भारतीय रेल, एक अनोखी यात्रा
भारतीय रेल, एक अनोखी यात्रा
आज रविवार का दिनरविवार था सो पढ़ने का मन नहीरूम में बैठा बैठा ऊंघ रहा थाफिर अचानक से मन में ख्याल आया कुछ लिखता हूं कविता लिखता हूं काफी कुछ सोचने के बाद भी लिख नहीं पायाअचानक ही मेरी नज़र मेरी डायरी पर पड़ी मेरी डायरी के कुछ पैन विखड़े पड़े थेकुछ पन्ने पलट रहा था मेरी नज़र मुर्झाया हुआ एक गुलाब के फूल पे पड़ी जो मेरी डायरी के पन्ने के बीच में पीस चूका था कुछ यादे ताजा हो गई ये किस्सा किसी और दिन। कुछ पन्ने और पलटे उन पनो के बीच में कुछ कीड़े भी सो रहे थे बरसो से
काफी दिनों बाद आज फिर डायरी लिखने बैठा।
30 सितम्बर 2016
आज सुबह से ही पटना का मौसम बेवफा थाकभी धुप तो कभी बारिश इस धुप और बारिश की लुकाछिपी की खेल से मैं बचते बचाते पटना जं पहुचा आधा भींग चूका थामैं अपनी शर्ट को ठीक ठाक करते हुए प्लेटफॉर्म नंबर 1 के छोटे से बेंच प बैठ के अपनी ट्रेन का इंतज़ार कर रहा था। दोपहर 1:20 होने वाले थे ट्रेन आने में अभी भी आधा घंटा से ज्यादा समय था ।
मैं चुपचाप बैठे हुए यही सोच रहा था कि काश मेरी सामने वाली बर्थ प एक सुन्दर सी लड़की हो तब यात्रा का कुछ आनंद आये।सोचने से क्या होने वाला था सोचता तो मैं हमेशा से यही थालेकिन मेरी किस्मत
ट्रेन की सिटी सुनाई दी और थोड़े ही देर में मैं अपने बैग के साथ अपने बोगी में था S6 64
मैंने अपने आगे पीछे देखा बगल में दो बुजुर्ग बैठे थे जो किसी राजनीतिक मुद्दे पे सरकार के खिलाफ अपना खुनुस निकाल रहे थेउनके सामने एक मोटी सी आंटी थी और उनके दो छोटे छोटे प्यारे बचे भीबाकि अपर बर्थ पे दो अंकल टांग पसारे पसरे हुए थे।
धत्त तेरी की इस बार भी वही हुआ जो हर बार होता हैये सोचते हुए अपना बैग फेक के अपना खुनुस निकाला और अपनी किस्मत को कोसते हुए खिड़की के बाहर देखने लगा । एक अंकल जी मेरे सामने आके बैठ चुके थे और बिना रुके धराधर फायरिंग किये जा रहे थेबेटा क्या करते हो क्या करना अपना एक लक्ष्य बनाओ एक विज़न होना चाहिएमैं उनसे बचने के लिए अपना मोबाइल निकाला और कान में हेडफोन डाल के फुल वॉल्यूम प नागिन डांस लगा दिया वैसे भी वो उस समय से दंश ही मार रहे थे मुझे।
अंकल जी अब चुप जहाँ तक मैं उनकी आखिरी लाइन मैं सुन पाया वो था मेरे जमाने में
ट्रेन अपनी रफ़्तार पकड़ चुकी थी अभी कुछ मिनट ही बीते थे तब तक आंटी के दोने नमूने मतलब बच्चे मेरे पास भैया मोबाइल में गेम प्ले करो नाएक बच्चा मेरे गोद में बैठ के फोटो देख रहा था और दूसरा मेरे कंधे पे बैठ के सवाल सवाल फेके जा रहा था ये क्या है ऐसा क्यों होता हैट्रैन क्यों नहीं चल रही और मेरी ट्रैन गांव शहर सबको छोड़ते आगे बढ़ रही थी।
रात के 8 बजने वाले थे और मेरी ट्रेन आसनसोल जं पे रुकी हुई थीएक बच्चा मेरी गोद में सो चूका था और दूसरा मेरे बर्थ पे आंटी आई उन बच्चो को उठाया और मुस्कुराते हुए पूछे ज्यादा परेशान तो नही किया ना आपकोमैंने भी हस्ते हुए कहा नही मुझे आदत है इसकी दरहसल मेरे भी दो छोटे छोटे भतीजे है।
ट्रैन अपनी पूरी रफ़्तार से छोटे छोटे पहाड़ो गांव शहर को छोड़ते हुए आगे निकल रही थी।सारे लोग खा पी के सो चुके थे और मैं अपनी नावेल हाफ गर्लफ्रेंड के साथ नज़रे जमाये हुए थाकिसी जगह प ट्रेन रुकी हुई थीतभी किसी की प्यारी सी आवाज़ आयी।
Excuse me !
मैं अपनी नावेल में खोया पड़ा था।
Hello
Excuse me !
थिस इस माय बर्थ !
इस बार मैंने अपनी नज़रे ऊपर उठाई सामने एक रेड टी-शर्ट वाइट जीन्स पहने हुई बाल थोड़ा विखड़े विखड़े से गोरा रंग कंधे पे एक बैग और नीचे ट्राली लिए हुए मेरी हमउम्र एक मोहतरमा मुझसे कुछ कह रही थी
Excuse me !
थिस इस माय बर्थ ! जारी है