भाईचारा

भाईचारा

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"देखो शगुन मुझे इस झंझट से दूर ही रखो ...तुम जाना चाहती हो चली जाओ, बच्चे जाना चाहते हैं तो बेशक उन्हें ले जाओ...।" विश्वास ने अपना फैसला सुना दिया ।

" पर...।" शगुन के कुछ कहने से पहले ही बोल पड़ा विश्वास ।

"प्लीज अब अपना दादी पुराण मत शुरू कर देना ...पहले भी कई बार कह चुका हूँ सौ जनों का कुनबा है अपना ....मुसीबत में भाईचारा ही काम आता है ....यहां दस भाँति के तो पड़ोसी है, इसलिए मुझे तुम्हारे अड़ोस पड़ोस से कोई मतलब नहीं ...बल्कि मैं तो कहता हूँ छोड़ो तुम भी।" विश्वास ने राय दी।

" नहीं जी मुझे तो जाना होगा...आप तो चले जाते हो ,मैं अकेली पागल नहीं हो जाऊँगी ....और कभी कोई मुश्किल आ गयी तो भाईचारा तो आते आते आयेगा, पहले तो पड़ोसी काम आयेगें.... इसलिए मैं तो पड़ोसियों से बरतूंगी.... दादी भी तो कहती थी पहला रिश्तेदार तो पड़ोसी है ।" शगुन ने तर्क दिया।

आज विश्वास को वो सारी बातें याद आ रही थी, जब वो नया नया आगरा आया था । एक हफ्ते से हस्पताल में था, गाँव से कोई भी देखने नहीं आया था सबने अपनी मजबूरियाँ बता दी थी ...वैसे घूमने के नाम पर कितनी बार दूर पास के भाई रिश्तेदार आ चुके थे ।

शगुन का दादी पुराण सच्चा साबित हो रहा था।


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