Husan Ara

Drama Inspirational

5.0  

Husan Ara

Drama Inspirational

बारिश

बारिश

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भागती -दौड़ती किसी तरह, रिया एक घर के बाहर आकर रुकी। बारिश का तो मौसम था भी नही फिर कहाँ से आ गई ..झुंझलाते हुए उसने खुद से सवाल किया।

अभी थोड़ी देर पहले वह कॉलेज से निकली थी, कुछ सामान खरीदने के बाद किसी ऑटो के इंतेज़ार में थी ।तभी अचानक तेज बारिश से बचने के लिए .....छोटा सा ही मगर एक घर नज़र आया तो उसने उसी तरफ दौड़ लगा दी। उस घर के छज्जे के नीचे कुछ सुरक्षा तो मिली थी .... मगर फिर भी बारिश की फुहारों से वह बच नही पा रही थी।

कभी अपनी फाइल्स को बचाती तो कभी बैग को.... घर के अंदर से खिड़की से शायद कोई उसकी परिस्थिति को भांप गया था।

तभी धीरे से दरवाज़ा खुलने की आवाज़ ने रिया का ध्यान अपनी ओर खींचा।

दीदी आप अंदर आ जाइये, अगर बुरा न लगे तो। दूसरी लाइन बोलने में उस बच्ची ने ऐसा लहज़ा अपनाया जैसे अंदर आने को कहकर, उसने कोई अपराध कर दिया हो।

रिया उसको मना नही कर पाई और हां कहते हुए ,मुस्कुरा कर उसके पास आ गई। अंदर आने पर उसे एहसास हुआ कि बच्ची शरीरिक रूप से विकलांग थी , और उस समय घर मे अकेली भी।

घर मे सामान ज़्यादा नही था, मगर करीने से लगा हुआ था। लड़की भी भले ही पुराने कपड़े पहने थी मगर साफ सुथरी थी,दो चोटी बनाए थी। चलने को सहारे के लिए एक डंडा उसके हाथ मे था, जो उससे डबल हाइट का था। रिया चारो तरफ देख कर एक पलंग पर जा बैठी, अपना बैग चैक कर के निश्चिंत हुई ,कि बारिश ने कोई नुकसान नही पहुँचाया था। बारिश अभी भी ज़ोरो पर थी , चिंता की लकीरें एक बार फिर उसके माथे पर खिंच चुकी थी

धन्यवाद स्वरूप रिया ने उस लड़की की ओर देखा , जो कब से उसी की ओर देख रही थी। एक दूसरे पर नज़र पड़ते ही दोनों मुस्कुरा दीं।

माँ बाबा कहाँ हैं? रिया ने बात शुरू की। बाबा तो हमारे साथ नही रहते, माँ काम पर गई है, सुबह ही चली जाती है, आगे जाकर जो बड़े बड़े बंगले हैं ना वही पर करती है मेरी माँ साफ सफाई, वह बिना रुके बोले जा रही थी,जाने कब से अकेली बैठी होगी .....चुपचाप.. रिया सोचे जा रही थी कि वो बच्ची आगे बोली , पहले तो मै भी जाया करती थी माँ के साथ, माँ का हाथ भी बटा देती थी, मगर जबसे टांग में चोट लगी है ,चल कर थक जाती हूं जल्दी ही। माँ मुझे एक कोने में बैठा देती थी, उस दिन मालकिन अपना छोटा वाला बाबू मेरे पास बैठा गई , चली गई नहाने....... कुछ देर तो सम्हालती रही , फिर बाबू ने मेरा डंडा दूसरी तरफ गिरा दिया.. जब तक उठाती, बाबू नीचे गिर गया चोट लग गई उसको ....कहते कहते उसकी आंखें भर आई... शायद वह बताना न चाहती थी कि उसके बाद उसके साथ क्या हुआ, ।

फिर रिया की तरफ देख कर बोली , अब माँ अपने साथ नही ले जाती, इस समय यहीं खिड़की पर बैठे सब दीदी भय्या को देखती रहती हूँ। कॉलेज से आते जाते। ...मैंने तो माँ से कह दिया है कि मुझे भी यहीं जाना है बड़ा होकर। कहकर वह मुस्कुरा दी।

नम आंखों में भी इतनी सुंदर मुस्कान देख कर रिया ने मन ही मन कुछ संकल्प लिया , फिर बोली , पढ़ना चाहती हो ?.... बोलो गुडिया.. । लड़की शून्य सी खड़ी देख ही रही थी कि अचानक उनकी बातें सुनते हुए उसकी माँ आ गई। अपना छाता बंद करके अपनी बेटी से बोली ये ले लाली ध्यान से रख दे, कल मालकिन को वापस करना है जाकर, और ये ले कुछ खा ले ... एक पुराना सा थैला उसे पकड़ाया।

सामान एक तरफ रखकर लाली अपनी माँ से बोली .. माँ बताना वो वाली बात जो तुम मुझे समझती हो जब मैं पढ़ने को कहती हूं...

माँ मुस्कुराकर रिया को देख रही थी। बाहर की बारिश की स्थिति को देखकर वह रिया के वहाँ मौजूद होने का कारण समझ गई थी।

हल्की होती बारिश को देख रिया अपनी फाइल्स समेटती भी जा रही थी , और लाली की माँ के जवाब का इंतेज़ार भी कर रही थी।

माँ की चुप्पी देखकर रिया खुद बोल पड़ी....

मैं इस वक़्त रोज़ फ्री रहती हूं, कॉलेज से वापस जाते समय तुम्हारी गुड़िया को पढ़ाने आया करूँगी, कल कुछ कॉपी किताबें लेकर आऊँगी.. लाली को देखते हुए मुस्कुराकर बोली । लाली के चेहरे की खुशी देखते ही बनती थी, उसने आकर अपनी माँ को पीछे से बाहों में जकड़ लिया।

माँ कुछ बोलने की स्थिति में नही थी, अपने हाथ जोड़कर रिया की तरफ आदरभाव से देख रही थी ... बस ...

रिया ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा , अपनी बेटी के मन की पढ़ने की लगन को प्रोत्साहित करना अब तुम्हारा कर्तव्य है। आज मैं तुम्हारी गुड़िया को सहारा देकर ऊपर चढ़ने में मदद करूँगी, कल जब वह खुद दूसरो की मदद करने के लायक हो जाएगी, तो तुम्हे ज़रूर उस पर गर्व होगा।

रिया कब की घर से जा चुकी थी, दोनों माँ बेटी उसे जाते हुए खिड़की से देख रहीं थी। माँ बादलों को देखकर यही सोच रही थी, कि आज बारिश के रूप कितनी खुशियां उन पर बरस गई थीं।


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