बेवकूफी
बेवकूफी
एक नव-जवान मध्यम कृषक बडे परिवारमें से पढ-लिखकर अपने प्रयासों से अपने रोजी-रोटी का स्थाई इंतजाम एक सरकारी नौकरी पाकर कर लेता हैं. वह परिवार में सबसे छोटा लडका था. इसलिए माता-पिता उसके लिए हमेशा चिंतित रहते थे. शायद सबसे छोटा होणे के कारन वह उनका लाडला भी था. सभी भाई-बहिणों कि शादीयां हो चुकी थी. पिताने परिवार की पुश्तैनि जायजाद सभी को बराबर बाँट दी थी. उन्होने खुद बनायां हुंआ, छोटे शहर का मकान और कुछ खेती अपने नाम पर रखी थी. मौका मिलते ही उन्होने छोटे लडके को घोडी चढा दिया था. माता-पिता की जो जिम्मेदारीयां थी. वे सब पुरी कर चुके थे.परिवार में सब-कुछ ठिक चल रहा था.
उनका एक बडा बेटा अपने पुश्तैनि खेति-बाडी का व्यवसाय कर रहा था. लेकिन उस में वह अपनी ग्रहस्ती ठिक से चला नहीं पा रहा था. तभी पिताने छोटे लडके की जमिन भी उसे देखने के लिए दे दी थी ताकि उसकी आर्थीक परिस्थिति ठिक-ठाक हो जाए !. उसने भी जैसे- तैसे अपने परिवारको संभालने काम किया था. उसके भी बच्चे पढ-लिखकर अपनी रोजी-रोटी के इंतजाम में लग गयें थे. उम्र होने के कारण मात-पिता अपने छोटे लडके के साथ रहते थे. उनका छोटा लडका अपने पुश्तैनि संपत्ति के तरक ध्यान नहीं दे रहा था. पिताने इसके लिए उसे हमेशा सचेत किया था. लेकिन उसने कभी उन बातोंको बहुंत गंभिरता से नहीं लिया था. छोटे लडके के बच्चे भी पढ-लिखकर अपनी-अपनी नौकरीयों में व्यस्त थे. अभी माता-पिताका इंतकाल हो चुका था. उनका छोटा लडका कुछही महिनों बाद सरकारी नौकरी से सेवानिवृत्त होनेवाला था. उसने अभी ज्यादा व्यस्तता न होने के कारण अपनी पुश्तैनी संपती को देखना शुरु किया था. ताकि वह उसे अगले पिढी को सही मायने में हस्तांतरित कर सके !. पिताजी के बॉक्स में संपत्ती के संबंध में उसे कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेज मिले थे. उसको ध्यान में आया कि इन दस्तावेजों में उसके दादाजी के नामकी गडबडी हैं. सरकारी रेकार्ड में जो खेति उसके नाम पर हैं वो उसके नियंत्रन में नहीं हैं. संपत्ती का सही निपटारा करने के लिए सरकारी दस्तावेज त्रुटीपूर्ण नहीं होने चाहिए !. इसलिए उसने कुछ दस्तावेज खंगालने शुरु किए थे. उस कार्य में वह जुट गया था.
अचानक उसके किसी रिश्तेदारके लडके की शादी वर्धा शहर में होने जा रही थी. उस शादीका उसे नौता भी मिला था.एक काज दो पंथ. उसने सोचा कि शादी निपटाकर तुरंत वह अपने जन्मगांव जाकर आवश्यक घर के दस्तावेज कार्यालय में जमा कर देगा !. अपने योजना को फत्ते करने के लिए वह निहत दिन रेल्वे-स्टेशन पर गाडी के समयपर पहुंचा था. लेकिन वहाँ जा कर उसके हात निराशा लगी थी. उसकी वर्धा जानेवाली सवारीगाडी उस दिन कॉफी देरीसे चल रही थी. अभी उसकी योजना सफल नहीं होनेवाली थी. अचानक उसने देखा की उसी प्लेटफार्म पर एक सुपर फॉस्ट सवारीगाडी आकर खडी हो गई थी. वह सवारीगाडी वर्धा-पूर्वसे दक्षिणके तरफ जाने वाली थी. वह अकसर उसी मार्ग से जाता-आता था. वर्धा-पूर्वसे वर्धा ज्यादा दूर नहीं था. उसने सोचा था कि कोई वाहन पकडकर वहाँ से वह वर्धा चले जाऐगें !. उसे पता था. वर्धा-पूर्व एक बहुंत बडा जंक्शन हैं. वहाँ सभी गाडीयां रुककर फिर दक्षिण की और जाती हैं. वह खुशिसे झूम ऊठा था. उसने सोचा कि उसका सोचा हुआं काम हो जाऐगां !. वह उसी गाडी में बैठ गया था. ज्यादा लंबा सफर नहीं था. एक खाली जगह देखकर वही डेरा जमा दिया था. उसने देखा की गाडी में विशेष गर्दी नजर नहीं आ रही थी. लेकिन इस बात को उसने नजर अंदाज कर दिया था. अभी सवारीगाडी ने अपना सफर शुरु किया था. थोडा समय बितने के बाद उसने देखा की उसका गंतव्यस्थान शीघ्र आनेवाला हैं. इसलिए उसने गाडीके डिब्बेके द्वारके तरफ प्रस्थान किया था. स्टेशन अभी नजदिक आ रहा था. गाडीकी गती भी धीमी हो गई थी. अभी थोडी ही देर में प्लेटफार्म आऐगां !. इस प्रतिक्षा में वह था. उसने देखा कि गाडीने अचानक रफ्तार पकड ली थी. रफ्तारको देखकर उसे ये अनुमान हो गया था कि गाडी इस स्टेशन पर रुकनेवाली नहीं हैं. वह बहुंत डर गया था. उसके शरिरमें कंपन होने लगे और साथमें पसिना भी छुट रहा था. उसे लगा की ये गाडी अब अगले बडे स्टेशन पर ही रुकेगी. जो वहाँ से करिब दो सौ किलोमिटर दूर था. वहाँ पहुंचकर वापिस आने में कॉफी समय लगेगा. उसकी हालत अभी धोबी के कुत्ते जैसी हो गई थी. वह अभी ना घरका, ना घाटका रहा था. अभी आगे की टिकिट भी उसके पास नहीं था. पकडे जानेपर भारी जुर्माना भी भरना पडेगा !. अभी वह कॉफी मायुस हो चुका था. अपने अज्ञानता पर उसे घृना होने लगी थी. अचानक फिर उंट ने करवट ली थी. देखा की अचानक फिर से गाडी की रफ्तार धीमी हो रही थी क्योंकि दक्षिण में जाने के लिए पटरोयों को एक बडा मोड दिया गया था. अभी उसने इस अवसर का फायदा उठाने की लालसा पैदा हो गई थी. उसने इसका फायदा उठाने की ठान ली थी. वह उस प्रयास में डिब्बे की पायदानसे निचे-निचे जा रहा था. हिम्मत जुटाकर निचे उतरने लगा, लेकिन गाडी के साथ ही निचे बिछी गिट्टीयों पर घसटते हुयें आगे के पटरी पर जा कर गिरा था. गाडीके कुछ प्रवासी ये घटना देखकर जोर से चिल्ला उठे थे. उसकी किसमत अच्छी थी कि सामने से उस वक्त कोई गाडी नहीं आरही थी. अन्यथा उसका राम-नाम सत्य होने में कोई देरी नहीं बची थी. उसका काल आ गया था. लेकिन समय बलवान था .इसलिए वह बच गया था. उसने गाडी निकल जाने के बाद थोडीसी राहत भरी सांस ली थी. खुदको जिंदा देखकर संतोष कर रहा था. लेकिन उसके घुटनों को अंदरुनी मार लगने से वह सही खडा नहीं हो पा रहा था. उसने पुरी शक्ति लगाकर खुद को पैरों पर कैसे तो भी खडा किया था. बडे मुशकिलसे पटरी पारकर लंगडते हुयें रोडके किनारे पहुंच गया था. वहाँ से एक स्कूटरवाला राहगिर गुजर रहा था. ऐसे सुनसान जगह को देखकर उसने उसे मानवता दिखाते हुयें लिफ्ट दी थी. शहर में जाकर उसने डॉक्टर को दिखायां था .जांच करनेपर डॉक्टर्ने कहाँ अगर अंदरुनी मार ज्यादा गहरा या हड्डी में दरार आई हो तो एक्स रे निकालना पडेगा !. मलम-पट्टी और कुछ दवाईयां उसने दी थी. भुगतान के बाद, वह फिरसे वापिस अपने शहर लौटना चाहता था.इसलिए फिर से रेल्वे- स्टेशन पहुंचा था.
अभी प्लेटफार्म पर बैठकर अपने गाडीका इंतजार कर रहा था. उसके बेवकूफी के कारण जो हादसा उसके साथ हुआं था, उसके बारेमें वह लगातार सोच रहा था. उसे इतनी हड-बडी करने की क्या जरुरत थी ?. अगर वह शादी में नहीं जाता . तो कौन सा पहाड तुटनेवाला था ?. अगर कार्यालय में आजही कागजाद जमा करने पर क्या उसका कम तुरंत होनेवाला था ?. सभी सरकारी काम उनके गतीसे होते. वह काम तो वो बाद में भी कर सकता था. अगर वह बिनाटिकट पकडा जाता तो क्या ज्यादासे ज्यादा जुर्मानाही भरना पडता ?. अगर गलती से उसके पैर डिब्बेके चाक या पहिऐंमें चले जाते तो वह जिंदगीभर के लिए अपाहिज हो जाता. अगर सामनेसे और कोई गाडी गुजरती तो वह उसे उडा भी देती और उसकी मौत हो जाती. ऐसे अगणनीय सवालों की लगातार बौच्छार उसके मस्तिष्क में हो रही थी. वह इन सवालों के कारण इस नतिजेपर पहुंचा था कि सभी लोक उसके बचकना हरकत पर उसेही कोसेगें !. उसने निर्णय लिया की इस हादसे के संबंध में वह अपने परिवार और किसी को भी नहीं बताऐगा !
