Tarun Anand

Children Comedy

4.6  

Tarun Anand

Children Comedy

चौबे चले छब्बे बनने

चौबे चले छब्बे बनने

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जब से ई मुआ कोरोना आया है तब से चौबाइन बड़ी परेशान है । चौबाइन अपने घर के अंदर से कोरोना को गरियाते हुये बाहर निकली तो कुछ लौंडे लपारिए निहायत ही निठल्ले से उसके घर के सामने मटरगश्ती करते नजर आए । अब चौबाइन का माथा गरम हो गया ,तन बदन मे आग भभक उठी । उसने उन लौंडो की जम कर खबर ली , खूब गरियाने लगी , खरी खोटी सुनाने लगी । चौबाइन के इस अप्रत्याशित हमले और कोरोनो के बीच अचानक आए इस आपदा से उन लौंडो की तो सिट्टी पिट्टी गुम हो गयी , घिग्घी बंध गयी । वे सब लौंडे चौबाइन के हमले से बच बचाकर गिरते पड़ते उस गली से भाग निकले । अब चौबाइन फिर से कोरोना को गरियाने लगी । ई मुआ कोरोना तो कही बैठने लायक भी नहीं छोड़ा , न घर से निकल सकते है , न किसी के यहाँ जा सकते है , न किसी से गप्पे लड़ा सकते है , न किसी से जी भर के लड़ सकते है और न ही किसी की चुगली कर सकते है । अब चौबाइन के पेट मे आदतन दर्द उठने लगा और जी भर के चीन को गरियाने लगी । सत्यानाश हो जाए इन चीन वालों का जो कीड़ा-पिल्लू, साँप-छुछुंदर, ऑक्टोपस –चमगादड़ सब को जिंदा गटक जाते है । इसी से कोरोना आया और चौबाइन को अपनी सारी अरमानो की तिलांजलि देनी पड़ी । भुनभुनाती हुयी मन मसोस कर चौबाइन घर के भीतर गयी ।

             घर के अंदर चौबे जी टांग पसार कर अखबार मे कोई खास खबर ढूंढ रहे थे । जैसे ही चौबाइन ने ये दृश्य देखा तो उसका पारा तुरंत गरम हो गया , गुस्सा सांतवे आसमान पे जा पहुँचा । बाज की फुर्ती से अखबार पर झपट्टा मारते हुये चौबाइन ज़ोर से चिल्लाई- “ बर्तन कौन साफ करेगा , घर की साफ सफाई भी अभी बाकी है , कपड़े भी धोने है , गेहूँ भी छत पर सुखाने है , पौधो मे पानी कौन देगा । मेरे तो करम ही फूटे है जो इनसे पाला पड़ा ।“ अचानक आई इस विपदा से चौबे जी हक्के बक्के रह गए , अंदर तक हिल गए , चाय और खैनी की तलब को तिलांजलि देते हुये चौबाइन को मन मे ही भला बुरा कहने लगे और चौबाइन की तुलना रामायण की ताड़का व शूर्पनखा एवं श्रीकृष्णा के पूतना से करने लगे क्यूंकी चौबाइन के आगे उनकी एक न चलती थी । मन का भड़ास निकालने के लिए वे चौबाइन को कुछ बोलने ही वाले थे की मिसाईल की तरह दनदनाती हुयी झाड़ू ठीक उनके सामने आ कर गिरी। वे चौबाइन को मन ही मन कोसते हुये अश्रुपूरित नेत्रो के साथ मन मसोस कर उठे और अपनी सभी इच्छाओ की तिलांजलि देते हुये कोरोना को दिल की गहराइओ से गरियाते हुए आधे मन से घर की साफ सफाई मे जुट गए । उनके आंखो के आगे उनके ऑफिस मे उनके रुतवे का सम्पूर्ण चक्र घूमने लगा । वो शान से चाय पीते हुये गप्पे हांकना , वो शहँशाह की तरह कुर्सी पर पैर फैला कर बैठना , वो चपरासी का उनके सामने थर्राना , बॉस का इज्जत के साथ पेश आना , सारे सहयोगीयो द्वारा इज्जत देना, सारे दृश्य एक एक कर चलचित्र की भांति उनके मन मे चलने लगा । चौबे जी लगभग रोने रोने को आ गए परंतु चौबाइन के आगे उनकी एक न चलती थी । वे सोचने लगे ,सारी दुनिया उनकी इज्जत करती है पर घर मे ही इज्जत की वाट लगी रहती है ।  

            किसी तरह चौबे जी सुबह से दोपहर , दोपहर से शाम की । परंतु आज चौबे जी का खैनी का स्टॉक लॉक डाउन के समय के बढ्ने के कारण समाप्त हो चुका था । उन्हे बड़े जोरों से खैनी की तलब हो रही थी , मन बेचैन था , दिल घबरा रहा था , साँसे मानो थम सी रही थी , पाँव लड़खड़ा रहे थे , आंखो की पुतलियाँ कथक कर रही थी ,दिमाग सुन्न होने की अवस्था मे पहुँच पाता इससे पहले चौबे जी ने एक कठोर निर्णय लिया । लॉक डाउन मे घर से बाहर निकलने का । कानून का उल्लंघन तो था और पुलिस से पीटे जाने का खतरा भी था और सबसे ज़्यादा खतरा तो कोरोना से था । शाम का वक़्त था , मन को कठोर कर भुनभुनाए की आज तो हर हाल मे किसी न किसी तरह खैनी का जुगाड़ कर ही लेना है । वे चौबाइन को बिना बताए चुपके से निकल आए घर से और लक्ष्य प्राप्ति हेतु खुद को बचते बचाते आशंकित मन से चल पड़े चौक की तरफ। अभी वो चौक की तरफ सधे व सतर्क कदमो से कुछ ही दूर बढ़े थे की सामने का दृश्य देख उनके रोंगटे खड़े हो गए , उनका पूरा शरीर डर से सिहर उठा । सामने कुछ पुलिस वाले वेवजह घूमने आए लौंडे लपाड़ियों को जबरदस्त सोंट रहे थे , किसी से उठक बैठक करवा रहे थे तो किसी को मुर्गा बनाए हुये थे । ये दृश्य देख वो बच के निकलने हेतु वापस मुड़ने ही वाले थे की एक पुलिस वाला उनके सामने यमदूत की तरह अचानक प्रकट हो गया । उसकी मोटर साइकल साक्षात भैंसा और हाथ मे पकड़ी लाठी साक्षात गदा प्रतीत हो रही थी । अचानक आई इस विपदा से चौबे जी हड्बड़ा गए , उनकी घिग्घी बंद गयी , आवाज हलक मे ही अटक गयी । टीवी पर उन्होने पिटाई देख व सुन रखी थी , वे दबी जुबान से कुछ बोलना चाह ही रहे थे की मिसाइल की गति से भी तेज दनदनाती हुयी लाठियाँ उनकी तशरीफ पर बरसने लगी । वे जब तक कुछ सोच पाते , कुछ बोल पाते , कुछ कर पाते तब तक तो आठ दस डंडे उनकी तशरीफ की सेवा मे समर्पित हो उन्हे लाल कर चुकी थी । उनके होशो हवास गुम हो गए थे , दिमाग लगभग अचेतन अवस्था मे जाने ही वाला था की वो अपनी सारी शक्ति को समेट दर्द की बिना परवाह किए आव न देखा ताव, बिना पीछे देखे सरपट घर की तरफ दौड़ लगा दी ।  

                 घर पहुँच उन्होने राहत की सांस ली , अपने तशरीफ को सहलाते उन पर हाथो को फेरते हुये घर के अंदर प्रवेश करने ही वाले थे की सामने दरवाजे पर भृकुटी ताने चौबाइन खड़ी मिली । चौबाइन अपने पूरे रौद्र रूप मे अवतरित माँ चंडी प्रतीत हो रही थी , आंखो मे अग्नि की ज्वाला , चेहरे पर क्रोध का तांडव , जिह्वा पर साक्षात शेषनाग एवं पूरा शरीर गुस्से से काँप रहा था । इस अकल्पनीय दृश्य को देख चौबे जी की आत्मा तक सिहर उठी । उनकी जबान को जैसे ताला लग गया हो , बोलना चाह रहे थे परंतु जिह्वा साथ नहीं दे रही थी । भूखी शेरनी जैसी चौबाइन दहाड़ते हुये चौबे जी से पूछी –‘ कहाँ गए थे बिना पूछे, बिना बताए । कहीं कोरोना लाने तो नहीं गए थे बाहर ?’ चौबे जी घोर असमंजस मे पड़ गए , सोचने लगे – कैसे बताऊँ , किस मुँह से बताऊँ । चौबे जी को न उगलते बन रहा था न निगलते बन रहा था । चौबाइन के ताबड़तोड़ प्रश्नो के बौछार के बीच वो अपनी तशरीफ के दर्द को भूल गए थे । उनकी सिट्टी पिट्टी गुम हो चुकी थी , चेहरे पर हवाईयाँ उड़ने लगी ।

                उनकी इस मनोदशा को चौबाइन झट से भांप गयी। भौहे टेढ़ी कर गरजते हुये पूछा – ‘बाहर खैनी लाने के लिए ही गए थे न ?’ क्या हुआ , कुछ बताओगे भी ? अब चौबे जी को तो जैसे काटो तो खून ही नहीं , उनकी चोरी जो पकड़ी गयी । चौबे जी ने शरम से सारी आपबीती चौबाइन को सुनाई । सारी बातों को सुन कर मानो चौबाइन का गुस्सा काफ़ूर ही हो गया । वो बड़ी जोरों से हँस पड़ी, चौबे जी झेंप गए । हँसते हुये चौबाइन उनसे बोली – ‘ अच्छा हुआ , और निकलो लॉक डाउन मे घर से बाहर , जनाब को खैनी की तलब लगी थी , कम से कम पचास लाठियाँ पड्नी चाहिए थी तुम पर । बड़े चले थे शेर बनने, आ गए न औकात मे । चौबाइन ने चौबे जी की जम कर फटकार लगाई। चौबे जी अपनी तशरीफ को सहलाये जा रहे थे , वे अत्यंत ही पीड़ा मे थे , अब उन्हे दर्द महसूस होने लगी थी ।             

 चौबे जी लूटे पीटे युद्ध मे पराजित किसी रियासत के राजा की तरह व्यथित और कुंठित मन से घर के अंदर गए और सोचने लगे की अब पूरे लॉक डाउन के दौरान अपनी गृहस्वामिनी यानि चौबाइन की बातों का अनुसरण करूँगा क्यूंकी ये भी तो मेरी बॉस ही है – घर की । ये प्रण कर वो अपनी सूजी हुयी तशरीफ को गरम पानी से सेंकने लगे । दर्द की अनुभूति तो हो रही थी पर शर्म के मारे बयां नहीं कर पा रहे थे ।



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