Siddhi Diwakar Bajpai

Abstract Classics Inspirational

4.9  

Siddhi Diwakar Bajpai

Abstract Classics Inspirational

ओ.सी.डी.और ओवरथिंकिंग का एकमात्र उपाय

ओ.सी.डी.और ओवरथिंकिंग का एकमात्र उपाय

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बचपन में एक बार ऐसे ही ख्याल आया कि हमारे दिमाग से हम जो भी बातें करतें हैं, उसे सिर्फ हम ही क्यों सुन सकते हैं?? बाकी लोग मेरे अंदर की आवाज़ सुनकर मुझसे बातें क्यों नही कर सकते??

एक इंसान और है जो इन बातों को सुन सकता है, मुझसे बात कर सकता है। लेकिन सिवाए मेरे, उसे भी न तो कोई सुन सकता है और न बात कर सकता है। कुछ लोग उसे अंतर्मन कहते हैं। चलिए इस कहानी में बस पहचान मात्र के लिए आज हम भी उसे अंतर्मन का नाम दे देते हैं।

सबसे विचित्र बात तो ये है कि ये सुनने और बोलने की प्रक्रिया हर जगह नही की जा सकती। इसका एकमात्र स्थान है- और वो है- हमारा मन।

सोचो अगर ऐसा होता कि लोग मन में ही बात करते, मन में ही सुन लेते और मन में ही जवाब दे देते। कोई शोर ही नहीं होता

दूर-दूर तक कहीं कोई शोर नहीं और लोगों ने अपनी बात भी कर ली।

सोच के ही कितना सुकून मिलता है। चारों तरफ शांति ही शांति। सरकार की ध्वनि प्रदूषण की आधी समस्या तो ऐसे ही हल हो जाएगी।

साइंस की मैडम कहती थी कि कंपन्न से ध्वनि की उत्पत्ति होती है। पर उनकी बात सुनता कौन था।

इसका अर्थ आज समझ में आया और ये भी जाना कि वो पढ़ाती तो अच्छा थी। हम ही निकम्मे थे।

कुछ बातें न तो पढ़ाई समझा पाई और न मैडम। केवल अनुभव की चोक ही हमारे दिमाग की ट्यूबलाइट जला पाई।

दिमाग में विचार घूमते ही रहते हैं। इन विचारों में एक खास बात ये भी होती है कि इनका वज़न चाहे जितना ज्यादा हो, इससे हमारे दिमाग में कोई फर्क नहीं पड़ता। हम सारा भार सह लेते हैं। यही कारण है कि अधिक वज़न वाले विचारों को, जिसे दुनियाँ टेंशन कहती है, हम आराम से झेल लेते हैं

गहरी बात तो ये भी है कि आज तक कोई ये जान ही नहीं पाया कि दिमाग में चल रहे विचारों की संख्या यानी आवृत्ति चाहे जितनी ज्यादा हो, उसको रखने का पूरा स्थान हमारे दिमाग में होता है। 

सैकड़ों-अरबो-खरबों विचार हमारे दिमाग में चलते रहते हैं। इनको रखने की जगह तो कभी कम ही नहीं पड़ती। बस इनके बीच की दूरी ज़रूर कम हो जाती है।

एक समय ऐसा भी आता है जब सभी घूमते-घूमते एक दूसरे के इतने पास आ जाती हैं कि आपस में टकरा कर कंपन्न उत्पन्न कर देती हैं। और यही कंपन्न गले और ज़ुबान के रास्ते शब्द बनकर मुँह से बाहर आ जाता है। जिसे हम मूर्त रूप से की गई बातचीत कहते हैं।

चिंताजनक बात तब होती है जब उसे पता ही नही चलता कि इन विचारों के प्रभाव से वह व्यक्ति कब अपने मन में बातें करना शुरू कर देता है। धीरे धीरे ये बातें दिन रात होने लगती हैं और उस व्यक्ति को उसकी आदत पड़ जाती है। 

जितना वो बाहरी दुनियाँ से बातें करते हैं उतना वो अंदर भी। परिणाम ये होता है कि 24 घंटे वो मन में बातें ही करता चला जाता है और बातों से भरा रहता है।

न चाहते हुए भी इंसान को अपने आसपास मौजूद लोगों को मूर्त रूप से जवाब देना ही पड़ता है और साथ ही आंतरिक द्वंद। तो अब ज़रा सोचिए कि उस व्यक्ति की मानसिक हालत क्या होगी।

ज्यादा सोचने को लोग ओवरथिकिंग का नाम देते हैं। कुछ लोग ये भी कहते हैं कि यह ओसीडी के लिए काफी हद तक ज़िम्मेदार है। 

ओसीडी एक प्रकार की मानसिक बीमारी होती है। इसमें मन में निरंतर विचार चलते रहते हैं। ये विचार कई तरह के होते हैं। 

जैसे-

धार्मिक स्थान में जाते ही दिमाग में शव की फ़ोटो छप जाती है और अपने प्रियजनों के मृत्यु दिमाग में दिखने लगती है। और उनके बारे में अशुभ बातें दिमाग में चलने लगती है। ऐसे में इंसान धार्मिक स्थल में जाना ही बंद कर देता है।

कभी कभी प्रियजनों के पास जाने पर, उनको देख कर, उनके अहित के बारे में दिमाग में बातें चलने लगती हैं। ऐसे में इंसान उनसे नज़रें चुराने लगता है कि न तो उनकी तरफ देखेंगें और न ही उनका अहित सोचेंगें और न ही उनका अहित होगा।

किसी एक संख्या को शुभ मानने लगता है। यदि कार्य को उतनी बार किया तो वो शुभ और न किया तो वो अशुभ।

ऐसे में प्रत्येक कार्य को शुभ करने के लिए उतनी ही बार दोहराने लगता है। इससे कार्य समाप्त करने की अवधि बहोत ज्यादा हो जाती है और कार्य करने की क्षमता बहोत कम।

व्यक्ति अपने अंदर लगातार खुद से बातें करता रहता है। 

कई ऐसी-ऐसी बेकार की बातें दिमाग में चलती रहती हैं जिनका कोई अस्तित्व ही नहीं होता। ऐसे में व्यक्ति अपने को बीमार सोच लेता है और अंदर से ग्लानि महसूस करता है क्योंकि एक सामान्य व्यक्ति कभी ऐसी बातें सोच ही नहीं सकता। और इस ग्लानि के चलते उसका आत्मविश्वास भी खो जााता है।

इन विचारों के मन में आते ही वो बहोत डर जाता है और बहोत ज्यादा उलझन महसूस करता है। लाख कोशिश करता है कि इसे रोक दें और दूर फेंक दें। लेकिन कर ही नहीं पाता।

तो सवाल ये है कि ओवरथिनकिंग और ओसीडी से कैसे बचा जाए।

तो चलिए इसका जवाब भी हम आपको दे देते हैं। - 

सबसे पहले तो आप अपने उन कार्यों में बिजी रहें, जो आपको बेहद पसंद है। और कभी भी दिमाग में चल रहीं बातों को रोके नहीं। उन्हें आने दें। बस इस बात को मन में सोचते रहें कि, ये आप हो ही नहीं। क्योंकि आपका दिमाग तो सामान्य और स्वस्थ है और ऐसी बातें सोच ही नहीं सकता। ये तो कोई और है जो आपके दिमाग में घुस कर सिर्फ बक रहा है। आपके प्रियजन सुरक्षित हैं और सुरक्षित ही रहेंगे। उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता और उसकी बकवास में कोई सच्चाई ही नहीं है।

 बकने दो इसे। बकते-बकते खुद थक जाएगा और खुद ही चला जाएगा। 

ऐसा करने से विचारों को लगेगा कि उनका कोई स्वागत ही नहीं कर रहा, उन्हें कोई पूछ ही नहीं रहा, उनको कोई महत्व ही नहीं दे रहा।

यकीन मानिए ऐसा करने से आप महसूस करेंगे कि धीरे- धीरे ये विचार आपके दिमाग में आना कम कर देंगे और एक दिन ऐसा भी आएगा कि इनका अस्तित्व बिल्कुल ही ख़तम हो जाएगा और आप फिर से एक सामान्य जीवन जीने लगेंगे। 

सुनने में ये थोड़ा सा बचकाना ज़रूर लग रहा है लेकिन एक बार इसे करके देखें, फिर पता चलेगा कि केवल यही बचकानी हरकत आपको इस मुसीबत से बचा सकती है।

तो आइए करते हैं एक नई शुरुआत एक सामान्य जीवन जीने की। मेरी कामना है कि आप सब शारीरिक और मानसिक, दोनों रूप से स्वस्थ रहें और दूसरों को भी स्वस्थ रखें।


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