"एक खत उस लड़की के नाम"
"एक खत उस लड़की के नाम"
आज मेरा जन्मदिन है...
लेकिन पिछले 6-7 बरस से ये दिन मेरे जिन्दगी के कैलेंडर का पहला दिन बन चुका है। नई शुरुआत की उम्मीद जगती है और तमाम नई कोशिशों का ख्याल आता है, खुद को सँभालने तमाम यत्न भी किये जाते है, इन्ही यत्नों में से एक उस लड़की का भुलाने का भी होता है और इंतजार भी रहता है उस एक लड़की के कॉल का....
मुझे विश्वास रहता है भले ही वो पूरे बरस मेरे से बात न करे लेकिन आज के दिन वो मेरे तक कैसे भी कर के अपनी शुभकामनाएं ज़रूर पहुँचाएगी...।
अच्छा सुनो, ये खत तुम्हारे ही नाम है, हमेशा तुम कहती हो न मेरे बारे में तो तुम कभी नहीं लिखते ...
तो सुनो, तुम प्यार नहीं हो मेरा, पसंद हो तुम, तुमसे इश्क़ नहीं हुआ बस आदत हो गई है तुम्हारी..जैसे किसी थके हारे हुए आदमी को सुकून की नींद की जरूरत होती है, वैसे ही 'सुकून' हो तुम मेरे लिए...
एक ही समय पर बचपन वाले अंदाज़ में जो इतनी बड़ी बड़ी बातें करती हो न, यहीं से फनाह हो जाते है तुम्हारे इश्क़ में..। तुमसे बातें करते करते कई बार लगता है जैसे खुद से बातें कर रहे हो, ऐसा कभी कभी मालूम हो कि मेरे 'ये' कहने पे 'तुम' वो कहोगी और तुम हर बार वो कह देती हो, मन पहले ही जान लेता है कि किस बात पर तुम्हारा क्या रिएक्शन होगा..।
तुम्हारा ये हर बात पे कहना " चुप रहो ,ज्यादा बोल रहे हो तुम, आज बर्थडे है तुम्हारा इसलिए हम कुछ बोल नहीं रहे है...हा..हा..हा
मुझे नहीं पता मैं कितना समझता हूँ तुम्हें ,शायद न के बराबर ही, पर अच्छा लगता है तुम्हारे मुँह पर ही सच बोल देना, मन मे किसी बातों का न रखना..।
"और ये हर बार न उम्र न पूछा करो हमारी,
हम इश्क़ है, हमेशा जवाँ रहते है..."