भाई-बहन का स्नेह बंधन
भाई-बहन का स्नेह बंधन
वे भाई-बहन की अनोखी जोड़ी थी बहन भाई से 15 साल बड़ी।
यह कहानी है उस समय की जब फोन का ज्यादा चलन नहीं था।
कोई कोई जगह पर ही फोन होते थे।
बहन को उप ध्यान तप करने की इच्छा हुई।
यह तप जैन धर्म में 41 48 और 55 दिन का होता है।
पहला तप करने पालीताना जाना था।
उस समय पालीताना में कोई फोन सुविधा नहीं थी।
बहुत नानूकुर करने के बाद भाई ने अपनी दीदी को वह तप करने भेजा।
यह काफी कठिन तक होता है।
एक दिन अचानक भाई को सोते हुए मन में बेचैनी होने लगी।
उनको एक दम ऐसा लगा कि मेरी बहन की तबीयत खराब है।
वह बहुत ही बेचैन हुए और सुबह जल्दी ही पालीताणा जाने को रवाना हो गए।
वहां जाकर जब उन्होंने देखा कि वास्तव में उनकी बहन की तबीयत काफी खराब थी।
उनकी आंख में काला पानी उतर आया था। जिसको हम लोग घोबा बोलते हैं।
वह हो गया था और बहुत ही परेशान थी। दर्द से तड़प रही थी।
उसी समय जैसे ही भाई पहुंचे उन्होंने फटाफट उनको तप में से उठाया। उनके और सब के मना करने के बावजूद बिल्कुल सुना नहीं और उनको अहमदाबाद हॉस्पिटल लेकर आए।
आंख के डॉक्टर को दिखाया आंख को निकालना पड़ा।
डॉक्टर ने बोला अगर आपने और लेट कर दिया होता तो दोनों आंखों में यह उतर आता और दोनों आंखें निकालनी पड़ती दूसरी आंख में 40% रोशनी बच गई।
जिससे उन्होंने अपनी जिंदगी अच्छी तरह जी।
जिंदगी पर्यंत यह बात हमेशा दिल में रही कि भाई के दिल के तार कैसे जुड़े हुए थे।
कि उनको एकदम यह एहसास हो गया कि मेरी बहन संकट में है और वे पहुंच गए। और समय से इलाज करना करवाने से एक आंख तो बच गई।
जिंदगी भर भाई ने बहन की बहुत सेवा करी बहन भाई साथ ही रहते थे क्योंकि वह 21 साल में ही अपने पति को खो चुकी थी और भाई के साथ ही रहती थी।
भाई बहनों का अटूट प्रेम था और हम उसके साक्षी थे। यह कहानी है मेरी बुआ जी और मेरे पापा जी के आपसी प्रेम स्नेहबंधन की।
