भीनी महक

भीनी महक

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मोहन जल्दी जल्दी तैयार हो रहा था। जल्दी से नाश्ता कर बड़ी उतावली से उसने अपना गुलाबों से भरा झोला उठाया। आज वैलेंटाइन डे है ना इसलिए उसे रोज़ से ज्यादा कमाई की उम्मीद थी इसलिए उसने आज लाल बत्ती पर कोई और सामान बेचने की बजाय सिर्फ गुलाब बेचने का सोचा था। 

तभी उसके सात वर्षीय बेटे ननू ने उससे पूछा," पापा, मैंने टीवी पर देखा था कि आज जिसे प्यार करते हैं उसे गुलाब देते हैं। पर आप तो सारे गुलाब झोले में भरकर जा रहे हैं। एक गुलाब तो आपको मां को देना चाहिए।"

ननु की बात सुनकर मोहन ठिठक गया और अपनी पत्नी रमा की ओर देखने लगा। मोहन दुविधा में था कि क्या जवाब दे, कैसे बताए बेटे को कि ये गुलाब उधार पर लाया था वो और रात का खाना उन सब को तभी मिल पाएगा जब वो ये सब बेच पाएगा।

रमा मोहन की दुविधा समझ रही थी पर बच्चे का मन भी रखना चाहती थी। फट से घर से बाहर निकली और किनारे से थोड़ी सी घास तोड़ लाई और मोहन के हाथ में देती हुई बोली," आम सा गुलाब नहीं चाहिए मुझे। ये तो सब देते हैं। मुझे तो इस घास से कोई फूल बना कर दो तो ही मैं लूंगी।"

मोहन ने भी जैसे तैसे गूंथ कर घास को फूल की शक्ल दी और बड़े प्यार से रमा के बालों में लगा दिया। ननु खुशी से तालियां बजा रहा था और मोहन रमा जैसा प्यारा जीवन साथी हर जन्म में मिले ये भगवान से प्रार्थना कर रहा था। घास के उस फूल की भीनी भीनी महक ने उसके जीवन को प्यार और खुशियों से भर दिया था।


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