Siddhi Diwakar Bajpai

Tragedy Action Inspirational

4.0  

Siddhi Diwakar Bajpai

Tragedy Action Inspirational

बेटी बचाओ-देश बचाओ

बेटी बचाओ-देश बचाओ

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प्रिय मित्रों आज मैं अपनी कहानी में आप लोगों के समक्ष वो बात रखने जा रही हूं, जो इस समाज की अनेक बड़ी कुरीतियों में से एक है और यदि इसे मिटाया ना गया, तो जल्द ही पूरे विश्व का विनाश निश्चित है।


आज लिखते हुए मन बहुत बेचैन हो रहा है। इससे पहले ऐसा क्रोध ऐसी छटपटाहट कभी महसूस नहीं हुई।

मेरे अंदर उन तमाम औरतों के लिए दया भाव है, जो बिना किसी परिणाम को सोचे, अपने परिवार और अपने समाज के लिए हर तरह से समझौता करने को तैयार हो जाती है। इसके साथ ही मेरे अंदर इस समाज के लिए इतना क्रोध पनपा है की जी करता है की इसकी आग में इसे ही जला दूं। लेकिन विवशता ये है की ये संभव नहीं। वैसे भी समाज में सभी लोग एक बराबर नहीं होते। लेकिन जो लोग अपने स्वार्थ के लिए एक सीमा से ज्यादा गिर चुके हैं, आखिर उनका स्थान क्या होना चाहिए??

मित्रों ये कहानी एक सत्य घटना पर आधारित है। और मैंने इसका लेखन सिर्फ इसलिए नहीं किया की मात्र पढ़ लेने के बाद आप इस पर शोक व्यक्त करें और कुछ समय बाद कहानी को भूल जाएं। इसका उद्देश्य, मेरे अंदर के कौतूहल को आप तक पहुंचाना है।

इसे कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं की इसमें आप सभी के लिए, मेरी तरफ से एक संदेश निहित है। जिसे आप तक पहुंचाने में यदि मैं सफल हो गई, तो मेरा आपसे विनम्र निवेदन है की अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए, उसे गंभीरता से लेते हुए, मेरे लेखन के उद्देश्य को पूरा करने में मेरा सहयोग दें। और एक बात और है, यदि हम चाहते हैं की इन कुरीतियों का अस्तित्व हमारे समाज से पूरी तरह मिट जाए तो इसके लिए हमें इस पूरे समाज को शिक्षित व जागरूक कर, उसे भी हमारे इस उद्देश्य में शामिल करना होगा।

 

तो आइए शुरुआत करते हैं इस कहानी की-


मित्रों जहां मैं रहती हूं, वहां से करीब 20 km दूर एक गांव है। दूरी ज्यादा न होने के कारण जब कभी मुझे गांव की आबो- हवा देखने का दिल करता है, मैं वहां कुछ घंटों के लिए घूमने चली जाया करती हूं।

मेरे जानने में एक लड़का है, जो बालिग है और विवाह करने योग्य भी है। इसलिए एक दिन उसका विवाह उसके घरवालों द्वारा तय कर दिया जाता है। अच्छी बात यह थी जिससे विवाह तय होता है, वो लड़की भी बालिग ही थी। लेकिन शारीरिक रूप से उसका शरीर विवाह योग्य नहीं था। बात पक्की होने के बाद, एक दिन बड़े ही धूमधाम से उन दोनों का विवाह हो जाता है और वो लड़की अपने नए घर में प्रवेश करती है। कुछ ही महीनों में पता चलता है की वो गर्भावस्था में है। शरीर कमज़ोर होने के कारण dr. ने उसे काफी एहतियात बरतने को कहा। कुछ बातें हैं जो विशेषकर उसे ध्यान रखने को बोली गईं। मेरे विचार में ये हर एक स्त्री को गर्भावस्था के दौरान बोला जाता है।

जैसे-  शरीर से ज्यादा मेहनत मत लो। भारी वजन मत उठाओ, समय से सो और समय से जागो। अपने खाने पीने का विशेष ध्यान दो। सेहतमंद आहार भोजन में लो। और स्थिति सामान्य ना होने के कारण अपने स्वास्थ्य का अत्यधिक विशेष रूप से ध्यान रखो। 

ये सारी बातें Dr. ने, उसके ससुराल वालों के सामने ही की थी। इसके बावजूद उसके ससुराल वालों ने Dr. की किसी भी बात को गंभीरता से नहीं लिया। वो वैसे ही घरेलू कामों की जिम्मेदारी सम्हालती रही जैसे Dr. को दिखाने से पहले। उसकी दिनचर्या में कोई परिवर्तन नहीं आया था। उसे पता ही नहीं चला की अपनी स्थिति को अनदेखा करने से कैसे दिन पर दिन उसकी तबीयत बिगड़ती चली गई।

6 महीने बीत चुके थे। 7वें महीने की शुरुआत हो चुकी थी। इसी महीने एक दिन वो भी आ गया जब उसे एक पुत्री की प्राप्त हुई। लेकिन बदले में उसे ऑपरेशन का दर्द भी सहना पड़ा, क्योंकि बिना ऑपरेशन प्रसव संभव नहीं था। पैदा होने के बाद उसके बच्चे का स्वास्थ्य भी ठीक नहीं था। इसका परिणाम ये हुआ की कुछ ही दिन जीवित रहने के बाद उसके बच्चे की मृत्यु हो गई।इस घटना को केवल 10 दिन ही हुए थे कि एक दिन पता चला की उस लड़की की भी मृत्यु हो गई।


अब मेरा प्रश्न ये है की उस लड़की की मृत्यु का जिम्मेदार कौन है? उसके ससुराल वाले? या उसका पति? या उसके मायके वाले जिन्होंने उसकी शादी करी? ये सभी बताए गए लोग आखिर हैं कौन? दरअसल ये लोग वहीं हैं, जिसे हम समाज कहते हैं। हम आप और इन्हीं लोगों से तो समाज बनता है। तो अब मैं अपना प्रश्न दुबारा दोहराती हूं कि कौन है इस घटना का जिम्मेदार?अब आपको इसका उत्तर स्वयं ही मिल गया होगा कि इसका जिम्मेदार और कोई नहीं बल्कि यही समाज है।


समाज कहीं और से नहीं आते बल्कि हम और आप से ही समाज बनता है। और जितने दोषी ये सब हैं, उतने ही दोषी हम और आप भी हैं। रोज़ किसी ना किसी की पत्नी, बेटी, बहन और बहू मरती है क्योंकि शारीरिक रूप से उनका शरीर प्रसव के लिए तैयार नहीं होता लेकिन ये समाज उन्हें विवश करता है की वो बच्चा पैदा कर उनकी पीढ़ी को आगे बढ़ाए।

पीढ़ी बढ़ाने के स्वार्थ में रोज़ किसी ना किसी लड़की की जान जाती है। कौन कहता है की 18 साल के होते ही लड़की की शादी करने से वो पूरी तरह बच्चा पैदा करने लायक हो जाती है। हर लड़की की शारीरिक क्षमता अलग अलग होती है। कोई 18 साल में ही परिपक्व हो जाती हैं। कोई 20 में तो कोई 22 में। केवल सरकारी नियमों के विरुद्ध सजा ना मिलने के डर से लोग किसी लड़की के 18 साल के पूरे होने का इंतजार करते हैं, बाकी उन्हें उसकी शारीरिक क्षमता से कोई लेना देना नहीं।

मित्रों मेरी इस कहानी का उद्देश्य मैं आप सब तक एक बार फिर पहुंचाना चाहती हूं। और मेरा उद्देश्य ये है की आइए, एकजुट होकर इस प्रथा का विरोध करें। बच्चा पैदा करना एक बड़े ही गौरव की बात है लेकिन किसी की जान लेकर इसे अभिशाप ना बनाए। हर इस्त्री की शारीरिक क्षमता को देखकर ही उसे इसके लिए तैयार करें।और इस कुप्रथा को समाप्त करना अकेले किसी के लिए संभव नहीं, बल्कि इसके लिए हम-आप और पूरे समाज को आगे बढ़कर आना होगा और अपने दायित्व का भलीभांति निर्वाहन करना होगा।

  


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