बात का बतंगड़
बात का बतंगड़
शुभम बहुत उदास बैठा है और सोच रहा है। ऐसा क्या हो गया जो शिवानी शादी के 3 महीने बाद ही मुझे छोड़कर तलाक की मांग करने लग गई। मैंने और घर वालों ने तो उससे कुछ कहा भी नहीं। खाली उसको इतना ही बोला था कि अभी मेरा एमडी चल रहा है स्टाइपफंड भी कम मिलता है और घर का कंस्ट्रक्शन भी करवाया है।
तो थोड़े दिन तुम घर में मदद कर दो और फालतू की शॉपिंग मत करो। इसमें कुछ गलत तो नहीं है ना पति पत्नी दोनों को मिल जुल कर रहना है। दोनों ही कमाने वाले हैं। अभी थोड़ी तंगी है तो पत्नी थोड़ा पैसा घर में दे देगी तो क्या हो जाएगा। मैंने हमेशा देने को तो नहीं बोला था। फिर ऐसा क्या हो गया जो उसने अपनी मां को बुला लिया। और मां और बेटी ने मिलकर हमको इतना सुनाया। इसकी कमाई पर आपका कोई हक नहीं है इसकी इच्छा हो जैसे पैसा खर्च करे। आप मांगने वाले कौन होते हो। मैंने उनको समझाने की इतनी कोशिश करी ।
मगर शिवानी और उसकी मां दोनों ने ही हमको इतनी खरी-खोटी सुनाई और केस करने का, तलाक का केस करने की धमकी दे डाली। मुझे समझ नहीं आता है मैं क्या करूं।
आत्मनिर्भर कमाने वाली पढ़ी-लिखी पत्नी के पैसे में कभी इतना भी हक नहीं बन सकता है कि वह हमारी मुश्किल में मदद कर दे। जब शादी हो कर इस घर में आई है घर का सदस्य बन गई है हम पूरा खर्चा उठा सकते हैं। और उठा रहे हैं, तो घर के मेंबर के जैसे मदद मांगने पर उसका मदद करने का फर्ज नहीं बनता। उसकी जगह की तरफ से इतनी बेइज्जती उसको बर्दाश्त नहीं हो रही है। वह मन में सोचता है यह रिश्ता जिसमें एक दूसरे के प्रति समर्पण की भावना नहीं है। मैं कमाती हूं वाला अहम है। इस रिश्ते को मैं संभाल कर नहीं रख पाऊंगा ।
क्योंकि इतना स्वार्थ जुड़ा है। इसीलिए इस का टूट जाना ही बेहतर है। और वह तलाक की कार्यवाही के लिए तैयार हो जाता है। तो देखा यह छोटी सी बात है जरा सी उसने मदद मांग पर अगर उसकी पत्नी मदद कर देती या प्यार से मना कर देती। मदद करने में कोई बुराई नहीं थी ।अगर बार-बार ऐसा करती तो बात अलग थी मगर जब उसने एक ही बार में घर में बवाल मचा दिया और तलाक की मांग कर डाली। यह एक सच्ची घटना है। इसको क्या कहेंगे आत्मनिर्भरता होना और स्वच्छंद होना दोनों में फर्क है। यह मनस्वी वर्तन की तरफ इशारा करता है, इसी तरह से आजकल बहुत तलाक हो रहे हैं जोकि बहुत गलत है। कोई एक दूसरे से एडजस्ट ही नहीं करना चाहता है ।
पढ़े लिखे होने का मतलब यह नहीं है, कि आप एक दूसरे के भावनाओं के साथ एक दूसरे के साथ सामंजस्य ना बिठाए। अच्छा तो यह रहता कि वह बुद्धि से सोच कर घर में एक बार मदद कर देती। अपनी मां को नहीं बताती और बात को नहीं बढ़ाती। मगर इसमें उसकी गलत सोच आड़े आई और बात का बतंगड़ बन गया और तलाक तक की नौबत आ गई।
3 महीने में तलाक की कार्यवाही भी चालू हो गई, और तलाक हो भी गया। छोटी सी बात का बतंगड़ बन कर सब बर्बाद हो गया।
आजकल ऐसा बहुत ज्यादा हो रहा है।
