Shelly Gupta

Drama

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Shelly Gupta

Drama

बाज़ी

बाज़ी

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गीता को लगता था जैसे भगवान उसके हाथ में किस्मत की लकीरें खींचना ही भूल गए।दस साल की थी वो जब मां दूसरे बच्चे को दुनिया में लाते हुए बच्चे समेत मर गई और उसको छोड़ गई एक दादी के पास जो उसकी शक्ल से ही नफरत करती थी और एक पिता जिसे उसके होने या ना होने से कोई फर्क ही नहीं पड़ता था। छोटी सी उम्र से ही दादी गीता से घर के सारे काम करवाती थी और हर गलती पर चट से दो जड़ देती थी।गीता बेचारी डर के मारे रो भी नहीं पाती थी।

मां की मौत के दो साल बाद उसके पिता ने दूसरी शादी कर ली तो उसे सौतेली मां के नाम से डर लगने की जगह एक आस सी बंधी थी कि शायद अब उसके दिन फिरेंगे, शायद उसकी किस्मत में भी किसी का प्यार लिख दिया होगा अब भगवान ने, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। 

सौतेली मां तो सौतेली मां ही निकली। वो भला क्यों अपना समय व्यर्थ करती एक ऐसी लड़की के लिए जिसे उसके अपने पिता और दादी ही प्यार और इज्ज़त नहीं देते थे। और वैसे भी उसे प्यार देकर एक मुफ्त की नौकरानी को कौन हाथ से निकलने देता। सो गीता की किस्मत जैसी थी वैसी ही खराब रही।

उम्र के अठारहवें साल में जाकर किस्मत गीता पर मेहरबान हुई। साथ वाले घर में रमन भैया का शायद कोई नया दोस्त बना था।रमन भैया और उनका वो दोस्त सर्दियों में छत पर धूप में बैठे ना जाने लेपटॉप पर क्या करते थे और उनके दोस्त की निगाहें छत से दिखाई दे रहे गीता के सहन पर जमी रहती जहां गीता बग़ैर रुके लगातार घर के कामों में लगी रहती। और गीता उसके लिए तो ये नज़र सूखी ज़िन्दगी में बहार का झोंका थी।

इन्हीं खुशनुमा दिनों में एक दिन रमन भैया की मम्मी गीता के लिए रमन भैया के दोस्त का रिश्ता लाई। उस दिन पता चला कि उनका नाम राघव है और उनके परिवार में सिर्फ एक मां ही है जो बहुत बीमार हैं और बिस्तर से हिल भी नहीं सकती। इसलिए रिश्ता भी राघव ने आंटी के हाथों भिजवाया।

राघव अच्छा पढ़ा लिखा था और एक कंपनी में अच्छी नौकरी पर था।गीता के परिवारवालों को भला इस रिश्ते से क्या ऐतराज होना था। उन्होंने बस एक ही शर्त रखी कि वो दहेज में एक फूटी कौड़ी भी नहीं देंगे और राघव ने फट से उनकी ये शर्त मान ली। उसने बस गीता से एक ही प्रश्न पूछा कि क्या वो उसकी बीमार मां की सेवा खुशी खुशी कर देगी। गीता को इतने सालों बाद अपना परिवार मिलने जा रहा था, उसे भला क्या दिक्कत लगती, सो उसने हां कर दी।

थोड़े ही दिनों में राघव और गीता की शादी हो गई और एक जोड़ी कपड़े में गीता राघव के घर आ गई। वहां पहली बार गीता राघव की मां से मिली। उनके दाएं हिस्से पर फालिज का अटैक आया हुआ था और अटैक इतना जोरदार था कि उनके ठीक होने की गुंजाइश ना के बराबर थी।और रही सही कसर उनकी दिल की बीमारी ने पूरी कर दी थी। सो वो बिस्तर के ही लग कर रह गई थी।

गीता को उन्हें देखकर बड़ा दुख हुआ। पूरा कमरा बड़ी बुरी हालत में था और खुद मां का हाल भी बड़ा बुरा था। उनसे और कमरे से आ रही बदबू से उसने अंदाज़ा लगा लिया कि राघव उनकी कोई देखभाल नहीं करता। उसे बहुत बुरा लगा ये सब देखकर। उसने मां को नमस्ते कर के उनके पैर छुए तो उन्होंने कुछ बोलने की कोशिश करी जो गीता को बिल्कुल समझ नहीं आया पर राघव समझ गया था और उसने बोला कि मां तुम्हे आशीर्वाद दे रही हैं।

बाद में राघव ने बताया कि नौकरी के साथ वो मां को पूरा समय नहीं दे पाता इसलिए मां का कमरा और मां की हालत ऐसी है पर अब तुम आ गई हो ना तो सब ठीक हो जाएगा। बोलो रखोगी ना तुम मां का ख्याल। गीता ने हां में सिर झुका दिया। 

अगले दिन से ही गीता ने घर संभाल लिया और कुछ ही दिनों में सारे घर की कायापलट कर दी।और वाकई गीता ने कभी राघव को शिकायत का मौका नहीं दिया। मेहनती तो वो शुरू से ही थी और अब तो उसका अपना घर था तो उसका जोश देखते ही बनता था। मां की ,उनके कमरे की सबकी हालत अब सही रहने लगी थी। 

राघव के ऑफिस जाने के बाद गीता जल्दी जल्दी घर के सारे काम निपटाती और फिर मां को अच्छे से साफ सुथरा करके उनके कपड़े बदलती और बालों में तेल लगाकर उनके बाल अच्छे से बनाती। फिर उनके लिए उसने जो दलिया या खिचड़ी बनाई होती वो उन्हें अपने हाथों से खिलाती और समय से उनकी दवाईयां देती। गीता को ये सब करके बहुत तृप्ति हासिल होती जो उसे अपने मायके में सारे काम करके भी हासिल नहीं हुई।

मां को बिस्तर पर लेटे देख अब एकदम से लगता नहीं था कि वो बीमार हैं बस जब वो बोलने की कोशिश करती या हाथ हिलाती तभी पता चलता था लेकिन उनकी खुशी उनके चेहरे से दिखती थी और साथ ही उनका गीता के लिए बढ़ता प्यार भी उनकी आंखों में दिखता था और गीता भी अब उनके इशारे और टूटी फूटी भाषा कुछ कुछ समझने लगी थी। राघव की मां को पाकर गीता की ज़िन्दगी में मां की कमी पूरी हो गई थी।

राघव भी गीता से बहुत खुश था इसलिए उसने अब ऐसी नौकरी कर ली थी जिसमें बाहर ज्यादा रहना पड़ता था पर उसने गीता को समझा दिया था कि ये तंगी सिर्फ कुछ साल की बात है,फिर उसे बहुत बड़ा प्रोमोशन मिलेगा। ये सुनकर एक बार तो गीता बड़ा दुखी हुई पर फिर राघव की खुशी और उसके प्रमोशन की खातिर उसने खुद को समझा लिया। वैसे भी गीता बड़ी सरल स्वभाव की थी और सबकी खुशी का ध्यान रखती थी और राघव में तो उसकी जान बसती थी तो कैसे उसकी बात ना मानती या समझती।

पर धीरे धीरे राघव का टूर का समय बढ़ने लगा था। शुरू में तो वो कुछ ही दिन बाहर जाता था पर अब तो वो महीना भी लगा आता था।लेकिन वो हर दूसरे तीसरे दिन उससे फोन पर बात जरूर करता था और हर बार कहता था कि बस साल दो साल की बात है बाहर रहने की वरना अब उसका बाहर रहने का मन नहीं करता और गीता को अपने राघव पर ढेर सारा प्यार आ जाता था।

गीता अब अपनी ज़िन्दगी से बहुत खुश थी। उसे लगने लगा था कि भगवान ने उसके साथ पहले जितनी नाइंसाफी और कमियां की थी अब सारी पूरी कर दी। पर कुछ दिनों से मां की तबीयत ठीक नहीं चल रही थी। गीता ने डॉक्टर को भी बुलाकर दिखाया और दवाईयां भी दी पर मां की तबीयत में उसे कुछ खास सुधार नहीं लगा। ऐसा लगता था कि मां को कुछ अंदर ही अंदर खाए जा रहा है।उसके बहुत पूछने पर मां ने एक दिन अपनी सहेली से मिलने की इच्छा जाहिर की और एक दराज की साइड इशारा कर उसका नंबर भी डायरी में बता दिया।तो गीता ने झट से उनकी दोस्त को बुला दिया कि शायद वो मां की परेशानी को दूर कर पाएं। 

पर दो दिन बाद ही उसकी दुनिया फिर से हिल गई। मां को रात को सोते सोते ही अटैक पड़ा और वो दुनिया छोड़ कर चली गई। गीता बहुत रोई। उसे ऐसा लगा कि मानो वो फिर से अनाथ हो गई। उसने राघव को जो पिछले पंद्रह दिन से टूर पर गया हुआ था उसको तुरंत वापिस बुलवाया और दोनों ने मिलकर सारे कारज पूरे किए।

मां को गए पन्द्रह दिन हो गए थे और गीता खुद को संभालने की कोशिश कर रही थी पर मन था कि मां के लिए ही तरस रहा था। तभी राघव ने उसे बुलाया और कुछ कागज़ दिए साइन करने के लिए। गीता ने पूछा कि ये कैसे कागज़ हैं तो राघव बोला कि ये तलाक के काग़ज़ हैं। गीता चक्कर खा कर ज़मीन पर गिर गई।

जब उसे होश आया तो वो रोने लगी और रोते हुए ही राघव से तलाक का कारण पूछने लगी। राघव एक क्रूर सी हंसी हंसा। गीता को आज ये राघव अपना राघव नहीं कोई पराया सा लग रहा था।वो उसकी हंसी से अंदर तक घबरा गई थी। राघव बोला कि मैं तुमसे मिलने से पहले से ही सौम्या से प्यार करता था पर सौम्या ने मां के साथ रहने और उनकी देखभाल करने से मना कर दिया था। मां की देखभाल तो मैं भी नहीं करना चाहता था पर क्या करता सारी जायदाद उनके नाम थी और उन्हें शायद मेरी नीयत पर शक हो गया था। एक दिन जब मैं घर पर नहीं था तो उन्होंने किसी तरह अपनी दोस्त को बुलाकर अपनी वसीयत बनवा ली कि अगर मैं मरते समय उनके साथ नहीं होऊं या वो किसी अप्राकृतिक मौत मरें तो उनकी सारी जायदाद अनाथाश्रम और वृद्धाश्रम में चली जाए।

जब मैं वापिस आया तब वसीयत की एक कॉपी उनके सिरहाने रखी थी। तब वो इतनी बुरी हालत में नहीं थी। वसीयत के काग़ज़ देखने के बाद मुझे बहुत गुस्सा आया और मैंने उनकी पिटाई कर दी। तब से ही वो ज्यादा बीमार रहती थी। मैंने सौम्या को समझाने की कोशिश की पर वो नहीं मानी पर वो मां के मरने तक इंतजार करने के लिए तैयार थी क्योंकि वो बिना जायदाद भी मेरे साथ शादी करने को तैयार नहीं थी।

लेकिन अब मां की हालत काफी खराब थी और मुझसे उनकी देखभाल नहीं हो रही थी और ना ही मैं नौकरानी पर खर्च करना चाह रहा था। उन्हीं दिनों मेरी रमन से दोस्ती हुई और मुझे उसकी छत से तुम दिखी। कुछ ही दिनों में मुझे समझ आ गया कि तुम मेरी सारी परेशानियों का इलाज हो। और मैंने रमन की मां के हाथों रिश्ता भिजवा दिया।

मैं कोई टूर पर नहीं जाता था बल्कि सौम्या के साथ रहता था और अब मां अपनी स्वाभाविक मौत मरी है और तुम भी उनके साथ थी मरते हुए तो उनकी वसीयत अब बेकार है और उनकी सारी जायदाद मेरी हुई। अब मुझे तुम्हारी कोई जरूरत नहीं है तो मैं तुम्हे अपनी ज़िन्दगी से बाहर फेंक रहा हूं।

गीता का अब तक रो रोकर बुरा हाल था पर राघव के सौम्या के साथ रहने की बात सुनकर उसे गुस्सा आ गया। वो राघव को बोली कि कितने निर्लज्ज हैं आप। ये सब बातें बताते हुए आपको रत्ती भर भी शर्म नहीं आ रही। और बदनसीब हो आप जो मां के साथ ना रह सके और ना ही उनकी सेवा कर सके और प्यार पा सके।

अब आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि मैं आपको नहीं पहचान पाई पर आपकी मां आपको अच्छे से जानती थी। शायद उन्हें अपनी आने वाली मौत का आभास हो गया था। इसलिए उन्होंने मुझे अपनी उसी दोस्त को बुलाने को कहा और सारी जायदाद मेरे नाम कर दी और मुझसे भी वसीयत लिखवा ली की अगर मेरी मौत अप्राकृतिक ढंग से हो तो सारी जायदाद अनाथाश्रम और वृद्धाश्रम को जाए।

मैंने उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की क्योंकि मैं तब तक आपके असली रंगों से वाकिफ नहीं थी पर वो नहीं मानी। अब समझ आया कि उन्होंने ऐसा क्यों किया। आपने उन्हें मां नहीं समझा पर मैंने तो उन्हे मां ही माना था और वो मरने से पहले मां का फ़र्ज़ निभा गई।अब मैं तुम्हे एक घंटे का समय देती हूं।अपना सामान समेटो और मेरे घर से निकल जाओ।

राघव को ये सब सुनकर बहुत बड़ा झटका लगा। मां ने मरने से पहले सारी बाज़ी ही पलट कर रख दी थी। वो तो गीता को धोखा देकर खुद को बड़ा होशियार समझता था पर अपनी मां के सामने उसकी सारी समझदारी धरी की धरी रह गई। उसने फिर से गीता को झांसे में लेने की कोशिश की यह कहकर कि मैं मज़ाक कर रहा था पर अब वो गीता को बेवकूफ नहीं बना पाया।अपने हाथों ही तो उसने अपना सारा काला चिट्ठा खोला था। 

अब दुनिया लुटने की बारी राघव की थी। उसका दिल फूट फूट कर रोने का कर रहा था।सारी जायदाद हाथ से चली गई थी और उसके साथ ही गीता और सौम्या भी क्योंकि उस ये अच्छे से पता था कि सौम्या बग़ैर घर और पैसे के उससे शादी नहीं करने वाली।

अब राघव को समझ आ गया था कि बगैर करे कुछ नहीं मिलता, यहां तक की मां का प्यार भी नहीं। कुछ करे बिना सब पाने की कोशिश करने वाले और सब कुछ धोखे से हासिल करने की चाह रखने वाले आखिर में बाज़ी हार ही जाते हैं।


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