Tarun Anand

Abstract Children Inspirational

4.7  

Tarun Anand

Abstract Children Inspirational

भाग्य की लिखावट

भाग्य की लिखावट

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301



ज्योति ............ बिलकुल, ज्योति ही नाम था उसका । 16 वर्ष की उम्र, मासूम पर गंभीर, साँवले रंग की नाटे कद काठी की वो साधारण सी दिखने वाली वास्तव मे कर्मठ ,जीवट, हिम्मती एवं मेहनती लड़की थी । चार बहनो नेहा, शबनम व नंदनी मे वो दूसरे नंबर पर थी । वक़्त के थपेड़ो ने उसके चेहरे की मासूमियत को उतार फेंका था और समय से पहले ही उसे काफी मजबूत और परिपक्व कर दिया था । चारों बहनों मे ज्योति काफी समझदार थी। जहाँ वो अपने माता पिता के लिए आदर्श थी वही अपनी बहनो के लिए रक्षा कवच थी । वो पढ़ने मे भी काफी तेज थी, पर कम उम्र मे ही उसे दुनियादारी की पूरी समझ हो चुकी थी और उसने अपने बचपन को जीने की चाहत को छोड़ अपनी सारी इच्छाओ को अपने परिवार के खातिर बलि दे दी । ज्योति के माता पिता की आर्थिक स्थिति काफी दयनीय थी , उन पर चार बच्चो की परवरिश का बोझ था जिस कारण वो हमेशा चिंतित रहा करते थे । चूंकि चारों लड़कियां ही थी, सो उनके शादी की चिंता भी खाये रहती थी उन्हे । इस चिंता के कारण ज्योति के पापा हमेशा तनावग्रस्त व बीमार रहा करते थे । ज्योति के पापा एक प्राइवेट कंपनी मे काम किया किया करते थे , सैलरी नाम मात्र की ही मिलती थी , जिससे पूरे घर परिवार का गुजर बसर होना अब काफी मुश्किल होता जा रहा था , ऊपर से चारों बच्चियाँ काफी तेजी से बड़ी हो रही थी तो उनके खाने-पीने, खेल-कूद, कपड़े-लत्ते ,पढ़ाई-लिखाई, शादी-विवाह की चिंता अक्सर उन्हे रहा करती थी । ज्योति की माँ विशुद्ध गृहणी व अनपढ़ थी । पर उसकी चाहत थी की मेरी चारों बेटियाँ पढ़ लिख जाय । चारो बहने पास के ही सरकारी विद्यालय मे पढ़ा करती थी, विद्यालय से मिलने वाली निशुल्क सभी सुविधाएं जैसे पुस्तके, छात्रवृति, पोशाक, साइकल, मिड डे मील आदि के कारण इनकी पढ़ाई संभव हो पा रही थी। आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण चारों बहनों मे से दो बहने हमेशा अपने ननिहाल मे ही रहती थी । ज्योति के नाना नानी भी यही चाहते थे।

            ज्योति व उसकी छोटी बहन नंदनी नाना के यहाँ अपने ननिहाल आ गयी । नंदनी की उम्र बमुश्किल 12 होगी। नाना नानी के अलावे उसके ननिहाल मे बड़े मामा काशीनाथ व मामी सुनीता , मँझले मामा दीनानाथ व मामी काजल , छोटे मामा मुक्तिनाथ व मामी रिंकू थी । इनमे से बड़े मामा काशीनाथ व छोटे मामा मुक्तिनाथ जॉब के सिलसिले मे अपने परिवार के साथ घर से बाहर रहा करते थे । सिर्फ मँझले मामा दीनानाथ ही ज्योति के ननिहाल मे मामी काजल के साथ रहा करते थे । मामा दीनानाथ का स्वभाव ज्योति व उसके बाकी बहनों के प्रति हमेशा सकारात्मक व अच्छा रहता था , पर मामी काजल का स्वभाव बिलकुल उलट था । वो काफी दुष्ट, निष्ठुर व जलनशील प्रवृति की थी । ज्योति के नाना नानी व मामा के सामने तो ज्योति व उसके सभी बहनों के प्रति उसके दिल मे दिखावटी हमदर्दी रहा करती थी पर उनकी अनुपस्थिति मे उसका नजरिया उन सभी बहनों के प्रति बिलकुल सौतेलेपन का और बदला बदला सा नजर आता था , वो उन सभी बहनों को हमेशा माँ बाप की गलियाँ व ताना दिया करती थी , भिखारी की औलाद कहा करती थी, न सही ढंग से बात करती थी और न ही सही ढंग से खाने को देती थी, हमेशा प्रताड्ना व उलाहना देती रहती थी । ये सब देख-सुन ज्योति की आंखो मे आँसू आ जाया करती ,पर माँ बाप की मजबूरी का ख्याल आते ही सब चुप चाप बर्दाश्त कर अपना गुस्सा पी जाती । अकेले मे रो कर दिल हल्का कर लेती । फिर इन बातों को भूल अपने कामो मे लग जाती । बेचारी ज्योति सुबह से ले कर शाम तक घर के कामो मे लगी रहती और उसकी मामी आराम से उस पर हुक्म चलाती , महारानी की तरह आदेश देती , उसके साथ नौकरानी जैसा व्यवहार करती । ये सब देख सुन कर ज्योति के नाना नानी को गुस्सा आता । अगर वो कुछ उसकी मामी को बोलते तो वो हमेशा उल्टा जवाब देती , किसी की भी नहीं सुनती , ऊपर से ज्योति के मामा के सामने सभी की चुगली भी करती । नाना नानी भी उसके आदत व व्यवहार से तंग आ चुके थे , पर वो भी मजबूर थे , उम्र अधिक हो जाने और आश्रित रहने के कारण वे भी ज़्यादा कुछ नहीं कर पाते या यूं कहे की ज्योति की मामी के आगे उनकी एक न चल पाती । वैसे भी मामी और चाची का किरदार यूँ भी समाज मे लालची और क्रूर महिलाओ के नाम से याद किया जाता है ।

            दिन बीतता और समय गुजरता रहा, अब तो यह रोज़मर्रा का हिस्सा बन चुकी थी । ज्योति की मामी का ढँका क्रूर चेहरा अब सबके सामने आने लगा था, वह ज्योति पर बात बे बात जुल्म का पहाड़ तोड़ने लगी। मामी देर से सो कर उठती और ज्योति को चाय बनाने का हुक्म सुना देती , खाना बनवाने से ले कर घर की साफ सफाई , चूल्हा चौका , कपड़े धुलवाना व घर के अन्य सारे काम वो ज्योति से ही करवाती । वो उसके साथ नौकर की तरह वर्ताव करती व ज्योति की छोटी सी गलती या यूं कहे नुस्ख पर खूब खरी खोटी सुनाती । मामी उसे बात बे बात इतना बेरहमी से मारती पीटती की उसका शरीर लहूलुहान हो जाता। ज्योति अपने घर की हालत को समझ व जान कर खामोशी से अपने ननिहाल मे रह मामी की ज़लालत और अत्याचार को चुप चाप सहती जा रही थी । जबकि उसकी अन्य बहने कभी कभी मामी के खिलाफ विद्रोह और बगावत कर देती थी , उसे ज्योति ही रोकती थी । जब भी माँ बाप टेलीफोन से ज्योति का हाल समाचार लेते तो ज्योति हँस कर सब बातों को टाल जाती और कहती सब ठीक है यहाँ पर । हालाँकि ज्योति के माँ बाप को भी उसके मामी के बारे मे पता था , परंतु वे भी चुप ही रह जाते । वो तो शुक्र हो ज्योति के नाना नानी का जो ननिहाल मे हमेशा उसका सहारा बनती व उसका समर्थन करती थे । वो अपनी नानी को प्यार से ‘बड्की माई’ कह बुलाती थी । वो जानती थे की इस फूल सी बच्ची पर क्या गुजरती होगी जब इसकी मामी इस पर अत्याचार और छींटाकशी करती है । मामा दीनानाथ भी ज्योति को बहुत मानते थे परंतु दिन भर घर से काम के सिलसिले मे बाहर रहने के कारण उन्हे सच्चाई पता नहीं होती और ज्योति की मामी उन्हे मिर्च मसाला लगा कर ज्योति की हरकतों को बताती और उसके दिल मे ज्योति और उनके बहनों के प्रति नफरत के बीज बोने का काम करती । कई बार ज्योति के मामा, ज्योति की मामी के बातों मे आ कर ज्योति को डांट व पीट भी देते थे । वो रोती तो उसकी मामी के कलेजे को ठंढक पहुँचती । फिर जैसे तैसे उसकी नानी उसे चुप कराती ।

    ठंड का मौसम था । एक सुबह ज्योति की मामी देर से सो कर उठी । उठने के साथ ही ज़ोर से चिल्लाई

‘ज्योति.............. कहाँ मर गयी रे । ‘

‘जी मामी’, कह कर वो मामी के पास आई ।

‘ जा एक कप गरमा गरम अदरख वाली चाय बना ला ‘ ज्योति की मामी ने ज्योति से कहा ।

‘अभी लायी मामी ‘, कह कर ज्योति तेजी से किचेन मे चली गयी ।

तब तक उसकी मामी अखबार पढ़ने मे व्यस्त हो गयी । थोड़ी देर मे वो फिर चिल्लाई

‘ मेरे लिए चाय बना रही है या पूरे मुहल्ले के लिए ‘

‘अभी लायी मामी, बस बन ही गया है ‘, ज्योति ने किचेन के अंदर से जवाब दिया ।

वो चाय ले कर आई और मामी को दी । तब तक मामी की त्योरियाँ चढ़ चुकी थी । आँखों मे अंगार और मुँह मे नागिन सी फूंफकार लिए गुस्से से उबल पड़ी और मानो जैसे ज्योति का मुँह ही नोच लेगी ।

‘इतनी देर लगती है चाय बनाने मे, आज खाने मे क्या बना रही हो ‘, मामी ने ज्योति से पूछा ।

‘चावल दाल सब्जी, और नाना नानी के लिए रोटी सब्जी ‘, ज्योति ने जवाब दिया ।

मामी ने मुँह बिचका लिया और कहा ,’ करेले की भुंजिया भी बना देना ।

ज्योति मन ही मन सोचने लगी , तभी तो इनका दिल और दिमाग करेले की तरह कड़वा है ।

‘जी मामी, बना दूँगी ‘, कह ज्योति अपने कामों मे लग गयी ।

बर्तनो को साफ कर ज्योति खाना बनाने मे जुट गयी । इस काम मे नानी उसकी मदद कर दिया करती थी । नंदनी पास मे ही खेल रही थी , नानी ने उसे आवाज दी और कहा –‘ अरे खाना बनाने मे अपनी दीदी का मदद कर , आ आके इस उबले आलू को छील, प्याज भी काट दे । ‘

नंदनी को अनमने भाव से काम करते देख ज्योति ने नानी को मना किया , कहा –‘’ उसे खेलने दे नानी , मै कर लूँगी सारा काम ।‘’

नानी ने ज्योति को एक हल्की सी झिड़की लगाई और प्यार से कहा –‘’ तूने ही इसे बिगाड़ रखा है , अरे कुछ घर का काम नहीं सीखेगी तो जब शादी हो ससुराल जाएगी तो कैसे काम करेगी । ‘’

ज्योति ने कहा –‘’ अभी काफी वक़्त है नानी , अभी तो वो बच्ची है । धीरे धीरे मै सीखा दूँगी घर का सारा काम । अभी तो उसके खेलने के दिन है , खेलने दे उसे । ‘’

नानी भी उसके जवाब से चुप हो गयी , वो जानती थी ज्योति की आदत ,की वो अपने सभी बहनो से काफी प्यार करती है ,उसे तकलीफ मे नहीं देख सकती , कुछ भी कर सकती है और किसी भी हद तक जा सकती है अपनी बहनो के लिए ।

ज्योति भी जानती थी की मैंने तो अपना बचपन जिया नहीं ढंग से ,लेकिन मेरी सारी बहने दिल से जिये अपने बचपन को ,इसलिए वो उनकी सारी तकलीफ़ों को अपने सर ले लेती थी, वो हमेशा अपनी बहनो की छोटी मोटी गलतियों की जिम्मेवारी अपने सर ले कर उन्हे मामा मामी से बचा देती थी, हमेशा ढाल का काम करती थी । जब ज्योति अपने सभी चारों बहनो के साथ होती तो वो भी जी खोल के हँसती, खेलती, मुस्कुराती, जम के धमाल करती और अपनी जिंदगी को अपने तरीके से जीती, चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हो । बाकी सभी बहने भी ज्योति की हिम्मत थी ।

          ज्योति खाना बनाने मे जुट गयी , नानी उसकी मदद कर रही थी । दोनों ही किचेन मे थी । तभी अचानक दोनों ने मामी के ज़ोर ज़ोर से चीखने-चिल्लाने की आवाज़े सुनी । अब दोनों तेजी से किचेन से बाहर निकली तो बाहर का नजारा देख दोनों सन्न रह गए । ज्योति की मामी हाथो मे चप्पल उठये हुये थी और ज्योति की छोटी बहन एक कोने मे बैठी सुबक रही थी । यह देख ज्योति गुस्से मे ज़ोर से चीखी – ‘ मामी , ये क्या कर रही हो आप । ‘

‘’ समझा ले अपनी लाड़ली बहन को , मुझसे ज़्यादा जबान न लड़ाये’’- मामी बोली ।

अरे ! अब बताएगी भी कुछ, आखिर हुआ क्या है – नानी ने ज्योति की मामी से पूछा ।

ज्योति लपक कर नंदनी के गले से लिपट उसे चुप कराने मे लग गयी । तभी मामी चीखी – ‘’ इसकी हिम्मत कैसे हुयी मेरे कमरे मे आने की , इसने मेरे सारे मेक अप के सामान को बर्बाद कर दिया, वो तो शुक्र है की इसके गेंद से मेरा आईना टूटा नहीं । महारानी को खेलने के लिए मेरा ही कमरा मिला था । ‘’

ज्योति गुस्से मे बिलख पड़ी , मामी से बोली – ‘’ इतनी छोटी बच्ची को आपने चप्पल से पीटा , जरा भी दया न आयी इस बच्ची पर । कितनी निर्दयी हो आप। छोटी बच्ची है ,इसे इतनी अक्ल कहाँ, पर आप तो समझदार हो ।‘’

नानी ने भी मामी को खूब भला बुरा कहा । मामी गुस्से से पैर पटकती हुयी अपने कमरे मे चली गयी । ज्योति और नानी दोनों मिल कर नंदनी को चुप कराने मे लग गए । बात आयी गयी हो गयी ।

कुछ देर बाद जब खाना बन गया , ज्योति कुछ काम मे उलझी हुयी थी की मामी ने कहा – ‘’ ज्योति मुझे नहाना है , जल्दी से पानी गरम कर दे । ‘’

‘’जी मामी’’ – कह ज्योति पानी के भगोने को गैस चूल्हे पर चढ़ा वही पर बैठ अपने जिंदगी के बारे मे सोचने लगी । माँ बाप की मजबूरी को भी समझ रही थी , बहुत सारी बाते उसके दिमाग मे चलने लगी । वो अपनी ही धुन मे यादों मे खोती चली गयी ।  

हादसों का क्या की कब कोई हादसा जिंदगी की कच्ची रसीद पर पक्की मोहर लगा कर आगे बढ़ जाए ....

काफी देर बीत जाने के बाद उसकी तंद्रा मामी की चिल्लाहट से टूटी । वो चिल्लाते हुये किचेन मे घुसी –‘’ कहाँ मर गयी रे ! एक काम सही ढंग से समय पर नहीं कर सकती , पानी गरम करने को बोला था , हुआ की नहीं । ‘’

‘’ हो गया है मामी ‘’- कह कर ज्योति हड़बड़ाहट मे बिना कपड़े के ही गर्म पानी के भगोने को हाथ लगा दी । गर्म भगोने से उसके दोनों हाथ जल गए ,और भगोना नीचे जमीन पर गिर गया । गर्म पानी के छींटे ज्योति व मामी के ऊपर भी गिरे । मामी चिल्लाती हुयी जल्दी से किचेन से भाग गयी । ज्योति तड़प उठी थी, उसके दोनों हाथ बुरी तरह से जल गए थे । आवाज सुन नानी दौड़ी हुयी किचेन मे आयी , देखी ज्योति कोने मे बैठ सुबक रही थी । नानी ने तुरंत ही ज्योति को बाहर ला उसके हाथो पर मरहम लगाया । ये सब देख नंदनी भी ज़ोर ज़ोर से रोने लगी । उसे ज्योति ने चुप कराया ।

                   ज्योति अपने कमरे मे चली गयी । कमरे मे बैठे बैठे ज्योति अपने जले हुये हाथों को देख सोचने लगी की ‘सभी कहते है की हाथों मे जो लकीरें बनी है, बहुत कुछ कहती है पर मेरे हाथों की लकीरें तो जैसे एकदम से खामोश है , ना कुछ कहती है और ना ही कुछ बोलती है, जैसे मुझसे हमेशा के लिए रूठी हुयी है।‘ ध्यानपूर्वक वो अपने हाथों के लकीरों को देख पढ़ने की कोशिश करने लगी, की ‘’क्या मेरी ज़िंदगी मे कभी सुख नहीं है , कभी खुशियाँ नहीं है , कभी माँ बाप का प्यार नहीं है , क्या मेरी इच्छाए कभी पूरी नहीं होगी । ‘’ वो सोचने लगी भगवान क्या जरूरत थी मुझे दो घर देने की, जब दोनों ही घर पराएं है। पर ये तो भाग्य की लिखावट थी, जिसे चाह कर भी ज्योति ना तो अपने से अलग कर सकती थी, ना तो बदल सकती थी और ना ही मिटा सकती थी ।


© तरुण आनंद

https://tarunanand33.blogspot.com/2020/04/blog-post.html



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