बा पोरोब/सरहुल
बा पोरोब/सरहुल


बा पोरोब/सरहुल
धरती और प्रकृति से बेहतर फसल व फल प्राप्ति का त्योहार है सरहुल। इसे नए साल की शुरुआत के रूप में झारखंड में मनाया जाता है। सरहुल महोत्सव ओरांव ,मुंडा, हो, संथाल और उरांव जनजातियों द्वारा मनाया जाता है।
कई किंवदंतियों के अनुसार यह पर्व महाभारत से जुडा हुआ है। महाभारत के युद्ध में मुंडा जनजातीय लोगों ने कौरव सेना की मदद की और अपने शवों को पहचानने और सुरक्षित रखने के लिए, उनके शरीर को साल वृक्षों के पत्तों और शाखाओं से ढका दिया था। अन्य शव, जो साल की पत्तियों से नहीं ढके थे, विकृत हो गए और सड़ गये। इसी कारण इन फूलों का बहुत महत्व है। इन्हीं फूलों से देवता की पूजा की जाती है । गांव के देवता को जनजाति का संरक्षक माना जाता है।
इस त्योहार के दौरान आदिवासी बारिश कैसी होगी इसका अनुमान भी विचित्र तरीके से लगाते हैं। इसके लिए एक दिन पहले मिट्टी के तीन नए बर्तनों में ताजा पानी भर कर रख देते हैं । अगली सुबह इन बर्तनों में पानी के स्तर को देखा जाता है , यदि पानी का स्तर कम है तो अकाल या कम बारिश होगी, यदि पानी का स्तर सामान्य है तो माना जाता है कि बारिश अच्छी होगी।
पूजा के बाद, गांव का पुजारी एक मुर्गी के सिर पर कुछ चावल के दाने डालता है, ऐसा मानना है कि यदि मुर्गी भूमि पर गिरने के बाद चावल के दानों को खाती है तो लोग समृद्ध होंगे, यदि नहीं खाती, तो आपदा आएगी।
पूजा समाप्त होने के बाद गाँव के लड़के पहान /पुजारी को कंधे पर बैठाकर उसके घर लेकर जाते हैं। उनकी पत्नी उनके पैर धोकर स्वागत करती हैं और पहान सभी को साल के फूल भेंट करते हैं ,यह उनके बीच भाईचारे व दोस्ती के प्रतीक माने जाते हैं।
तत्पश्चात् चावल से बनी बीयर जिसे हडिया कहा जाता है, उसे गाँव में प्रसाद के रूप में बांटा जाता है । सारा गाँव नाच - गाकर इस त्यौहार को मनाता है। यह त्योहार लगभग सात दिनों तक मनाया जाता है। कहीं-कहीं इस त्यौहार को ‘ बा पोरोब ‘ भी कहा जाता है जिसका अर्थ है फूलों का त्योहार ।
सभी इस उत्सव को अति उत्साह और आनन्द के साथ मनाते हैं। पुरुष, महिलाऐं और बच्चे रंगीन और जातीय परिधानों में तैयार होकर पारंपरिक नृत्य करते हैं। अन्य समुदायों के लोग उन्हें बधाई देते हैं।
झारखंड में करीब बत्तीस जनजातियाँ हैं। यहां की सांस्कृतिक विरासत, यहां के आदिवासी त्योहारों हैं जैसे, जानी शिकार, बन्दता,हैल पुन्हिया,कर्म,जावा, बदना,सरहुल आदि।