Namrata Saran

Tragedy

4.5  

Namrata Saran

Tragedy

बच्चे बड़े हो गए

बच्चे बड़े हो गए

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"आईऐ, आईऐ, शर्माजी, आईऐ भाभीजी, कितने सालों बाद हम मिल रहें हैं" माथुर साहब ने आगंतुकों का स्वागत करते हुए घर के भीतर बुलाया।

"भाई साहब,बिल्कुल सही, काफ़ी सालों बाद मिल रहें हैं हम, कहाँ तो चौबीस घंटों का साथ था" शर्माजी भीतर आते हुए बोले।

"सही कहा आपने, एक दूसरे के घर के खानों की खुशबूओं से दोनों घर महकते थे" माथुर साहब सोफे पर बैठते हुए बोले।

"भाभीजी, आप तो अभी भी वैसी ही दिखती हैं, जैसी तब दिखतीं थी" मिसेस माथुर ने मिसेस शर्मा से कहा।

"अरे नही, अब कहाँ, अब तो ढलान पर बैठे हैं, लेकिन भाभीजी आप तो बिल्कुल बदल गई हैं, दुबली भी बहुत हो गई हैं, क्या बात है? "मिसेस शर्मा ने मिसेस माथुर से पूछा।

"अ..हह..वही कि अब उम्र हो चली है" मिसेस शर्मा फ़ीकी सी हँसी हँसते हुए कहा।

"अरे, वो कहाँ है , हमारे चुन्नू मुन्नू , भई हमें तो सबसे ज़्यादा उन दोनों शैतानों की ही याद आती थी, दोनों यहाँ कम , हमारे घर में ज़्यादा रहते थे, सारा दिन धमाचौकड़ी मचाते थे, रमा का भी दिल लगा रहता था, महसूस ही नही होता था कि हमारे औलाद नही है" शर्माजी इधरउधर नज़र दौड़ाते हुए बोले।

"अब तो उनके भी बच्चे हो गए शर्माजी" माथुर साहब मुस्कुराते हुए बोले।

"हाँ, सो तो है, अब इतने साल जो हो गए हैं, हम तो नौकरी के चक्कर में मुंबई जाकर ऐसे उलझे कि फिर यहाँ से वहाँ ट्रांसफर का सिलसिला चलता ही रहा, इधर की कोई सुध ही नही ले पाए" शर्माजी लंबी सांस भरते हुए बोले।

"भाई साहब , आपकी वो बात हमेशा याद आती है, कैसे आप दोनों बच्चों को कंधों पर बैठाकर रावण दहन दिखाते थे" मिसेस शर्मा बीच मे बोलीं।

"दोनों कैसे नाच नचाते थे, आज ये चाहिए, और बस अभी चाहिए, भाई साहब लाते भी थे ढूंढ ढूंढ कर, उनकी फ़रमाईशी चीजों को" शर्मा जी बोले।

"वो दोनों हैं कहाँ? उनके बच्चों से मिलने का मन है? बुलाईए न भाभीजी, बहुओं को, बच्चों को" मिसेस शर्मा उत्सुकता से बोलीं।

"अरे भाभीजी, वो लोग यहाँ कहाँ, अपने अपने घरों में सेटिल हो गए हैं"माथुर साहब कुछ बोझिल स्वर में बोले।

"अरे, लेकिन भाई साहब..." कुछ बोलते हुए शर्माजी रुक गए।

माहौल थोड़ा संजीदा हो गया, माथुर साहब आँसू भरी आँखों के साथ भर्राई हुई आवाज़ मे हँसते हुए बोले-

"आपके चुन्नू मुन्नू अब बड़े हो गए,शर्माजी.. हा..हा..हा। 



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