बात है ईशा,आज तुम थोड़ी परेशान से लग रही थी?"
कोई बात हो तो बताओ बेटा"!!!
अपने से पापा से हर बात शेयर करने वाली ईशा ने खुलकर अपने पापा से बात करने की सोची।
ईशा ने कहा,"पापा,आप मेरी फ़्रेंड ज्योति को जानते है ना???"
प्रसाद ने जवाब दिया,"हाँ बेटा, बहुत अच्छे से जानता हूँ मैं ज्योति को, वो तो तुम्हारी सबसे अच्छी फ़्रेंड है ना???"
ईशा ने आगे कहा,"हाँ पापा, इसीलिए तो मुझसे अपनी सबसे प्यारी फ़्रेंड का दुख देखा नही जाता। दो साल पहले उसकी मम्मी का देहांत हो गया था,अब उसके पापा दूसरी शादी करने जा रहे है। जबसे उसने ये बात सुनी है वो बहुत परेशान है। पता नही उसकी नई मम्मी कैसी होंगी??? अभी तो वो अपने मम्मी के गुज़र जाने के ग़म से उभरी भी नही है,रोज अपनी मम्मी को बहुत याद करती है और अब ये सौतेली माँ की बात ने उसे बहुत डरा दिया है। आज भी बहुत रो रही थी वो पापा, मुझसे उसकी ये हालत देखी नही जाती"।
अपनी बात कहते कहते अचानक वो फूट फूटकर रोने लगी और अपने पापा हाथ पकड़कर कहने लगी,
" पापा, भगवान ना करें कभी ऐसा हो, लेकिन आप मुझसे वादा कीजिये, आप ज़िंदगी मे मेरे लिए कभी सौतेली मम्मी नही लाएंगे"।
अपनी बेटी की बात सुनकर प्रसाद ने उसे पुचकारते हुए कहा," अरे मेरी नादान बिटिया,ये कैसी बात कर रही हो???
मैं तो अपने बेटी को बहुत समझदार समझता था, मुझे तो लगता था,मेरी बेटी बड़ी हो गयी है,लेकिन तुम तो अभी भी बच्चों सी बातें कर रही हो"।
प्रसाद ने आगे कहा,"तुम्हें तो अपनी फ़्रेंड को समझाना चाहिए था, रिश्तों की बुनियाद तो भरोसे पर टिकी होती है,फिर इससे कोई फर्क नही पड़ता कि रिश्ता सगा है या सौतेला। अपने नई माँ को जाने बिना ही उसने कैसे सोच लिया कि वो उसे वैसा प्यार नही दे पाएगी जैसा उसकी अपनी माँ उससे करती थी। अपनी माँ को खोने का दुख तो उसे हमेशा ही रहेगा लेकिन हो सकता है एक नया रिश्ता इस दुख पर मरहम की तरह काम करे। ज़िंदगी मे सुख दुख तो आते जाते रहेंगे लेकिन भरोसा ही है जो हमे एक दूसरे से जोडे रखता है"।
इतनी देर से बड़े ध्यान से अपने पापा की बात सुन रही ईशा ने अपने आँसू पोछे और कहा, "पापा,सच कहूँ,इस तरह तो कभी मैंने सोचा ही नही था, थैंक्यू सो मच पापा, मैं कल ही ज्योति से मिलकर बात करती हूँ और आपने जो बातें मुझसे कही है उसे भी बताती हूँ, मुझे पूरा यकीन है आपका ये सकारात्मक पहलू वो ज़रूर समझेगी"।
अपने पापा को गले लगाते हुए आगे ईशा ने कहा, "पापा, आपकी ये सीख मैं ज़िंदगी भर याद रखूँगी"।
अपनी बेटी के सिर में पर प्यार से हाथ फेरते हुए प्रसाद ने कहा, "मेरी प्यारी बच्ची, नजाने क्या क्या सोचती रहती है। चलो, औऱ कोई बात मेरी बेटी को परेशान तो नहीं कर रही ना???"
फूल सी खिली ईशा ने कहा,"नही पापा,आपके होते हुए मुझे अब कोई टेंशन ही नही है"।
प्रसाद ने कहा," अच्छा तो अब तुम अपनी किताब पढ़ो,मैं चलता हूँ"।
इधर कमरे के बाहर से अब तक की सारी बातचीत सुन रही मधु की आँखों से ख़ुशी के आँसू बह रहे थे। उसने कभी सोचा भी नहीं था प्रसाद इस तरह से उसे और उसकी बेटी को अपना लेगें। मधु को अब यकीन हो चला था कि उसकी बेटी ईशा को कभी भी अपने सौतेले पिता प्रसाद का सच पता नही चलेगा और ना ही प्रसाद कभी उसे इस बात का अहसास होने देंगे।
ईशा के जन्म के चार दिन बाद ही उसके पिता अनुज की अकस्मात मृत्यु से मधु तो जैसे बेजान ही हो गयी थी और प्रसाद के रूप में उसे नया जीवन मिला था। प्रसाद ने ना सिर्फ बिखरती हुई मधु को संभाला बल्कि ईशा को भी पिता के रूप में एक सहारा दिया था। प्रसाद के कहने पर ही मधु ने अपनी बेटी ईशा से इतनी बड़ी बात छिपा कर रखी थी।
मधु भी आज जान चुकी थी, रिश्ते की नींव भरोसे पर ही टिकी होती है और भरोसे को किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती।
प्रसाद जब ईशा के कमरे से बाहर आए, देखा मधु वही खड़ी थी। मधु बहुत कुछ कहना चाहती थी, लेकिन वो कुछ कहती इससे पहले ही प्रसाद ने उसके होठों पर हाथ रखते हुए कहा," कुछ भी कहने की ज़रूरत नही है मधु, मैं जानता हूँ तुम क्या कहना चाहती हो"।
मधु ने भी आगे कुछ नही कहा,बस अपने प्रसाद के काँधों पर सिर रख दिया।