Vimla Jain

Abstract Classics Inspirational

4.5  

Vimla Jain

Abstract Classics Inspirational

और प्यार हो गया

और प्यार हो गया

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रमाकांत जी पत्नी 55 साल की उम्र में एक बड़ी बीमारी से चल बसी थी। तब से रमाकांत जी अकेले ही जीवन व्यतीत कर रहे थे।

उनके एक बेटा था पढ़ने के लिए विदेश गया।

और वही पर बस गया।

फिर अकेलापन ही उनका साथी बन गया। उसके बाद उन्होंने अपना शाम का टाइम रोज घूमने का, और दिन में अपना दोस्तों के साथ में, और दूसरे काम में अपना मन लगाना चालू कर दिया।

मगर मन का अकेलापन दूर ही नहीं हो रहा था। ऐसे करते करते 5 साल हो गए वे। अब 60 साल के हो चुके थे। थोड़ी-थोड़ी शारीरिक तकलीफें भी ज्यादा होने लगी थी।

अकेले रहते हुए उनके लिए जीवन काटना बहुत मुश्किल होता जा रहा था। यादों के सहारे भी कितना जीवन काटा जा सकताहै।

ऐसे में एक दिन वह बीमार भी पड़ गए थे ।

उन्होंने बेटे को फोन करा कि मुझे बहुत तकलीफ हो रही है।

मुझे अपने साथ ले चलो।

अपने वहां बुला लो तो बेटे ने मना कर दिया।

वह आने को भी तैयार नहीं था।

वह उसने बोला आप अपनी तरह से सब सेट करो।

कोई सहायक रख लो और हमारी आशा मत रखो, कि हम आएंगे हम यहां ठीक हैं ।सेट हैं,

आप हमारे साथ नहीं सेट हो पाओगे।

रमाकांत जी के मन में जो थोड़ी आशा थी बेटे के साथ रहने की।

वह भी खत्म हो गई।

उससे वे काफी निराश हो गए।

और बहुत दुखी रहते रहते थोड़े से अवसाद की तरफ भी चले गए थे।

ऐसे एक दिन शाम के टाइम में घूमने गए थे। वहां पर जिस बेंच पर भी रोज बैठते थे, वहां एक औरत बैठी थी। बहुत ही तेजस्वी, एकदम संभ्रांत लग रही थी।

उन्होंने उसको देखा पूछा मैं यहां आकर बैठ जाऊं।

उसने सिर हिलाया हां बैठ जाओ। फिर वह दिमाग में सोचने लगे उसको मैंने कहीं देखा है।

फिर एकदम उनको याद आया अरे यह तो कॉलेज की वह लड़की है, जो मेरे साथ में पढ़ती थी।

और जिसको मैं मन ही मन बहुत ही चाहता था ।

मगर मेरी बात कभी होठों पर नहीं आई ।और मैंने उसको कभी नहीं कहा। वे मन ही मन खुश थे की चलो थोड़ी देर से बात करता हूं। मेरा मन खुश होगा।

थोड़ी देर तो वे चुपचाप रहे फिर उससे पूछने लगे।

आपका क्या नाम है।

आप कहां रहती हैं।

मैंने आपको पहले कहीं कभी देखा नहीं है यहां।

तो उसने बताया मेरा नाम अनुराधा है और अपना परिचय देने लगी। परिचय देने में उसने बताया कि उसके पति की जल्दी ही डेथ हो गई थी । वह अपनी बेटी के साथ में दूसरी जगह पर रह रही थी ।

थोड़े दिन पहले ही उन्होंने यहां फ्लैट लिया है।

 पहले मकान था बेटी की शादी के बाद में अकेलापन बहुत लगने लगा। तो उसने बोला फ्लैट में चले जाओ। तो आपका मन लगा रहेगा।

इसीलिए वह इस बिल्डिंग में फोर्थ फ्लोर पर फ्लैट में रह रही हैं ।

और आज ही घूमने आई हैं।

फिर बातों ही बातों में उन्होंने उनसे पूछा पहले आप कहां पढ़ती थी।

आप कहां की हैं।

तो जनरल बात होती है किसी का भी परिचय लेने के लिए।

उसमे जो अनुराधा ने जो बताया वे तो उससे पहले ही पहचान गए थे। मगर रमाकांत जी के ऊपर उम्र का तकाज़ा ज्यादा दिख रहा था।

सो उनको पहचान नहीं पाई। जब उसने अपने कॉलेज का नाम लिया तो रमाकांत जी ने भी अपना नाम बोला। बोला वहां तो मैं भी पढ़ा हूं।

और अपने बेच का साल बताया अनुराधा भी कॉलेज की लड़की के जैसे खुश होते हुएः

मैं भी उसी साल में पढ़ी हूं मैं आर्ट्स में पढ़ी हूं।

रमाकांत ने बोला मैं भी आर्ट्स में पढ़ा हूं ।उसने अपना नाम बताया मैं रमाकांत हूं ।दोनों इतने खुश हुए जैसे पुराने दोस्त मिल गए हैं।

रमाकांत के दिल में तो पहले से ही उसके लिए सॉफ्ट कॉर्नर था, छिपा हुआ कहीं प्यार था।

अब दोनों रोज शाम को मिलने लगे और बहुत बातें करते।

एक दूसरे से सुख दुख की बातें करते और एक ही बिल्डिंग में फ्लैट होने के कारण ,जब जरूरत होती तो एक दूसरे से मिलने भी चले जाते।

दोनों एक दूसरे की परवाह करने लगे थे। अनुराधा जी की बेटी को बहुत चिंता थी अपनी मां की।

जब वह रमाकांत जी से मिली तो उसकी चिंता दूर हुई, कि चलो मां को यहां तो कोई तो जानने वाला मिल गया ।उनका सहपाठी है, टाइम आराम से कट रहा है।

थोड़ी सी वह रिलैक्स हो गई।

ऐसे ही उसने अपने पति को यह बात करी, तो उसके पति ने बोला अभी तुम्हारी मां की उम्र कितनी है। 50 साल की उम्र में बहुत लंबी जिंदगी उनके सामने पड़ी है।

अकेले काटनी पड़ेगी।

कोई अच्छा जीवन साथी मिल जाए तो अच्छा रहेगा।

मगर बेटी के दिमाग में यह बात कभी आई ही नहीं कि, मेरी मां की दूसरी शादी कर देनी चाहिए।

धीरे धीरे अनुराधा जी और रमाकांत जी की मुलाकात रोज होने से दोनों के मन में संवेदनाएं जागी थी।

दोनों एक दूसरे के सुख दुख के साथी हो गए थे ।

एक दिन किसी ने उनके बेटे को विदेश में कान भरे तुम्हारे पिता तो आजकल एक सहपाठी लेडी के साथ बहुत गपशप करते रहते हैं।

गुलछर्रे उड़ा रहे हैं।

उसको बहुत बुरा लगा ।

उसने यह नहीं सोचा कि मेरे पिता अकेले रहते हैं। ऐसे में कोई हंसने बोलने वाला मिल गया, तो क्या फर्क पड़ता है।

और सामने वाले के चढ़ाने से फोन पर भला बुरा बोलने लग गया।

इधर कुछ दिनों से अनुराधा जी नीचे गार्डन में नहीं गई थी तो वे उनको दिखाई नहीं दीं, तो उनको चिंता होने लगी क्या हो गया।

एक दिन वह अपने घर जाते हुए उनके के वहां गए।

उनकी बेटी से मिले। उनको पता लगा कि अनुराधा जी बुखार से बहुत तड़प रही थी।

उनके पास कोई नहीं था। दूसरे दिन उन्होंने फोन करा किसी तरह उठ करके ।तब जाकर के उनको पता लगा। और उनकी सेवा में आई।

बेटी दामाद ने बहुत बोला कि मां हमारे साथ चलो।

मगर वह चलने को तैयार नहीं है। अकेला ही रहना चाहतीहैं।

क्योंकि जिंदगी उन्होंने स्वाभिमान पूर्वक अकेले ही काटी है।

जब रमाकांत जी से मिली तो उसके दिमाग में यह बात आई कि अगर रमाकांत जी और मां का विवाह हो जाए तो इनकी जिंदगी अच्छी तरह कटेगी। और हमको भी अच्छा रहेगा। थोड़ी टेंशन कम हो जाएगी।

उसने अपनी मां को बहुत समझाने की कोशिश करी।

पर वह कुछ भी समझ में तैयार नहीं थी ।

मगर थोड़े दिन बाद जब वापस उनकी तबीयत खराब हुई।

रमाकांत जी को फोन लगाया रमा कांत जी डॉक्टर के साथ वहां पहुंचे। डॉक्टर ने चेक करके बोला इनको आराम की सख्त जरूरत है।

आप इनके कोई सगे को बुला दीजिए। जो इनकी देखभाल करें। उन्होंने उसकी बेटी को फोन लगाया। मगर बेटी आउट ऑफ स्टेशन गई हुई थी ।घूमने गई हुई थी ।

उसने वहां से बोला आप ही कुछ करिए। आप ही मां की देखभाल करिए। किसी को रख लीजिए।

नर्स बुला लीजिए ।

अभी मैं नहीं आ सकती ।

मेरे को आने में 5 दिन लग जाएंगे। जब तक मां की तबीयत बिगड़ जाएगी। आप उनकी संभाल रखिये और आपके होते हुए मुझे कोई चिंता नहीं है।

पहले तो रमाकांत जी ने बहुत नानूकर करा ।फिर नर्स को बुलाने का ट्राई करा।

कोई नर्स भी तैयार नहीं थी रात में आने को।

उसने बोला दूसरे दिन के लिए।

अब क्या करते ।

उन्होंने उस पूरी रात बैठ कर केउनकी बहुत सेवा करी।

उनका बुखार बहुत तेज बढ़ रहा था। उसको बर्फ की पट्टी। पानी की पट्टीसे कंट्रोल करा।

और डॉक्टर की गाइडेंस में सब कुछ करा। यह सब देख अनुराधा जी के मन में भी उनके प्रति काफी प्रेम जागृत हुआ ।उनको लगा कहीं ना कहीं दिल में यह बात आई

यह मेरे जीवन साथी होते तो अच्छा रहता ।

अब अकेले रहना बहुत मुश्किल होता जा रहा है। इधर रमाकांत जी का मन तो पहले से ही था, कि वह अनुराधा जी हां करें तो उनसे शादी करें ।

बीच में अड़चन उनका बेटा था ।उसको उन्होंने बोल दिया।

मेरा तेरे से कोई रिश्ता नहीं है ।

या तो तू आकर मेरे साथ रहे ।

या तो मेरे को लेकर जा

उसने दोनों के लिए मना कर दिया।

तो उन्होंने कहा अब मेरे को मेरी जिंदगी मेरी तरह जीनी है।

इसलिए मेरे को जो मन आएगा वह करूंगा।

इधर जब उनकी बेटी आउट ऑफ स्टेशन से वापस घर आई।

और अपनी मां से मिलने गई उसने अपनी मां के बीमार चेहरे पर एक अलग सी चमक देखी।

 मां से बात करने लगी तो अनुराधा जी पूरे टाइम रमाकांत जी की बात ही करते रहे ।उन्होंने ऐसे संभाला और उनके मुंह पर एक अलग सी चमक और सुकून नजर आ रहा था।

यह देखकर बेटी को मन में अपने पति की बात ध्यान आई ।

और उसने भी मन बनाया।

अपनी मां का मन टटोला। वह ऊपर ऊपर से मना कर रही थी।

मगर बहुत जोर देने पर वह मान गई कि उनके मन में भी रमाकांत जी के लिए प्यार उमड़ आया है।

मगर वह अपने मुंह पर नहीं ला पाई थी ।उधर बेटी जब रमाकांत जी से मिली यह बहुत खुश हो गए ।

और उन्होंने उसको बहुत-बहुत आशीर्वाद दिया।

बहुत प्यार किया फिर उसने अपनी बात कही क्या आप मेरे पापा बनोगे ।

वह तो जब कब से इसी इंतजार में थे की अनुराधा जी से शादी के लिए मान जाएं ।क्योंकि वह तो उनसे पहले से ही प्यार करते थे।

और वह पुराना सोया हुआ प्यार जाग गया था। जब उनको पता लगा कि अनुराधा जी ने भी प्यार का इजहार कर लिया है ।

तो उन्होंने बेटी से शादी के लिए हां कह दी।

और उन लोगों ने कोर्ट में बेटी दामाद के साथ जाकर शादी कर ली ।

और सुख पूर्वक अपना जीवन बिताने लगे।


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