भोर भई
भोर भई
स्नेहा तैयार होकर आई तो देखा कि मीनाक्षी अभी भी उदास सी बिस्तर पर लेटी है।
"क्या बात है मीनू। इस तरह उदास रहने से क्या होगा ?"
मीनाक्षी वैसे ही लेटी रही। स्नेहा ने उसे उठाते हुए कहा।
"चलो उठो। नहा धोकर तैयार हो जाओ।"
मीनाक्षी ने हताशा से कहा।
"नहा धोकर क्या करूँगी। दिन भर सिर्फ एक मौका पाने के लिए प्रोड्यूसर्स के दफ्तर के चक्कर काट कर देर शाम निराश ही लौटना है।"
मीनाक्षी की निराशा भरी बात सुनकर स्नेहा उसके पास बैठ गई। उसे समझाते हुए बोली।
"अगर हिम्मत हारना था तो मम्मी पापा से इतनी बहस कर यहाँ क्यों आई थी। जिसे तुम सिर्फ एक मौका कह रही हो। वही आगे बढ़ने के रास्ते का दरवाजा खोलेगा। मीनू किसी भी चीज़ का मौका आसानी से नहीं मिलता है।"
"पर दीदी साल होने को आया पर कुछ भी हाथ नहीं लगा।"
"तुम्हें अपनी योग्यता पर भरोसा है ?"
"है दीदी पर...."
"तो फिर हर नए दिन को नई उम्मीद के साथ शुरू करो। कल बीती रात है। आज नया सवेरा।"
मीनाक्षी को अपनी बहन की बात से बल मिला। उसने अपनी बड़ी बहन को गले लगा लिया।