बचत
बचत


सुरेश ने बेटी के बारे सोचते-सोचते विनय का डोर बेल बजा दिया ।
"अरे सुरेश तुम ? सुबह-सुबह ? कैसे ? सब खैरियत तो है ?" दरवाज़ा खोलते ही विनय ने कई सवाल पूछ बैठा।
"यार विनय ! मुझे कुछ रुपये चाहिए। बेटी बीमार है। उसे डाक्टर के पास ले जाना पड़ेगा।"
"ओह !"
"मेरे पास बिल्कुल पैसे नहीं हैं। खाता पूरा खाली है।"
"कितना चाहिए ? वैसे ऐसे कैसे पूरा खाली कर दिया खाता ?"
"तुम तो जानते हो कि मैं हमेशा घर भैया-भाभी को पैसे भेजता हूँ। कल ही सारे पैसे घर भेज दिया। मुझे लगा अब 28 तारीख हो गयी है। दो दिन बाद सेलरी आ ही जाएगी। पर मुझे क्या मालूम था कि इस तरह अचानक जरूरत आ जाएगी। रात से ही बेटी को बुखार है। पांच हजार रुपए चाहिए। क्या पता टेस्ट वगैरह में कितना खर्च होगा ?"
"ठीक है, मैं देखता हूँ ।"
विनय रुपये लाकर सुरेश को देते हुए--"वैसे दस साल हो गए नौकरी करते हुए। तुम भविष्य के लिए कुछ जमा भी करते हो या नहीं ?"
"नहीं। पैसे बचते कहां हैं ? हर काम लोन लेकर करना पड़ता है।"
"कितना भी कम मिलता हो, पर भविष्य के लिए तो बचाना जरूरी है। जरूरत तो कभी भी आ जाती है ।"-- विनय कहता जा रहा था--"देखो सुरेश ! मेरी बातों का बुरा मत मानना, लेकिन जब तुम्हारे पास पैसे नहीं थे तो कल खाता से सारे पैसे घर क्यों भेज दिया ? पास में कुछ तो रखना चाहिए। क्या इसके लिए भाभी जी कुछ नहीं कहती हैं तुम को ?"
"कहती हैं, पर मैं ही अनसुनी कर देता हूँ और भैया-भाभी को कहूँ तो वे लोग इसे बहाना समझते हैं।"
"पर अभी क्या वे काम आ रहे हैं ? फिर तुम क्यों ....?"
"सच, तुम सही कह रहे हो। आज मुझे ये अहसास हो रहा है।"
सुरेश अपना मोबाइल निकाल कर एक एजेंट को फोन किया "देवेंद्र जी आप मुझे जो बचत के कुछ प्लान के बारे बता रहे थे। विस्तार से मुझे उसकी जानकारी चाहिए। इसलिए आप कल आ जाइयेगा।"