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Lokanath Rath

Action Classics Inspirational

4  

Lokanath Rath

Action Classics Inspirational

बचन (छठा भाग)

बचन (छठा भाग)

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अशोक अपने हॉटेल पहुँचकर सोचने लगा की सरोज को कैसे सुधार केंद्र लिया जायेगा। फिर उसने रमनलाल जी से फोन पर बात करके उनसे मिलने का समय लिया। अगले दिन अशोक और आशीष दोनों मिलकर रमनलाल ज्ज से मिलने निकल गये। आशीष ने सुचित्रा देबी को बोला की वो कुछ काम के लिए जा रहा है और ग्यारह बजे दुकान आजाएगा।आरती बहुत सोच रही थी की अब उसकी भाई सरोज का क्या होगा। अशोक और आशीष सूबे आठ बजे रमनलाल जी पास उनकी सुधार केंद्र पर पहुँच गये। दोनों से मिलकर रमनलाल जी बहुत ख़ुश हुए।उन्हें आशीष का पुरे असलियत मालूम था कियूँ की वो स्वर्गीय अरुण कुमार और स्वर्गीय रमेश जी को अच्छे से जानते थे। रमेश जी और ममता जी के निधन के समय हास्पताल मे वो महजूद थे। वो आशीष और अशोक के बिच अपनापन को देख बहुत ख़ुश हुए और मन ही मन सुचित्रा देबी की तारीफ करते रहे। फिर रमनलाल जी ने सरोज के बारे मे सारी बातें सुने और दोनों भाईओं को बोले, "मुझे थोड़ा उसका उठना बैठना की ठिकाना, उसके कुछ दोस्तों का पता तुम लोगों को देना होगा।जब सरोज यहाँ आएगा तब उसके माता पिता को हमें लिखित मे उनकी सहमति देना होगा।सरोज अपने आप यहाँ नेहीँ आएगा, उसे यहाँ लाना पड़ेगा।उसके लिए जरुरत पड़ने पर मे पुलिस का सहायता लूंगा, डरने की कोई बात नेहीँ।और उसके डाक्टरी रिपोर्ट भी उसके पहेले किया जायेगा।ये सब एक साधारण प्रक्रिआ है।" ये सब सुनकर आशीष थोड़ा डर गया पर अशोक ने उसे समझाया।फिर दोनों ने सरोज के बारे मे सब जानकारी दे दिए। उसके बाद अशोक और आशीष दोनों वहाँ से निकल गए।आशीष दुकान के लिए निकला और अशोक फोन करके आशा से मिलने गया। दुकान जाते समय आशीष उसके शास और ससुर को मिलकर सारे बात समझाके बोला। इधर अशोक आशा से मिलने पहुँच गया।

आशा से मिलकर थोड़ा इधर उधर के बात करने के बाद अशोक उसे सरोज के बारे मे बता दिआ। आशा थोड़ी नाराज होकर बोली, "उस नसेड़ी तो कभी जिन्देगी मे सुधरेगा नेहीँ।अभी तो गुंडागर्दी भी कर रहा है।उसके पीछे ऊपर नेता लोगों का भी आशीर्वाद है।कियूँ अपना समय उसके लिए बरबाद कर रहे हों?"फिर अशोक ने मुस्कुराते हुए उसे बोला,"देखो, जो भी है, सरोज हमारा रिस्तेदार है। उसके वजह से ना केवल उसके माता पिता पर मेरे भैया और भाभी भी परेशान है। और वो अपने जिन्देगी को बर्बादी के और लिए जा रहा है, हमको उसे सुधारना होगा।ये भी हमारा फर्ज़ है और मे अपनी भाई को परेशान होते देख नेहीँ सकता।मे अपनी पिता माता को बचन दिआ हुँ, उसे जरूर निभाउंगा।"अशोक के यही बात शुनकर आशा की दिल मे उसके लिए इज्जत और बढ़ गया।उसने थोड़ी हसते हुए बोली,"सही बोल रहे हों।पर ये सब बचन निभाते निभाते कहीं मुझे भूल तो नेहीँ जाओगे? मुझे तो बचन दिए ही जिन्देगी भर साथ देनेके लिए।तुम भूल जाने से भी मे उम्रभर के लिए बचन निभाऊंगी और तुम्हारी साथ देते रहूँगी।" अशोक उसे देखते रहा और उसकी हात पकड़ कर बोला, "मे अपनी दिए हुए बचन को निभाने के लिए कुछ भी करूँगा, तुम बेफिक्र रहो।" तब फिर अशोक वहाँ से निकल गया अपनी हॉटेल के लिए।दोपहर के खाना खाने के बाद वो पुलिस चौकी गया उसका एक कार्यक्रम के बारे मे बताने। तब वहाँ वो दूर से देखा की कुछ पुलिसवाले सरोज को नशे की हालत मे लेकर पहुँच गये और उसे डाक्टरी माईने कराने जारहे है। फिर महेश जी और अमिता आकर वहाँ पहुँचे और अशोक को देखकर बोले, "हमें थाने से फोन आया था की सरोज नशा करते हुए पकड़ा गया है। और अगर हम मंजूरी देंगे तो वो उसे सुधार केंद्र भेज देंगे, ताकि कुछ महीने बाद वो नशा करना छोड़ देगा।अभी हम दों आकर लिखित मे दे दिए है।वो लोग उसे डाक्टरी माईना करने ले गये है और वहाँ से सुधार केंद्र ले जाएँगे।हमलोग अभी उसके साथ जा रहे है।क्या तुम भी आओगे बेटा हमारे साथ?" अशोक को समझ मे आगया की ये सब रमनलाल जी ने किए है। अब सरोज सुधार केंद्र मे रहकर सुधर जायेगा।फिर अशोक ने बोला, "मेरा आप लोगों के साथ जाना ठीक नेहीँ होगा।अगर सरोज को पता चलेगा तो वो इसका उल्टा अर्थ निकलेगा।आपलोग जाइए, मे रमनलाल जी से बात करलूँगा।"

महेश और अमिता फिर हॉस्पिटल गये और वहाँ से सुधार केंद्र गए।सरोज उसके माता पिता को सुधार केंद्र मे देखकर बहुत रोने लगा और बोला, "मुझे यहाँ से ले चलो।मे कभी और कुछ गलत काम नेहीँ करूँगा।मे यहाँ कैसे रहूँगा?"सरोज के बाते सुनकर उसके माता पिता दुःखी हुए पर अब वो चाहते है की उनकी बेटा सुधर जाए, इसीलिए उसे समझाए,"बेटा यहाँ तुम्हारा इलाज होगा और कुछ ही दिनों मे तुमसे नशे करने की आदत हमेशा के लिए छूट जाएगा।अपने आप पे काबू रखो।तुम्हारे अच्छाई के लिए सब होरहा है।"तब रमनलाल जी भी वहाँ आगये और वो सरोज को बोले,"बेटा तुम्हारे माता पिता सही बोल रहे है। यहाँ तुम रहकर अपनी मानसिक स्थिति को मजबूत करलोगे और नशा करने कभी तुम्हारा मन नेहीँ करेगा।तुम्हारा जिन्देगी सुधर जाएगा।अगर तुम यहाँ सबकी बाते मान कर सारी काम करते जाओगे, तो मे बचन देता हुँ की तुम्हारा जिन्देगी से नशा हमेसा के लिए चला जाएगा।घबराने की कोई बात नेहीँ।हर महीने तुम्हारे माता पिता तुम्हे मिलने आयेंगे।"तब सरोज कुछ नेहीँ बोला, सिर्फ घुसे से रमनलाल जी को देख रहा था।फिर रमनलाल जी ने महेश और अमिता को लेकर अन्दर गये और सारे कानूनी पक्रिया की काम ख़तम किए।फिर महेश और अमिता वहाँ से अपने घर के लिए निकल गए।उनके घर पहुँचते ही रात को आशीष ने आरती को लाकर उनके पास छोड़ दिआ।उसने अपनी माँ सुचित्रा देबी को सरोज के बारे मे बता दिआ, तब खुद सुचित्रा ने आशीष को बोले की आरती को कुछ दिनों के लिए उसकी माता पिता के साथ रहेने के लिए छोड़ आने के लिए।सुचित्रा खुद अमिता से बात करके थोड़ा समझाये।

आशीष आरती को उसकी माता पिता के पास छोड़ कर अशोक के पास गया।अशोक बहुत ख़ुश था।उसने आशीष को बताया की उसके रमनलाल जी से बात हुआ है और वो कहेते है की पहेले छे महीने वो लोग उसे अलग अलग तरीके से सुधारने की पूरी प्रयास करंगे और उसके बाद फिर बोलेंगे और कितने दिन लगेगा।उनकी जो मासिक खर्चा होगा मे उन्हें भेज दूँगा।अब तुम सिर्फ माँ और भाभी के ख्याल रखो और दुकान का भी।हाँ मे आशा (बिकाश जी के बेटी )को बोल्दिया हूँ, तुम हर महीने माँ की जाँच के लिए हॉस्पिटल लेकर जाना।काल मे अपने काम के लिए निकल जाऊंगा, कभी कुछ जरुरत होगा मुझे बोलना।तुम मौका देख कर मुझसे रोज बात करोगे तो मुझे थोड़ी अच्छा लगेगा।" तब आशीष ने अशोक को गले लगाके रोपड़ा और बोला, "मे तुझे कैसे बताऊँ की तुम बिन मे कैसे दिन काट रहा हुँ? माँ की हालत भी वैसे है।तू तेरा बचन निभाता जा रहा है और हमसे दूर होते जारहा है।अब तो कुछ कर।" फिर अशोक ने उसके आँखों से आँसू पोछे और बोला, "भाई इस दुनिआ मे हम सबको अपनी बचन निभाना पड़ता है।उसके लिए बहुत दुःख झेलना भी पड़ता है।जो अभी मे झेल रहा हूँ।उपरवाले से भरोसा रखो वो सब ठीक कर देगा।सही समय पे ये भी ठीक हों जाएगा।अब तुम घर जाओ, माँ अकेली है।"तब फिर आशीष वहाँ से निकल गया।पीछे से अशोक उसको देख कर अपनी आँखों की आँसू पोछ रहा था।


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