भेड़ चाल
भेड़ चाल
"अजी सुनती हो! कहां हो?" संदीप ने अपनी पत्नी को आवाज लगाई।
"हां सुन रही हूं, रसोई में हूं कहिए," उनकी पत्नी माला ने जवाब दिया। एक कप चाय ले आओ। "ठीक है लाती हूं।"
" अभी थोड़ी देर पहले ही तो पी थी, लीजिए,पत्नी चाय का प्याला पकड़ाते हुए बोली।" इस घटना ने मेरा मूड ही खराब कर दिया।
"कौनसी घटना,?"
"तुम्हें आवाजें सुनाई नहीं दीं, तुम शायद पूजाघर में थीं ।अच्छाखासा अखबार पढ़ रहा था कि पीटो और पीटो का शोरगुल सुनकर घर से बाहर निकल गली के नुक्कड़ से आ रही आवाज़ों की तरफ दोडा तो पाया कि कुछ लोग किसी व्यक्ति को मारपीट रहें हैं।वो व्यक्ति अनुनय विनय कर रहा है कृपया मुझे छोड़ दीजिए ,मैं बच्चा चोर नहीं हूं।
मैं भीड़ को चीरते हुए व्यक्ति के पास जा पहुंचा,वो पोशाक से देहात से आया हुआ लग रहा था,थका हुआ मुरझाया चेहरा लिए था। मैंने उसके आगे खड़े होकर भीड़ से पूछा "क्यों मार रहे हो इसे, क्या हुआ है?" भीड़ से कई आवाजें उठीं ये" बच्चा चोर है।बच्चों को चुराने आया है।"
"नहीं साहब मैं बच्चा चोर नहीं हूं, मैं तो बच्चे से पता पूछ रहा था। मैं सात बजे की बस से गांव से आया हूं। रिक्शा के पैसे नहीं थे, पैदल आया हूं। ये जगह मेरे लिए नई है। मैं पता नहीं खोज पा रहा हूं। संपर्क करने के लिए मोबाइल फोन भी नहीं है मेरे पास। ये देखिए ना पर्ची मुझे यहां जाना है। यहां मेरे गांव के चाचा रहते हैं। मैंने बड़े लोगों से पूछा किंतु लोगों ने मेरा हुलिया देखा और अनदेखा कर चले गए। सोचा बच्चे से पूछ लेता हूं, बच्चे सरल हृदय होते हैं। मैं बच्चे से बात कर ही रहा था कि एक व्यक्ति चिल्ला कर बोला बच्चा चोर बच्चा चोर और देखते ही देखते भीड़ जमा हो गई। एक हाथ उठा फिर दूसरा फिर उठते ही चले गए।मेरी बात किसीने नहीं सुनी।
मैंने तुडीमुड़ी पर्ची पर लिखा पता पढ़ा वो जगह अपनी सोसायटी से थोड़ी दूर पर स्थित है। मैंने रिक्शा चालक को किराया दिया और उसे रवाना करके आ रहा हूं।आजकल लोगों को ना जाने क्या हो गया है। तुरंत बिना तहकीकात किये भीड़ में शामिल हो जाते हैं। भेड़ चाल की भी हद है।
हमसे तो देहात में रहने वाले लोग समझदार व संवेदनशील हैं।वे कमसकम किसी को तसल्ली से सुनते तो हैं।पता ठिकाना सही से बता दिया करते हैं।