बांझ मां
बांझ मां
"मां तो हर औरत को कहा जा सकता है, जो हमें निस्वार्थ प्रेम करे, जिसके स्नेह भरे आशीर्वाद से हर मुश्किल आसान लगने लगे। जो दोपहरी भरे जीवन में पेड़ सी शीतल छाया सा अहसास दिलाती हो, मैं एक बच्चे की नहीं कई बच्चों की मां हूं"- संध्या जी ने वर्षा जी को कहा।
संध्या जी की अपनी कोई संतान नहीं है। संध्या जी ने अपने घर में नीचे बड़ा कमरा आंगनवाड़ी केन्द्र वालों को किराए पर दिया हुआ था। वर्षा जी आंगनवाड़ी केन्द्र की परिचलिका हैं।
शहर के अधिकतर बच्चे तो प्ले स्कूल ही जाते हैं परन्तु जिनके मां बाप की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं, वो अपने बच्चों को संध्या मौसी के घर में चल रहे आंगनवाड़ी केंद्र में ही भेजते हैं।
बच्चे, बच्चों की माएं; सभी संध्या जी को ' मौसी ' कहकर ही बुलाते हैं।
संध्या जी की शादी 15 साल की उम्र में हो गई थी। कम उम्र में शरीर में कमजोरी, खून की कमी के चलते 2 बार गर्भपात हो गया था। इसके बाद वो कभी मां नहीं बन सकी। खूब इलाज कराया, जड़ी बूटियां, पूजा पाठ सब करके वो थक चुकी थी।
फिर एक दिन आंगनवाड़ी केंद्र के लिए वर्षा जी जगह ढूंढ़ने आईं। संध्या जी ने अपना घर का कमरा किराए पर दे दिया।
संध्या जी अकेली ही रहती थीं, उनके पति भी सुबह दफ्तर चले जाते, शाम को आते। इसलिए वर्षा जी को उनका घर बच्चों के लिए एक सुरक्षित स्थान लगा और उन्होंने वहीं अपना केंद्र शुरू किया ।
अब पड़ोस के बच्चे आते , खूब चहल पहल होती। संध्या जी का भी मन लगा रहता और वर्षा जी को सहयोगी भी मिल गई।
बातों बातों में वर्षा जी ने संध्या जी से पूछ ही लिया -" बुरा मत मानना!! पर क्या तुमने कभी भाई साहब की डाक्टरी जांच कराई?"
संध्या जी -" आदमियों की भी डाक्टरी जांच होती है क्या?? मैं तो कई सालों से सरकारी अस्पतालों के चक्कर काट रही हूं । परंतु मुझे कभी किसी ने ये सलाह नहीं दी। "
वर्षा जी -" हां!! आजकल के खाद डालकर पके अनाज, दिनचर्या, तनाव आदि अनेक कारणों से पुरुषों में भी कुछ कमजोरियां पाई जाती है। मैं सरकारी डिस्पेंसरी की डॉक्टर से बात करवा दूंगी। तुम वहां भाई साहब की जांच कराओ।"
संध्या जी ने अपने पति केशव जी को ये सब बताया । और डाक्टर से जांच भी करवाई। जांच में पता चला कि केशव जी में कुछ कमी है। उन्हें दवाइयां भी दी गई।
जबसे केंद्र शुरू हुआ, जो मौहल्ले की औरतें संध्या जी को देख तरह तरह कि बातें करती थीं, वो सब अब अचानक से उन्हें दीदी, मौसी बुलाने लगी ।
सबके बच्चे अपनी मां से ज्यादा संध्या मौसी से प्यार करते थे। इसलिए आंगनवाड़ी बंद होने के बावजूद भी उन्हीं के घर के पास खेलते रहते।
किसी बच्चे को बुखार हो जाता, और 2-3 आंगनवाड़ी नहीं आता तो संध्या जी उनके घर जाती उनका हालचाल पता करने
संध्या जी का बच्चों के प्रति यूं प्यार और समर्पण देख, सबको खुद की सोच पर शर्मिंदगी सी महसूस हुई। कुछ ने तो उनसे माफी भी मांगी।
संध्या जी सबको हमेशा यही कहती -" अब ये सिर्फ तुम्हारे नहीं मेरे भी बच्चे है ।"
वर्षा जी -" संध्या जी!! आपका प्यार और समर्पण देखकर तो मैं हैरान हूं। सच में अपने साबित कर दिया कि सिर्फ जन्म देने वाली मां ही मां नहीं होती। और देखिए आपके समर्पण का ही नतीजा है के अब जो बच्चे प्ले स्कूल जाते थे वो भी यहां आने शुरू हो गए हैं।"
संध्या जी -" अरे बच्चे तो मुझसे इतना घुल मिल गए। छुट्टी होने के बाद तक यहीं खेलते रहते है। आपका बहुत बहुत शुक्रिया मेरे सुने आंगन में, इतने फूल खिला दिए आपने।"
वर्षा जी -" भाई साहब का इलाज चल रहा ना!! कुछ उम्मीद है अब!!"
संध्या जी -" नहीं डॉक्टर कह रहे हैं । दवाई लेते रहो। बाकी उम्मीद कम ही है।
वर्षा जी -" कोई नहीं कम से कम आपके अंदर जो हीन भावना थी खुद को लेकर, जो परेशानी थी ; वो तो कम हो गई ना!!"
संध्या जी -" हां!! जबसे आपने यहां आंगनवाड़ी शुरू की तबसे ही मेरी सारी समस्याएं दूर होती जा रही है।"
एक दिन पड़ोस की भावना और उसका पति आए संध्या जी के घर ; वर्षा जी भी अभी केंद्र पर ही मौजूद थी।
वर्षा जी -" अरे भावना!! तुमने बच्ची को 6 महीने वाला टीका लगवाया या नहीं ? अब आंगनवाड़ी में ही आयेगी डॉक्टर यहां लेे आना बिटिया को। और बाकी तीनों बेटियों को पोलियो की दवाई भी यही पिलाई जाएगी।"
भावना -" जी मैडम जी। आज एक प्रार्थना लेकर आई हूं संध्या मौसी के पास!!"
संध्या जी -" कहो भावना!! कोई परेशानी है क्या?? तुम्हारा पति काम पर जाने लगा फिर से!!"
भावना -" नहीं!! अभी काम छूटा हुआ है। 3 बेटियां है और घर चलाने के लिए मुझे भी काम पर जाना पड़ेगा। मेरी आपसे हाथ जोड़कर विनती है एक!! कहते हुए मन तो बहुत रो रहा है पर क्या करूं मां हूं ना; बच्चे के भले के लिए कुछ भी कर जाऊंगी।"
संध्या जी -" बताओ !! मैं क्या कर सकती हूं तुम्हारे लिए।"
भावना -" मौसी !! मेरी एक बेटी को गोद ले लो। मेरी ज़िम्मेदारी कम हो जाएगी और मेरी बेटी का भविष्य सुधर जाएगा।"
संध्या की आंखों में आंसू आ गए, फिर उन्होंने खुद को संभालते हुए कहा -" कोई बात नहीं तुम काम ढूंढ लो! तुम्हारी बेटियों को मैं रख लूंगी। अभी जल्द में इतना बड़ा फैसला ना करो। "
भावना -" नहीं !! मैं जल्दबाजी नहीं कर रही। बहुत सोच समझ के मेरे पति और मैंने ये फैसला किया है। कम से कम एक बेटी का भविष्य तो सुरक्षित हो जाएगा। मेरी बच्ची को रोज मैं आंखों के सामने पलता हुआ देखूंगी। आपसे बेहतर मां उसे कहां मिलेगी।"
संध्या जी - " मैं अकेले ये फैसला नहीं कर सकती!! शाम को केशव जी आयेंगे उनसे पूछकर बताऊंगी। तब तक तुम फिर से सोच लो एक बार। तुम कर लो काम बच्चों को मै रख लूंगी अपने पास। हमेशा के लिए अपनी बेटी को दूर मत करो।"
भावना -" नहीं !! सोच लिया मैंने। वैसे भी बेटी तो ब्याहने के बाद भी हमेशा के लिए दूर चली ही जाती है। इससे पहले मैं उसको एक अच्छा भविष्य दे पाऊं तो इससे खुशी की बात क्या होगी मेरे लिए। आप मना लेे केशव जी को। मेरी बेटी का जीवन सुधर जाएगा।"
संध्या जी ने केशव जी से बात की। केशव जी संध्या की ममता को उसकी आंखों के आंसूओं में देख रहे थे। उन सुनी पड़ी आंखों में मां बनने की चमक फिर से उमड़ती हुई उन्हें नजर आ रही थी।
केशव जी ने भावना और उसके पति को बुलाया और कहा -" मैं बेटी को कानूनी रूप से गोद लूंगा। ऐसे नहीं की कुछ समय बाद तुम कहो कि बेटी वापिस चाहिए या
कोई बेटी को बड़े होने के बाद ये कहे की तुम तो गोद ली हुईं हो।"
भावना और उसके पति ने झट से हां कर दी।
संध्या जी, केशव जी ने सब रिश्तेदारों, गली पड़ोस के लोगों को निमंत्रित किया, भोजन करवाया।
बच्चा होने पर जो कुआं पूजन की रस्म होती है, वो भी करवाई।
संध्या जी सबकी मौसी तो थी है अब एक बेटी की मां भी बन गई।
दोस्तों ! ये एक सच्ची कहानी है। बस पात्रों के नाम बदल दिए गए हैं ताकि कोई भी उस बेटी को ये एहसास ना करवा दे की तुम गोद ली हुई हो।
या कोई भी पुरुष या स्त्री केशव जी की बीमारी का कोई गलत मतलब ना निकाले।
बेटा तो हर कोई गोद लेे लेता है , पर बेटी को गोद लेना अपने आपमें एक प्रेरणादाई काम है।
हमारे समाज को संध्या जी और केशव जी जैसे इंसानों की बहुत जरूरत है।
मैं उन्हें पूरे दिल से सलाम करती हूं और उनकी बेटी के लिए उज्जवल भविष्य की कामना करती हूं।