बदलता भारत
बदलता भारत
राज एक छोटे से गांव शाहपुर का रहने वाला था। उसके पिताजी एक किसान थे और उसका परिवार ठीक ठाक था, ना गरीब ना अमीर। ठीक ठाक ज़मीन थी उनके पास इसलिए गुज़ारा भी अच्छे से हो जाता था। पर राज को गांव बिल्कुल पसंद नहीं था। गांव का मिट्टी, मेहनत और पसीने से भरा जीवन उसे शहर के जीवन के आगे नीरस लगता था। जब से उसने शहर के कॉलेज में पढ़ना शुरू किया था तभी से उसे गांव और गांव के लोग बेकार लगने लगे थे। वो रोज़ अपने माता पिता को कहने लगा था कि सब बेच कर यहां से शहर चलो। उसे लगता था कि वो इकलौता है तो मां पिताजी उसकी बात मान जाएंगे पर वो लोग मान ही नहीं रहे थे।
एक दिन मुखिया जी ने गांव के सभी लोगों को इकट्ठा करके बताया कि अगले महीने विदेश से कुछ दस से पंद्रह लोग भारत भ्रमण करने आएंगे और वो उनके गांव भी आएंगे क्योंकि उनमें से कुछ किसान भी हैं जो देखना चाहते हैं कि भारत में खेती कैसे की जाती है और क्या तरीके अपनाए जाते हैं।
सारा गांव मिलकर उन लोगों के आने की तैयारियों में लग गया। सबने मिलकर गांव को चमका दिया और वो दिन भी आ ही गया जब सब विदेशी मेहमान गांव आ गए। मुखिया जी ने तिलक लगाकर और हार पहनाकर उनका स्वागत किया। और उन सब को प्रेम से खाना खिलाया।
वो लोग बस तीन चार दिन ही रहने वाले थे। गांव वालों का स्वागत देखकर वो बहुत खुश हुए। उन्हें गांव में घुमाने के लिए मुखिया जी ने कुछ लोगों की टीम बनाई थी जिनमें से एक राज भी था। राज भी इस मौके को पाकर बहुत खुश था।
अगले दिन सुबह से उन्होंने घूमने का प्रोग्राम बना रखा था। राज को सब विदेशी मेहमान बड़े अच्छे लग रहे थे इसलिए वो कुछ ज्यादा ही उत्साहित था। पर ये क्या, वो लोग तो जैसे जैसे गांव घूम रहे थे वैसे ही उनके गांव की हंसी उड़ा रहे थे। उन्हें गांव बिल्कुल पिछड़ा हुए लगा, ना कोई सुविधा और खेती के इतने पुराने तरीके और सब अनिश्चित सा बारिश पर निर्भर। वो लोग ज़ोर ज़ोर से हंस रहे थे लेकिन दिखा सीधे साधे गांव वालों को यही रहे थे कि उन्हें गांव बहुत अच्छा लगा। पर राज को अंग्रेजी समझ आ रही थी।
उनकी बातें सुनकर राज बड़ा दुखी हुआ आज उसे अपने पर शर्म भी आ रही थी क्योंकि वो भी उन विदेशियों जैसे ही विचार रखता था। पर जब आज बाहर वालों ने वही बातें कही तो दिल को लग गई। उससे अपने गांव की बुरी सहन नहीं हुई। बड़ा मन किया कि उन लोगों से वो लड़ के पर ‘अतिथि देवो भव:’ सोच चुप रह गया। लेकिन राज ने मन ही मन में प्रतिज्ञा कि की वो अपने गांव की कायाकल्प करेगा। बेशक उसमें समय लगेगा पर एक दिन ऐसा जरूर आएगा जब बाहर के लोग सिर्फ उसका गांव और यहां के तौर तरीके देखने भारत आएंगे। गैरों की हंसी उसके मन के मैल को धो गई थी। अब वो भी गांव वाला हो गया था।
राज अब कॉलेज में पढ़ाई के साथ खाली समय में लाइब्रेरी में बैठ कर खेती के बारे में पढ़ने लगा और साथ ही इंटरनेट पर खेती के नए तरीके ढूंढने लगा और साथ ही साथ लोगों की आवश्यकताओं के बारे में भी पता लगा रहा था क्योंकि वो जानता था कि जैसी डिमांड है वैसी ही सप्लाई होनी चाहिए। अपनी ओर से वो कोई कसर नहीं छोड़ रहा था।
अब राज की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी और साथ ही साथ उसने खेती की भी काफी जानकारी प्राप्त कर ली थी। बस अब जरूरत थी तो गांव के लोगों को तैयार करके उस जानकारी को अमल में लाना।
ये जितना कहने में आसान था उससे कहीं दस गुना ज्यादा मुश्किल। लोगों को बदलाव पसंद नहीं आता। सौ में से दस भी नहीं होते जो तंग होते हुए भी बदलना चाहते हों। सो राज के सामने पहला कठिन पड़ाव लोगों को समझा कर तैयार करना था।
पहले उसने अपने पिताजी से बात की। मुश्किल तो बहुत था उन्हें समझाना पर क्योंकि बेटा कह रहा था और उनके पास ज़मीन भी काफी थी सो वो जल्दी मान गए की भूमि के एक टुकड़े पर जैसे राज कह रहा है वैसे कर लें। राज ने दो तीन और किसानों को भी पिताजी की मदद से तैयार कर लिया जिनके पास ज्यादा जमीन थी।
सबसे पहले उसने सूखे और ज्यादा बारिश से निपटने की तैयारी की। ज़मीन के नीचे एक अंडरग्राउंड टैंक बनवाया जिसमें दो तीन मुंह थे, उन पर चौड़े मुंह वाली पाइप फिट करवा कर जली लगवा दी ताकि बारिश का पानी इसमें छन कर इकट्ठा हो सके। इससे बारिश का पानी आगे के लिए सुरक्षित हो जाता था और सूखे की स्थिति में काम में लाया जा सकता था तथा ज्यादा पानी से फसल खराब होने का डर जो लगा रहता था, उससे भी काफी हद तक छुटकारा मिल गया था।
फिर उसने सभी खेती के टुकड़ों में से कुछ हिस्सा खाली छोड़ दिया ताकि वो ज़मीन धीरे धीरे ऑर्गेनिक कृषि के लायक हो सके क्योंकि ऑर्गेनिक सब्ज़ी व फलों की डिमांड ज्यादा थी। इसमें काफी साल लगते इसलिए कुछ हिस्सा ही छोड़ा और बाकी हिस्सों में डिमांड के हिसाब से दालें, अनाज, सब्ज़ी वगैरह के साथ फूलों के पौधे भी लगवाए जैसे गुलाब, रजनीगंधा आदि जिनकी खपत मार्केट में थी। फूल उसको वैसे भी ज्यादा पसंद थे क्योंकि उनकी फसल जल्दी तैयार होती थी और वो हाथों हाथ बिक कर ज्यादा मुनाफा भी देते थे और ज़मीन अगली फसल लगाने के लिए खाली मिल जाती थी।
इसी तरह उसने काफी सारी तकनीकें और बातें अपनाई जैसे जैविक खाद आदि जिसका असर साल भर में सब के खिले चेहरे पर दिखने लगा था। अब बारी थी छोटे किसानों को भी अपने साथ शामिल करने की। उनके पास ज्यादा ज़मीन नहीं होती तो वो एक हिस्सा कैसे देते सो उन लोगों ने तय किया कि तीन चार खेत इन सब योजनाओं के लिए रख लेते हैं और बाकी के खेतों में खर्चे, मेहनत के बंटवारें के साथ होने वाली आमदनी में भी बंटवारा हो जाएगा। किसान इसलिए तैयार थे क्योंकि वो अब अच्छे परिणाम देख चुके थे।
इन सबके साथ ही राज ने ग्राम पंचायत के साथ मिलकर गांव का पूरा नक्शा ही बदल कर रख दिया। विद्यालय, ईंटों वाली पक्की सड़क, बिजली - पानी की सुविधा, शौचालय तथा जगह जगह डस्टबिन भी रखवा दिए। सारे नालों को ढक कर हर तरह से सफाई का ध्यान रखा जाने लगा।
अपने मिशन शुरू करने के तीन साल बाद राज को सर्व सम्मति से मुखिया चुना गया और गांव को भी भारत का बेस्ट गांव के खिताब से नवाजा गया। थोड़े ही दिनों में फिर से एक विदेशी पर्यटकों का समूह गांव को देखने आएंगे और इस बार राज को विश्वास है कि वो यहां से खेती का कुछ ना कुछ सीख कर जाएंगे।
राज को शायद ये बात अब अच्छे से समझ आ गई होगी कि किसान के अंदर से खेती निकालना असंभव है। आज नहीं तो कल राज को ये राह पकड़नी ही थी। यूं ही तो हम किसानों को अन्नदाता नहीं कहते।
काश हर गांव को एक राज और उसका साथ देने वाले लोग मिल जाएं। बड़ा दुख होता है जब हम सुनते हैं कि एक और अन्नदाता ने आज खुदकुशी कर ली। मेरी भगवान से सिर्फ यही प्रार्थना है कि सब को अन्न देने वाला अन्नदाता हमेशा अपने परिवार के साथ खुश रहे।