बाबू बोला म्याऊँ
बाबू बोला म्याऊँ
सच ही कहा है लड़की की एक पुकार सुनकर उसके चाहनेवाले कोसो मील दूर से भी खींचे चले आते हैं और तब तो वे इसे अपना परम कर्तव्य मानते हैं जब लड़की उसे बाबू कहकर पुकारे। भरे बाजार में आज संजना ने बाबू कहकर आवाज क्या लगाया कुछ इधर गिरे कुछ उधर।
संजना भी बड़ी कंफ्युज़्ड हुई और सर्प्राइज़्ड भी कि आखिर ऐसा हुआ क्यूं! पर सो कॉल्ड “बाबू” तब आसमां से जमीं पर आ गिरे जब बाबू नाम धारण किए संजना की बिल्लियां भीड़भाड़ भरी सड़क को चीरते हुए उसकी स्कूटी पर आ बैठी और संजना ने बाबू-बाबू कहकर उसे पुचकारना शुरू कर दिया। ज़मींदोज़ हुए “बाबूओं” ने बड़े संघर्ष से फिर अपने दिल को समेटा जो सड़क किनारे खुले किसी मैनहोल में कुदकर खुदकुशी करने को बेताब हो रहे थे। जिला म्युनिसिपालिटी के किसी बाबु का ख़ामियाज़ा ये खुले मैनहोल जिसमें आज कई दिल डूबते-डूबते बचे।
पर इन सबसे संजना को क्या! वह तो अपनी प्यारी बिल्लियों से लाड़ लगा रही थी जो बड़े प्यार से उसकी स्कूटी पर चढ़ बैठी थीं।
सड़क के दूसरी ओर ख़रीददारी कर रही संजना की सहेली अंजली इस रोमांटिक और ट्रैजिक कॉम्बिनेशन वाले परिदृश्य को देख अलग ही मज़े लूट रही थी। जहाँ एक तरफ़ ग़लतफ़हमी के शिकार दो पैरों वाले कई “बाबू” के दिल आज बीच सड़क पर बिखर पड़े थे तो वहीं चार पैरों वाला संजना का बाबू स्कूटी पर बैठी संजना के सीने से जा चिपका था। वाह रे पशुप्रेम! मानव के हृदय की तूने जरा भी परवाह न की! स्वर्ग में विराजमान ईश्वर का हृदय भी आज इस कठोरता को देख पसीज उठा होगा।
“हाय! मार डाला!!” अनायास ही देवदास का वो गाना अंजली के ज़ुबां पर चढ़ गया और उसे विलेन बनकर सड़क के इस पार संजना और उसके बाबू बिल्लियों की चल रही प्रेमकहानी पर पर्दा गिराने आना पड़ा।
“अरी निर्लज्ज लड़की, सोसाइटी नाम की चीज ज़िंदा है अभी हमारे देश में! तेरा प्रेममिलाप देखकर चार लोग क्या कहेंगे! तेरे जैसों को ही ठिकाने लगाने के लिए प्रेमविरोधी संगठनों को मोर्चा सम्भालना पड़ा होगा!” ,अंजली ने कटाक्ष किया और बीच सड़क प्रेम क्रीड़ा कर रही संजना और उसके बाबू को एक दूजे से अलग कर दिया।
“चार लोग!! कहीं तेरे चार लोग वही तो नहीं जो मेरी एक आवाज़ पर चित्त पड़े थे!” ,संजना ने कहा और वहीं किनारे खड़े लोगों पर निगाह फेरी जिनके दिल संजना और उसके बाबू के प्रेममिलाप की वजह से चूर-चूर हो चुके थे।
एक जोरदार लात किक पर पड़ी और संजना, उसकी सहेली अंजली और उनके बाबू को लेकर स्कूटी घर की तरफ रवाना होती दिखी। पीछे छूट चुके मनचलों को बस एक ही आवाज सुनाई पड़ी जो संजना के बाबू की थी। बाबू ने बड़े प्यार से कहा था - “म्याऊं”
साईड मिरर में जब संजना ने कई दिलों के टुकड़े होते देखे, उसी वक्त तय कर लिया कि अपनी बिल्लियों का पुण: नामकरण करेगी। पर सिंगल लोग भी बड़े अजीब होते हैं। उनका दिमाग मिंगल वालों से एकदम भिन्न चलता है। बाबू-सोना करके ऊब चुकी संजना का मानो मानव जाति से भरोसा ही उठ चुका था तभी तो उसने अपनी मासूम बिल्लियों को “गदहा” कहकर बुलाना शुरु कर दिया। नाम भी ऐसा कि किसी सो कॉल्ड बाबू के कानों में घुसकर भी कहे तो वह पलटकर न देखें। पशु के अधिकारों के लिए संघर्ष करनेवालों को भी इससे कोई आपत्ति नहीं होती! आख़िर दोनों जानवर ही तो थे, बाबू...म मेरा मतलब चाहे बिल्ली हो या गदहे!
अब संजना के गदहे बेरोकटोक कहीं भी उसकी स्कूटी पर चढ़ बैठते तो कभी बड़े प्यार से उसके गालों को सहलाते। कभी खिड़की पर कूदकर धमा-चौकड़ी करते तो कभी बिस्तर पर सोयी संजना को एकटक निहारते रहते। हद तो तब हो जाती जब संजना के गदहे छत पर उधम मचाते फिरते और भरे-पूरे मुहल्ले में संजना उन्हें गदहा कहकर नीचे आने को आवाज लगाती।
अरे हाँ, एक और बात बताना तो भूल ही गया! इस नाम-परिवर्तन से एक सामाजिक बदलाव देखने को मिला! बाबू शब्द त्यागने से तांक-झांक करनेवाले पड़ोसियों ने संजना के चरित्र पर उँगली उठाना बंद कर दिया। पर अब उन्हें संजना की मानसिक स्थिति पर जरूर शक होने लगा था। जान पड़ता है गानों में जब बोलों की प्रमुखता थी उन दिनों मशहूर गीतकार किशोर दा ने ऐसे ही लोगों के लिए ये गीत गाए होंगे जिन्हें आप भी सुने – “कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना!”
चलिए फिर मैं भी इस दास्तां को यही विराम देता हूँ वर्ना फटे में टांग अड़ाने वाली लोकोक्ति मुझपर भी लागू होती प्रतीत होगी।
