PRIYARANJAN DWIVEDI

Drama

2.5  

PRIYARANJAN DWIVEDI

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भारतीय रेल, एक अनोखी यात्रा-2

भारतीय रेल, एक अनोखी यात्रा-2

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512


पार्ट -2

इस बार मैंने अपनी नज़रे ऊपर उठाई, सामने एक रेड टी-शर्ट वाइट जीन्स पहने हुई ,बाल थोड़ा विखड़े विखड़े से गोरा रंग कंधे पे एक बैग और नीचे ट्राली लिए हुए मेरी ह मउम्र एक मोहतरमा मुझसे कुछ कह रही थी

Excuse me !

थिस इस माय बर्थ !

पता नही क्यों अचानक ही मेरे चेहरे पे हलकी सी मुस्कुराहट बिखर गई,मैंने मुस्कुराते हुए पूछा

Can you show your ticket?

मेरे इतना कहते ही उसके चेहरे पे परेशानी दिखने लगी ,उसने अपनी वाइट जीन्स को बाये जेब से आई फ़ोन निकाला और मुझे दिखाते हुई बोली S6 63

मतलब उसकी बर्थ साइड लोअर थी और मेरी साइड अपर ,मैंने हलकी सी मुस्कुराहट देते हुए कहा मेरा बर्थ S6 64,

मेरा इतना ही कहना था तब तक उसने कहा।

सॉरी, सॉरी

आप बैठ सकते हो।

इसके जबाब में मैंने अपना बैग अपर बर्थ प रखा और उसे बिना देखे अपने बर्थ प चला गया।

रात के 10 बजने वाले थे ,मैं अपनी नावेल में खोया पड़ा था,बोगी की बतियाँ लगभग बूत चुकी थी।

Excuse mell

Can I turn off the light?

मैंने मन ही मन बोला इसका नाम Excuse me रख देता हूं।

मैंने अपने हाथ से इशारा किया बंद कर दो।

ट्रेन की रफ़्तार के साथ साथ अब उसकी आवाज़ भी बढ़ चुकी थी,बोगी के सारे लोग लगभग सो चुके थे और मैं अपनी बर्थ पे करवटे बदल रहा था,पता नहीं कब नींद आई

सुबह जब नींद खुली मोबाइल देखा तो 7 बज रहे थे,ट्रेन के शौचालय के के दरवाजे पे लोगो ने ऐसी लाइन लगा रखी थी जैसे जियो का सिम मुफ्त में मिल रही हो ,खैर मुझे उस लाइन में कोई दिलचस्पी नही थी,मैंने एक ठन्डे पानी की बोतल खरीदी और चेहरा धोया,सामने बर्थ प देखा तो वो लड़की एक पतला सा शॉल ओढ़े सो रही थी,वह शायद उठ के फ्रेश हो चुकी थी, वह अपने आप को आधी बर्थ तक ही सीमित रखी थी,मानो आधी मेरे लिए छोर रखी हो।

मैं खिड़की के बाहर देखने लगा,बाहर का दृश्य बहुत ही मनमोहक था,ऊँचे ऊँचे पहाड़ पहाड़ बादलो को छू रहे थे,छोटे छोटे हरे भरे खेत,कुछ चिड़ियों का झुण्ड आकाश में उड़ता हुआ दिखाई दे। रहा था,मानो परिंदे भी सुबह सुबह अपने काम प जा रहे हो,

मैं इस ख़ूबसूरत पल को अपने कैमरे में कैद करने ही वाला था कि सहसा मेरी नज़र सामने बैठी मोहतरमा पे चली गई,जो अभी भी आँखे बंद कर सो रही थी,गेरुवा रंग ,चेहरे पे न कोई शिकन,जुल्फे थोड़ी बिखड़ी बिखड़ी सी ,हलकी हलकी सुनहली धुप जब उसके गेरुवे रंग की चेहरे पे पर रही थी,देखने लायक थी,

मुझे समझ में नही आ रहा था बाहर की ख़ूबसूरती की तारीफ करू या अंदर की

हल्की हल्की धुप जब भी उसके चेहरे पे परती ,वह अपने चेहरे को ज़रा सी सिकुराती, शायद ये धुप उसकी नींद में दखल दे रही थी,मैंने सोचा खिड़की बंद कर दू नहीं उसका नींद टूटे और नहीं मेरे सपने

तभी ट्रेन भुनेश्वर पहुची ,सुबह की 8 बजने वाले थे ,शोर शराबे की वजह से उसकी नींद खुल गई और मैं भी वास्तविकता में लौट आया और अपने नावेल में खो गया।

कभी कभी हमारी नज़रे मिल जाती लेकिन नहीं मैं एक शब्द कहा न उसने।

वैसे भी हम बिहार के लड़के जो ठहरे ऐसे ही कोई लड़की दो शब्द बात कर ले तो हम बिहारियों की क्या दशा होती है,आप बखूबी समझ सकते है।

अब बात पहले करने की गुस्ताखी करे तो करे कौन

उसने अपनी बैग से एक किताब निकली जो कुछ मुझे जानी पहचानी सी लगी ।

कांसेप्ट ऑफ़ फिजिक्स।

सहसा मुझे कुछ याद आया और मेरे चेहरे पे हलकी सी मैस्कुराहत आ गई।

उसने इस बार नोटिस किया और मैंने अपना सर अपने नावेल में घुसा दिया।

कहाँ कांसेप्ट ऑफ़ फिजिक्स और कहाँ हाफ गर्लफ्रेंड, कोई तालुक ही नही।

कहाँ वो फिजिक्स के रोटेशनल मोशन के क्वेश्चन नो 3 में घूम रही थी और कहाँ मैं अपने नावेल के नायक को उसकी नायिका से मिलने के लिए दौरा रहा था।

दरअसल मेरी नावेल की क्लाइमेक्स चल रही थी और मैं इतना खोया था कि सहसा ही मेरे मुख से निकल गया "भाग यार"।

व्हाट।

उस लड़की की आवाज़ आई।

वो आश्चर्य थी,

मैंने कहा माफ़ कीजियेगा मैं अपने नावेल में कुछ ज्यादा ही खो गया

उसने हस्ते हुए कहा काश मैं भी अपने फिजिक्स में इस कदर खो जाती।

मैंने हस्ते हुए कहा नहीं होने वाला ख़ासकर रोटेशनल मोशन में

आपको कैसे पता ?

मुझे तो यह भी पता है आप क्वेश्चन नंबर 3 पे पिछले एक घंटे से घूम रही है,मैंने हस्ते हुए कहा।

ओह,मतलब आपने भी इसे पढ़ा है तब तो आप मेरी मदत कर सकते है।

अब तो मेरी हालात खराब फिर भी स्थिति मजाकिया बनाते हुआ कहा ,मैं खुद अपनी मदत नहीं कर पाया था उस टाइम प तो आपकी क्या करूँगा।

उसने हस्ते हुए कहा आप बातें अच्छी कर लेते है

मैंने भी हस्ते हुए कहा बस बातें ही अच्छी करता हु

वैसे आप करते क्या नावेल पढ़ने के अलावा

मैं बोला आप ही की तरह हु आप फिजिक्स पढ़ते हो और मैं केमिस्ट्री

अरे वाह।

तब तो मुझे केमिस्ट्री में टिप्स मिल सकती है।

हमारी बातो का सिलसिला लगातार जारी था।

मैंने अचानक मोबाइल देखा 3 घंटे निकल चुके थे और मुझे पता भी नही चला उन 3 घंटो के दौरान ट्रैन में क्या हुआ और क्या नही।

मैंने हड़ते हुए कहा"थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी"

उसने कहा

What ! !

Theory of relativity

मैंने कहा टाइम देखो 3 घंटे निकल चुके है

अल्बर्ट आइंस्टीन ने सही कहा है

"When you are courting a nice girl ,an hour seems like a second,when you sit on a red hot cinder,a sec seems like an hour"

That's relativity

थोड़ी देर में विशाखापत्तनम आने वाला था ,पहली बार चाहता था ट्रैन रुक जाए ,डिले हो जाये,मेरा स्टेशन ही न आये ।

लिजिन वही बात चाहने से क्या होता है


उसने हस्ते हुए कहा~U mean u want to say that I am a beautiful girl

मैंने अपना बैग कंधे प रखते हुए कहा - I just want to teach you Einstein's concept of relativity

उसने हस्ते हुए कहा तो आपका स्टेशन आ गया

आपसे बात कर के अच्छा लगा, मैं इस यादगार यात्रा को अपनी डायरी में जरूर लिखूनी।

मैने हस्ते हुए बाहर देखा सामने विशाखापत्तनम और मैं अगले ही पल प्लेटफ़ॉर्म पे था

Excuse me !

Excuse meAmerican tourister !

क्या मैं आपका नाम जान सकती हूं।

मैंने हस्ते हुए कहा नाम में क्या रखा है मैडम

उसने कहा फिर भी मैं अपने डायरी में क्या लिखूंगी

मैंने हस्ते हुए कहा American tourister

ट्रेन खुल चुकी थी ,उसको मैं फिर से फिजिक्स के रोटेशनल मोशन के क्वेश्चन नंबर 3 में घूमते हुए पाया।

उसकी फिजिक्स और मेरी केमेस्ट्री बस इतना ही थी।


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