V Aaradhya

Tragedy Classics Thriller

4.5  

V Aaradhya

Tragedy Classics Thriller

बड़ी सूनी सूनी है ये ज़िन्दगी

बड़ी सूनी सूनी है ये ज़िन्दगी

5 mins
456


"अरे साढ़े छः बज गए, आज तो थोड़ी देर हो गई!"

बड़बड़ाते हुए नैना बिस्तर से उठ बैठी

सुबह उठते ही सबसे पहले नैना को घड़ी देखने की आदत है। सो उसने अपनी आदत के मुताबिक घड़ी देखा और आज की तारिख पर नज़र पड़ते ही एक पल को जैसे उसकी साँसे रुक सी गई।आज 28 जून है, आज प्रशांत को गए हुए पूरे सात साल हो गए। तबसे अबतक का अकेले का सफऱ रहा है।

रूचि तो फिर भी तीन साल की थी। उसकी आँखों में कम से कम पापा की धुंधली यादें तो है पर रॉबिन का तो जन्म ही उसके पापा के जाने के बाद हुआ था।

यही सोचते सोचते नैना ने अपने लिए चाय बनाई और एक घूँट भरा फिर बच्चों को जगाने उनके कमरे में गई तो दोनों को सोते देखकर बड़ा प्यार आ गया।

"रुचु, रॉबी उठो फटाफट, स्कूल जाना है कि नहीं?"

उन्हें उठाते हुए बच्चों का वही रोज़ का जवाब आया,

"ओफ्फोह मम्मा! थोड़ी देर और सोने दो ना!"

खैर, बच्चों को स्कूल बस में बैठाकर नैना ऑफिस के लिए निकल गई।

रास्ते में फिर से नैना का मन अतीत के गलियारे में भटकने लगा।

"कितनी खूबसूरत जोड़ी है, एकदम मेड फॉर इच अदर"

यही कम्प्लीमेंट लगभग सबके मुँह से शादी के रिसेप्शन पर निकला था। सुनकर प्रशांत ने उसका हाथ और बड़ी मुलायमियत से दबा दिया और जैसे ही नैना ने आँख उठाकर देखा प्रशांत ने सबकी नज़र बचाकर उसे आँख मार दी थी और नैना की आँखें शर्म से झुकती चली गई थी।

अरेंज मैरिज में ऐसा प्यार और आपसी समझ कम ही देखने को मिलता है जैसा नैना और प्रशांत में था। पर कहते हैँ ना...

"भविष्य की गर्त में क्या छुपा होता है किसीको पता नहीं होता "

कौन जानता था...... कि.....

सबको खुश रखनेवाला, हँसने हँसानेवाला प्रशांत दिल का मरीज़ निकलेगा। वो भी मात्र बत्तीस साल की उम्र में। वह अक्सर सीने में दर्द की शिकायत किया करता था और फिर अगले ही पल उसे हवा में उड़ा देता था। ज़ब कभी उसे दर्द होता और दो एक बार वह रात में दर्द से तड़पकर जागता और पसीने से नहाकर उठता तो नैना बहुत परेशान हो जाती। चिंतित होकर कहती कि,

"कल डॉक्टर को दिखाने चलो प्रशांत! यूँ इस दर्द को हल्के में लेना ठीक नहीं!"

पर प्रशांत उसके गाल थपथपाते हुए बड़े प्यार से बोला,

"मेरा एक बेचारा नन्हां सा दिल और अब तो तुम भी उसमें रहने लगी हो, इसलिए कभी कभी जगह की थोड़ी कमी पड़ जाती है और दिल में दर्द हो जाता है बस!"

उसके इसी मसखरी वाले अंदाज़ ने कभी किसीको पता ही नहीं लगने दिया कि उसका दिल कमज़ोर है। एक रात ऐसे ही पसीने से नहाकर दर्द से कराहते हुए प्रशांत ने ज़ब नैना को उठाया तो उसकी हालत देखकर वह बहुत घबरा गई थी। तभी वह सात महीने की गर्भवती थी। रूचि को पड़ोस में छोड़कर नैना प्रशांत को किसी तरह हॉस्पिटल ले गई।तब तक बहुत देर हो चुकी थी। लाख कोशिशों के बाद भी उसे बचाया नहीं जा सका था।

वैसे अस्पताल में ऑपरेशन के दौरान और उसके बाद भी गई रात तक साँसो को बचाकर रखने की कोशिश में प्रशांत को बहुत मशक्क़त करनी पड़ रही थी। सुबह ज़ब तक प्रशांत के बाबूजी गाँव से आए तबतक लगता है उन्हीं के इंतजार में प्रशांत ने अपनी अंतिम साँस को रोककर रखा था। उसके पिताजी गोविंदजी प्रशांत की ऐसी हालत देखकर बहुत दुखी हुए थे के लिए जवान बेटे को अपनी आँखों के सामने दम तोड़ता हुआ देखने से बड़ा दुर्भाग्य एक पिता के लिए क्या हो सकता था।

प्रशांत के चले जाने के बाद बाबूजी नैना के साथ ही रहने लगे थे।उनकी पत्नी यानि नैना की सास तो प्रशांत की शादी से पहले ही दुनियाँ से कूच कर चुकी थीं। और अब इकलौते बेटे के आसन्न मृत्यु ने उन्हें बिल्कुल तोड़कर रख दिया था। बमुश्किल और दो साल बाद बाबूजी का भी निधन हो गया था।

तबसे नैना ने प्रशांत की यादों को अपने आँखों के आँसू के बजाए अपनी शक्ति, अपना प्रकाशपुंज बना लिया था जो जीवन के हर अँधेरे में उसे रौशनी दिखाता था और प्रशांत की बातें उसके कानों में गूंजती रहती,

"मैं रहूँ ना रहूँ पर तुम्हारी यादों में हमेशा रहूँगा!"

और फिर सच में नैना को अपने आसपास प्रशांत की मौज़ूदगी का एहसास होता।

अब जीवन की लंबी सूनी सड़क पर नैना अकेली चल रही थी। प्रशांत की कभी ना मिटनेवाली यादों के साथ और दोनों के साझे बच्चों की ज़िम्मेदारी के साथ।ऐसे में हारकर रुकने का तो सवाल ही नहीं उठता।

बच्चों की ज़िम्मेदारी एक माँ को कितना मज़बूत और साहसी बना देती है, यह नैना की ज़िन्दगी के पन्नों पर साफ पढ़ा जा सकता है।

ज़ब सर पर परिवार की ज़िम्मेदारी होती है तो ठहरकर रुककर शोक मनाने का वक़्त किसके पास होता है। नैना आज कई ऐसी स्त्रियों के लिए उदाहरण बन चुकी है जो अपने दुखों को बहुत बड़ा बनाकर उसीमें उलझकर रह जाती हैं।खुद को दया और सहानुभूति की पात्र समझकर जिंदगी में आगे बढ़ने की कोशिश ही नहीं करती।

सच में....नैना ने सबको बता दिया कि, अगर कोई किसीको प्यार करता है तो उसके जाने के बाद भी जिंदगी को हर रूप में स्वीकार करके आगे बढ़ना चाहिए।

ज़िम्मेदारी से बचकर नहीं बल्कि ज़िम्मेदारी और परिस्थिति का सामना करना ही ज़िन्दगी जीने का सही तरीका है।

जो प्रशांत के प्यार की बदौलत नैना ने भी महसूस किया और इसी मूलमंत्र को उसने अपनी ज़िन्दगी में उतार लिया। तभी नैना के कदम ना तो रुकते हैं और ना ही लड़खड़ाते हैं।

नैना अभी प्रशांत की यादों में कूछ देर और खोई रहती कि....

तब तक उसका ऑफिस आ गया। नैना एक नई ज़िम्मेदारी निभाने को चल पड़ी।प्रशांत की यादों से गुजरकर उसे प्रशांत के अपने साथ होने का एहसास हो रहा था।

"प्रेम तो एक शास्वत सच है, हर युग में हर काल में "

प्यार अपने आप में ऐसा पूरा एहसास होता है कि प्यार अगर मूर्त रूप से साथ ना भी हो तो उसका एहसास हमेशा एक खुशबू बनकर साथ साथ चलता है। जैसे प्रशांत याद बनकर नैना के रोम रोम में समाया हुआ था।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Tragedy