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Shwet Kumar Sinha

Tragedy Inspirational Children

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Shwet Kumar Sinha

Tragedy Inspirational Children

मन की बात

मन की बात

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कैसी विडंबना है जिस पिता के कांधे पर बैठ दुनिया–जहां देखा, उसी पिता को कांधे पर लाद इस दुनिया से रुखसत करना पड़ा।

जिस पिता ने कभी अपने हाथो से कोर करके खिलाया था, हाड़–मांस कांप गए थे जब उनके मुख में अग्नि देनी पड़ी।

जिनका नाम भी बिना "श्री" के लेना पाप–सा महसूस होता था, उनके नाम से पहले "स्वर्गीय" लिखा देख आंखों पर यक़ीन नहीं हो रहा।

पढ़े–लिखे होने की एक खामी आज पता चली कि विवेक ने बड़ी आसानी से सबकुछ स्वीकार लिया। हालांकि अवचेतन मन को आत्मसात करने में न जाने कितना वक्त लगेगा जो अभी भी वस्तुस्थिति के प्रति सहज नहीं है।

अपनी जद्दोजहद स्थिति की परवाह किए बगैर आपने जिस मुकाम पर मुझे आज पहुंचाया, ताउम्र ऋणी रहूंगा।

पापा आप जहां भी रहें, ईश्वर आपकी आत्मा को शांति प्रदान करें।


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