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Abhilasha Chauhan

Tragedy

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Abhilasha Chauhan

Tragedy

बचत

बचत

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अचानक हुई नोटबंदी से हजार-पांच सौ के नोट बैंक में जमा कराने के लिए लंबी-लंबी कतारें लगी थी। रमेश के पास भी कोई दस हजार रुपए थे, उसने बड़ी मुश्किल से वे बैंक में जमा करवा पाए थे। उसके आफिस में यह बात रोज ही होती रहती थी। सभी परेशान थे क्योंकि उनकी नजर में जो धनराशि थी, वह उन्होंने जमा करवा दीथी,पर इन पत्नियों का क्या ?

अशोक जी बेचारे परेशान थे कि कल उनकी पत्नी ने पचास हजार निकाल कर रख दिए, अब बताओ इतने पैसे कहां से आए उसके पास,सो नहीं बता रही !सब यही बातें कर रहे थे। रमेश सोच रहा था कि वह बच गया उसकी पत्नी के पास कोई बचत नहीं है। उसने पूछा कि आप लोगों की पत्नियों के पास इतना पैसा कहां से आया ?एक-दो लोग बोले कि हमारी पत्नियां तो जाब करती है। बाकी बोले कि -वे घर खर्च से बचा लेती हैं।

अच्छा !पर मेरे घर में तो मेरी पत्नी ने घर खर्च में से कुछ भी नहीं बचाया। अभी लोन की एक किश्त बाकी थी, तब मांगे मैंने उससे तो बोली-गिन कर तो देते हो, उसमें क्या बचेगा !और मैं उन पत्नियों की तरह नहीं हूं,जिनकी नजर सदैव पति के बटुवे पर रहती है।

'हां यार ! मैंने तो कई बार पकड़ा है अपनी पत्नी को बटुवे पर हाथ साफ करते हुए' दीप मुस्कराकर बोला। बटुआ पुराण चलते-चलते पांच बज गए। सभी ने अपने-अपने घरों की ओर रूखसत किया।

रमेश घर पहुंचा तो पत्नी जी को बैचेनी से टहलते पाया। पूछने पर कुछ न बोली । रमेश को कुछ समय में न आया तो पूछा-तबीयत तो ठीक है न तुम्हारी !आज चेहरे का रंग क्यों उड़ा हुआ है।

वे चुप रहीं, फिर थोड़ी देर बाद एक बंडल सा लेकर उसके पास आई और पकड़ा दिया। ये क्या हैं ? कहां से आया ?

रमेश ने यह कहते हुए बंडल के ऊपर से कपड़ा हटाया तो उछल कर खड़ा हो गया।

हजार-पांच सौ के नोटों की गड्डी। ये क्या हैं ?और किसका है, मैं क्या करूंगा इसका ?

ताबड़तोड़ प्रश्नो की बौछार कर दी रमेश ने।

वे आंखों में आंसू भरे मासूमियत से बोली-जी ये अपने ही हैं, मैंने जमा किए हैं।

क्या ! !पर अभी तो पिछले महीने तुमसे मैंने पूछा था कि लोन की किश्त देनी है, दस-बीस हजार पड़े हों तो दे दो, तब तो तुमने मना कर दिया था,मुझे दोस्त से उधार लेने पड़े।

जी वो छोड़ो, अब आप इन्हें बदलवा दो बस।

बदलवा दो,आसान काम है क्या ?आए कहां से ?

जी घर खर्च में से बचाए।

इतने सारे सिर्फ घर खर्च या फिर चुपके-चुपके मेरे बटुए पर भी हाथ साफ किया था।

जी वो तो हर पत्नी का अधिकार होता है, मैंने कर लिया तो कौन-सा गुनाह कर दिया !

बड़ी मासूमियत से जबाव दे वे हंसने लगी। रमेश सिर पकड़कर बैठ गया,उसे समझ में आ गया था कि पत्नियों को पति से ज्यादा पति के बटुए की चिंता होती है।


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