बचपन की अहमियत
बचपन की अहमियत
बिल्कुल अनुमान न था कि बचपन में देखे अमीरी के बड़े-बड़े सपनों को पूरा करने में हम इतने गरीब हो जाएंगे कि उन पैसों से हम बड़े होकर अपना बचपन भी वापिस न खरीद पाएंगें। आज इतने पैसे होने के बाद भी हम इतने गरीब हो चुके हैं कि चाहते हुए, करोड़ों की कीमत देकर भी वो उत्साह, सुकून और बेफिक्री नहीं ख़रीद सकते।
प्रकृति का ये कैसा नियम है ?
क्यों हम समय के पीछे भागते रहते हैं और हर समय की योजना बनाते रहते हैं। इसी पल, इसी क्षण और इसी घड़ी को जी लो, क्योंकि ऐसा न हो कि आज से 10-15 साल बाद हम फिर से वही सोचे जो आज सोचने में विवश हैं। जो वक्त चला गया उसे भूलने में ही समझदारी है।कल्पना करो कि हम आज ही जन्में हैं। और एक नवजात शिशु की तरह न तो हमें पहले का कुछ अनुमान है और न भविष्य की चिंता। कल्पना करो कि एक नए उत्साह और उल्लास के साथ हमारे जीवन की एक नई शुरुआत हो रही है। हमारा दिल एक बच्चे की तरह निर्मल है। हमारे हर कार्य में एक पारदर्शिता है। ज़िन्दगी में कोई भेद, कोई ईर्ष्या और कोई द्वेष नहीं। और हम पवित्रता और निश्छलता के साथ वो सब कर रहें हैं जो हमारा दिल चाहता है। हमारे पास अनावश्यक चिंता करने की फुर्सत ही नहीं। और किसी का अहित करना तो हमें आता ही नहीं। अब खुद अनुभव करें कि आपको ये सोचने मात्र से कैसी अनुभूति हुई। केवल कल्पना मात्र से हम कुछ क्षणों के लिए सिर्फ और सिर्फ अपने आपको गहराइयों से महसूस करने लगे और अपने बचपन में वापिस लौट गए। तो क्या इसे अपनाने से हम अपना बचपन वापिस नहीं पा सकतें??
समाज की चिंता क्यों ?
क्या एक बच्चा कुछ करने से पहले समाज का गुणा भाग करता है ? तो हम क्यों करें ? स्मरण रहे कि हमारा पुनर्जन्म एक बच्चे के रूप में हुआ है, ना कि वयस्क रूप में।