बेटे और बहुओं के बीच भेदभाव
बेटे और बहुओं के बीच भेदभाव
आप लोग सोचते होंगे कि बेटे और बहुओं के बीच भेदभाव ! जी सही पढ़ा आपने। जमुना के पाँच बेटे थे। पति एक कंपनी में नौकरी करते थे। पति की तनख़्वाह कम थी। पाँच बच्चों का पालन पोषण भी मुश्किल था। वैसे भी जमुना अपने माता-पिता की आख़री संतान थी। पिता बहुत बड़े वकील थे पर अपनी पत्नी को कभी भी इज़्ज़त नहीं देते थे।
उन्हें इन्सान भी नहीं समझते थे। उनका काम बच्चों को पालना घर संभालना बस यही था। शिवप्रसाद अपनी पत्नी के साथ जिस तरह का व्यवहार करते थे वैसा ही बहुओं के साथ भी करते थे। लड़के उनके इस व्यवहार के लिए कुछ नहीं कहते थे। बहुएँ मायके जाती थी तो उनके आने की तारीख़ भी पहले ही खुद तय कर दिया करते थे। एकबार बड़ी बहू उनके तय किए तारीख़ से एक दिन देर से घर आई थी। ससुर के हिसाब से यह बहुत बड़ी गलती थी। बड़ी बहू को छोड़ने के लिए आए उनके भाई के सामने उन्होंने बहू से उठक बैठक कराया। ऐसे माहौल में पली सबसे छोटी जमुना अपने पिता से यही सब सीखकर आई। जमुना की शादी हो गई थी वह ससुराल पहुँच गई। उसने बचपन से पिता का व्यवहार माँ और भाभियों के प्रति देखा था। वह उसके दिल में रह गया था। नई बहू थी इसलिए कुछ साल चुप रही फिर अपने पति के साथ मिलकर अलग रहने लगी और धीरे-धीरे पति को नचाने लगी। मायके से भाई भतीजे आए दिन आते रहते थे। पाँच बच्चे किसी तरह पल रहे थे। माँ के डर से बच्चे किसी भी वस्तु की माँग नहीं करते थे।
बड़े बेटे ने बीएससी किया और बैंक में लग गया। दूसरे ने दसवीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी फिर भी पोर्ट में नौकरी पर लग गया। तीसरे ने बारहवीं पास की और शिपयार्ड में नौकरी पर लग गया। चौथे बेटे की मृत्यु एक हादसे में हो गई। पाँचवाँ छोटा था। बड़े बेटे की शादी हुई बहू आई। जमुना को तो खेलने के लिए खिलौना मिल गया है जैसे। तब तक सारे लड़के जमुना की मदद करते थे। बहू के आने के बाद उन्होंने किसी को भी काम करने नहीं दिया। दूसरी तीसरी बहुएँ भी आ गई। उन्हें घर का काम बाहर का काम जैसे राशन पानी लाना गेहूं पिसवाना कुँए से पानी भरना कपड़े धोना ब्राह्मण परिवारों के नाजनखरे अलग सारे काम करने पड़ते थे और बेटे सिर्फ़ ऑफिस जाकर आते थे। हर किसी को चाय नाश्ता सब ले जाकर देना पड़ता था। अगर कोई बेटा भूल से कुछ करने भी आया तो बहुओं की शामत आ जाती। इतना सब करने के बाद भी बहुओं को ग़ुस्सा तब आता था जब बेटों के जन्मदिन वे अच्छे से मनाती थी पर बहुओं के जन्मदिन उन्हें कभी भी याद नहीं रहते। यही कहती थी वह।
इतना काम कराना एक बाहर की लड़की जो अपने माता-पिता की लाड़ली होती है कहाँ तक सही है। बेटों का मुँह माँ के सामने नहीं खुलता था। खाना खाने बैठो तो तानों की ऐसी बौछार होती थी कि हलक से एक निवाला नहीं उतरता था। ऐसा क्यों तीसरी बहू तो न सह सकने के कारण घर से भाग गई। लोग उनके घर में लड़की को देने के लिए हिचकिचा ने लगे फिर भी जमुना नहीं सुधरी।
दोस्तों मुझे एक बात समझ में नहीं आती कि बहू हम अपनी पसंद से लाते हैं शादी होते ही उसमें इतनी कमियाँ कहाँ से दिख जाती हैं मालूम नहीं। जमुना की अपनी कोई बेटी भी नहीं है फिर बेटे और बहुओं के बीच यह भेदभाव क्यों ?
