Pawan Gupta

Drama Tragedy

4.3  

Pawan Gupta

Drama Tragedy

बेगुनाह अपराधी

बेगुनाह अपराधी

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आज भी खाना पहले की तरह ही था, वही रोटी और पतली दाल। तीन महीने से ये खाना खा खा कर मैं ऊब चुका हूँ, सच तो ये है, कि ये चार दीवारी भी पिछले तीन महीनों से मुझे सोने नहीं देती। इन दीवारों में इतनी सीलन है इतनी दर्द है कि इन दीवारों की चीखे मुझे हर पल उस दिन की याद दिलाती है जिस दिन मैं बेगुनाह होते हुए भी अपराधी बन गया।

कोई भी ऐसा दिन नहीं हुआ होगा जब इन दीवारों ने मुझे सोते हुए झकझोर कर ना उठाया हो, इनके लिए तो वो हर इंसान अपराधी है जो इसके पास भेजा जाता है। इसकी नज़र में मैं भी वही था अपराधी ...


खैर आज आखरी खाना है यहाँ का कल से सब बदल जायेगा, मैं कल आज़ाद हो जाऊँगा और अपने घर चला जाऊँगा। क्या घर ....???

वहां सब कैसा होगा माँ भाई बहन क्या उनके लिए भी मैं अपराधी ही हूँ क्या ...मेरे पड़ोसी वो क्या सोचते होंगे क्या बहार की जिंदगी यहाँ की जिंदगी से भी ज्यादा ख़राब होगी। सोच के पूरे शरीर में सिहरन दौड़ गई, इन तीन महीने में मैंने अपना सब खो दिया है, मेरी एक अच्छी सी नौकरी और मेरी इज़्ज़त सब।किसी का भला करने की इतनी बड़ी सजा ...ये सब सोचता सोचता मैं अतीत की गहराइयों में डूब गया।

उस रात तक़रीबन 8 बज रहे थे, मैं अपने ऑफ़िस से घर की तरफ जा रहा था, मेरा घर ऑफ़िस से महज एक किलोमीटर की दूरी पर होगा इसलिए शाम को पैदल ही घर चला जाता था, इसी बहाने शाम की सैर भी हो जाती थी।

उस शाम भी मैं पैदल ही घर जा रहा था,सड़क सुनसान थी सड़क पर कोई भी नहीं दिख रहा था, वही सड़क के एक किनारे एक आदमी एक लड़की को मार रहा था, मैंने उनको देखकर सोचा की ये क्या तरीका है, लोग सड़को पर आकर इस तरह झगड़ते है। जब मैं करीब पहुंचा तो पता चला की ये शादी शुदा नहीं है, आदमी की उम्र तक़रीबन 30 साल होगी पर लड़की 20 की थी। लड़की की बातों से लग रहा था कि वो लड़की उस आदमी के बच्चे की माँ बनने वाली थी, इसी बात के लिए उनमें लड़ाई हो रही थी।

मैंने उस आदमी को रोकने की कोशिश की ,पर वो मुझसे भी हाथा पाई पर उतर आया और इस हाथापाई में उसने मेरे सर पर एक पत्थर से खींचकर मारा मेरा सर फट गया ,और खून निकलने लगा मेरी शर्ट खून से पूरी भींग गई जब कुछ लोग वहां आये तो ये दोनों वहां से भाग गए, मैं दर्द से तड़पता हुआ वहीँ गिर गया। मुझे कुछ लोगो ने अस्पताल पहुंचाया ,पट्टी हुई पुलिस आई , पुलिस वालो ने मेरा बयां लिया।


मेरे बयान के आधार पर पुलिस वालो ने अपनी तफ्तीश शुरु की। और वो दोनों लोग मिल गए। पर उस लड़की का बयान सुनकर तो मेरे पैरों तले धरती खिसक गई। जिस लड़की को मैं बचाने गया था, उसी लड़की का ये बयान था कि मैं उस लड़की को छेड़ रहा था और उस दूसरे आदमी ने उसकी रक्षा की।मेरे ऊपर केस चला और मुझे ३ महीने की जेल हुई ,आज के समय में इसलिए लोग किसी का भला करने से डरते है। हर इंसान में इंसानियत होती है ,पर खुद को बचने के लिए वो इंसान कई बार अपनी आँखे बंद कर लेता है। मेरी किस गलती की इतनी बड़ी सजा मिली, उस लड़की ने तो झूठ बोलकर अपनी इज्ज़त बचाई और उस आदमी ने झूठ बोलकर अपनी जान।

    

पर मैं...मैंने तो सच बोलकर उस लड़की की सहायता करके सब गवां दिया, इतनी अच्छी नौकरी, इज़्ज़त। आज मेरे परिवार पर क्या बीत रही होगी।

पड़ोसी उन्हें किस नज़र से देख रहे होंगे। मुझे लोग क्या कहेंगे "अपराधी "ये शब्द मन में आते ही मेरी आत्मा ग्लानि से भर गई।

ओह मुझसे उस रात ग़लती हो गई, मुझे उन लोगो से कुछ कहना ही नहीं चाहिए था, पर क्या करता अच्छे इंसान की यही आदत तो होती है कि वो किसी का बुरा नहीं चाहता है।

मन में बस यही संतुष्टि थी कि कल से मैं भी आज़ाद हो जाऊंगा ,ये हथकड़ियाँ मुझसे अलग हो जाएँगी , मेरे हाथ खुल जायेंगे ......    

   

  


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