Lokanath Rath

Action Classics Thriller

4  

Lokanath Rath

Action Classics Thriller

बचन (भाग -ग्यारह )...

बचन (भाग -ग्यारह )...

5 mins
516


अगले दिन सुबह उठकर अशोक और आशीष तैयार होगये। वो दोनों घर से निकलने के पहेले अशोक ने बोला, " भाई, माँ को सरोज के सारे कारनामो के बारे मे कुछ पता है क्या? अगर नहीं है तो अब चलो माँ को सब बता देते है। "पहेले आशीष थोड़ा मना कर रहा था, पर अशोक उसे लेकर सुचित्रा देबी के पास गया। दोनों बेटे को देख सुचित्रा देबी बहुत ख़ुश होगए और बोले, "अरे आज इतने सुबह तैयार होकर तुम दोनों कहाँ जारहे हों? नास्ता तो करके जाओ। " तब अशोक ने उनके पास बैठा और आशीष को बैठने को बोला। उसके बाद अशोक ने बोला "माँ हम दोनों को पहेले माफ करदो। हमने एक बात आप से छुपाया है। भाई के शाला सरोज को लेकर बहुत कुछ हम लोगों को झेलना पड़ा। ना चाहते हुए भी कुछ भूल हम करगए सिर्फ दिए हुए बचन और रिश्ते को निभाने के लिए। आपको बताने का हिम्मत हमारा नहीं हुआ। वो जो अपनी ब्यापार से पैसो का कुछ खर्च करना, हिसाब मे कुछ गड़बड़ी होना, ये सब सिर्फ उस सरोज के खातिर।

उसे नशे का लत लग गया था। इसीलिए वो भाभी, भाई, अमिता चाची, सबको बहुत परेशान करता था। मुझे ये सब देखा नहीं गया। फिर मे और भाई दोनों मिलकर उसको रमनलाल जी के सहायता से सुधार केंद्र मे भर्ती किए थे। हम सोचे थे की वो सुधर जाएगा और अपनी जिन्देगी ठीक से जिएगा। पर अब वो वहाँ से कुछ लोगों को घायल करके भाग गया है। अब हम दोनों सुधार केंद्र और पुलिस चौकी जाकर सारे तथ्य के बारे मे समझेंगे और फिर आगे क्या करेंगे सोचेंगे। आपको भी बताएँगे। " ये सारे बाते बोलते हुए दोनों अशोक और आशीष शर झुकाके बैठे रहे। सुचित्रा देबी दोनों को ऐसे देखकर बोले, " उदास मत होना मेरे बच्चों। सब ठीक होजायेगा। मुझे भी इसके वारे मे कुछ पहेले से मालूम था। तुम दोनों जो गलतियां किए सारे अपनी परिबार और रिश्तों के इज्जत बचाने के लिए। हाँ तुम दोनों गलतियां किए जरूर पर कुछ अच्छा करने जे लिए ;इसीलिए मे जानते हुए भी कभी रोका नहीं। हाँ मुझसे जरूर गलती हुआ जब मे अशोक को घर से निकल जाने के लिए कहा, कियूँ की मुझे तब असली बात की पता नहीं था। अब तुम दोनों जाओ और रास्ते मे नास्ता करलेना। हाँ आशीष तुम फोन करके बिकाश जी को बोलो की वो दुकान थोड़ा जल्द आजाए। " आशीष ने हाँ कहा और दोनों भाई वहाँ से निकल गए।

पहेले दोनों जाकर सुधार केंद्र पहुँचे। वहाँ वो लोग वहाँ की संचालक से मिले। फिर उन्होंने सरोज के बारे मे बोलना सुरु किए, " सरोज बाकि लोगों से अलग रहेता था। बात बात पर वो लढाई झगड़ा करता था। कभी किसीसे वो ठीक से बात नहीं करता था। उसको नशे का इतना आदत पड़ गया था की कभी कभी उसका हालात बहुत बिगड़ जाता था। तब डाक्टर साहब आकर उसका कुछ इलाज करते थे। वो हमारे कुछ लोगों को लालच देता था यहाँ से भागने मे मदत करने के लिए। जब उसको हम पूछते थे तो वो चुप होकर अपनी घुसा दिखाता था। उसका ऐसा कारनामें जानने के बाद रमनलाल जी ने तय किए थे की आज उसको दुशरे जगह लिआ जायेगा और वहाँ उसका इलाज करवाएंगे। उसको इसके बारे मे बता दिआ गया था और उसके पिता माता को भी बोला गया था। काल सुबह जब कुछ हमारे लोग अपने काम पे लगे हुए थे और कुछ बाजार गये हुए थे, तो अचानक कुछ लोग एक गाड़ी मे आये और जबरदस्ती यहाँ घुसकर हमारे लोगों के साथ लढाई करके घायल करदिए और सरोज को लेकर चले गए। यहाँ आप देख सकते है वो लोग कितने तोड़ फोड़ किए। हमारे घायल लोग हॉस्पिटल मे है। हम पुलिस चौकी मे शिकायत दर्ज करदिए। " ये सुनकर अशोक और आशीष बहुत दुःखी हों गए। दोनों भाई उनको माफ़ी माँगे। रमनलाल जी वहाँ नहीं थे, इसीलिए फोन करके अशोक ने उनसे माफ़ी माँगा और उसके तरफ से इस संस्था के जो कुछ हों सकता है करने का बचन दिआ।

अशोक का बात सुनके रमनलाल जी बोले, " ठीक है बेटा। इसमें तुम लोगों का क्या भूल है? तुम लोग चाहते थे की सरोज सुधर जाए, अच्छा इनसान बनजाए। मुझे दुःख होता है की ये बात वो समझ नहीं पाया। ठीक है बेटा जब कभी जरुरत होगा हम तुम्हारा मदत लेंगे। अब पुलिस उसे ढूंढेगा और क़ानून के हिसाब से जो सजा देनेकी है उसको देगा। उसमे हम और आप कोई क्या कर सकता है? मे वहाँ आने के बाद तुमसे बात करूँगा। " इतने मे फोन कट गया। फिर अशोक और आशीष वहाँ से निकले और हॉस्पिटल गए घायल लोगों से मिलने। वहाँ जाने के पहेले अशोक ने आशा को फोन करके उनको मदत करने के लिए बोला। दोनों हस्पताल जानेके समय रास्ते मे उन लोगों के लिए कुछ फल लेकर गए। वहाँ पहुँच के अशोक और आशीष सब लोगों से मिले, उनको लाएहुआ फल दिए। उनसे थोड़ा समय बिताए। उन लोगों से बात करके एक जानकारी मिला की जो लोग सरोज को लेने आये थे उनमे एक नामी बदमाश भैरब भी था। सारे राज्य मे भैरब बहुत हत्या, चोरी, अबैध धंदा और जितना घिलौना काम है, सब मे जुडा हुआ है। अब सरोज का उसके साथ मिलना अशोक और आशीष को बहुत परेशान कर रहा था। फिर वहाँ से दोनों आशा को बोलके पुलिस चौकी गये। वहाँ के थानेदार साहब अशोक को बहुत अच्छे से जानते है। वो अशोक को बोले, "अभी ये सरोज एकदम से बिगड़ चूका है। हमें पताचला की उसको वहाँ से लेने के लिए फेरार आरोपी भैरब आया था। अब हम लगे हुए है उसको पकड़ने के लिए। पकड़ा जाने के बाद क़ानून उसको सजा देगा। मुझे उसको सुधारने के लिए आपको जो मदत करना था मे करचूका हुँ, अब और कुछ नहीं कर सकता। " उनकी बात सुनके अशोक बोला, "हाँ साहेब, आप जो सजा देनेको है उसे दीजएगा। हम आप का सुक्रिया अदा करने आये थे जो मदत आप पहले हमें किए थे, उसके लिए। हम भी अभी परेशान है। अब सायद सरोज उसके पिता माता और हमसे बदला लेने चाहेगा। इसीलिए आप थोड़ा ध्यान दीजियेगा, ये हम बिनती करते है। " तब थानेदार ने बोले,"हम उसके घर के पास कुछ पुलिस का ब्यबस्था करदिए है। अब आपके घर और दुकान के सुरख्या के ब्यबस्था करदेंगे। " तब थानेदार को धन्यवाद देतेहुए दोनों अशोक और आशीष अपने घर के लिए निकल गए। दोनों बहुत दुःखी थे।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Action