बेटी
बेटी
"दीदी जी दो दिन नहीं आ सकूंगी " मेरी काम वाली सविता बेन बोली।
"क्या बात है। बच्चा बीमार है", मैंने पूछा।
"नहीं दीदी जी पिताजी बीमार हैं गांव जा रही हूं।शायद उन्हें यहां लाना पड़े।"
"पर तुम तो कह रही थी वे तुम्हारे भाई भाभी के साथ रहते हैं।"
" हां रहते थे दीदी जी लेकिन मकान का बंटवारा करके द भाई अपने हिस्से में आया मकान किराए पर देकर पिताजी को एक कमरे में छोड़ कर चले गए हैं।हर महीने घर का खर्च भेज दिया करेंगे, कहकर परिवार सहित चले गए।"
"आज सुबह किरायेदार का फोन आया था पिताजी बीमार हैं। किराएदार ने पहले भाई को फोन किया था किन्तु वे नहीं आए।ना ही दवा दारू के लिए रुपए भेजे।तब हार कर मुझे फोन किया था।तुमने भाई से बात की। हां दीदी!टका सा जवाब देकर फोन काट दिया।"
"क्या कहा ,बोले मुझे कहां फुरसत है, दफ्तर जाना होता है। तुम्हारी भाभी को उनका यहां आना गंवारा नहीं है।रोज गृह क्लेश होगा, बच्चों पर क्या असर पड़ेगा।"
"असर तो अब भी पड़ रहा है, उसके बाल मन पर, उसके दादाजी गांव में अकेले पड़े हैं। तुम्हारे पड़ोस में महेश भाई और पार्वती बेन अपने माता पिता की देखभाल कर रहे हैं। क्या वो उन्हें देखकर अपने दादा को याद नहीं करता होगा ।वो मैं नहीं जानता", कहकर फोन रख दिया।
"मैं उन्हें जीवन संध्या की वेला में बीमार, लाचार हालत में अकेले नहीं छोड़ सकती दीदी जी। जब से सुना है मन चिंतित है। इसलिए लेने जा रही हूं।"
