Saroj Verma

Tragedy

4.5  

Saroj Verma

Tragedy

और अन्त में

और अन्त में

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मां! ये देखो,ये तब की फोटो है,जब हम जयपुर घूमने गए थे और ये तब की है जब हम केरल घूमने गए थे,सुहानी खुश होकर बोली।

लेकिन रागिनी के चेहरे के भाव देखकर ऐसा लग रहा था कि जैसे उसे कुछ याद ही नहीं आ रहा,वो सबके चेहरे देखकर बहुत कुछ याद करने की कोशिश करती है लेकिन नाकामयाब हो जाती है, एक साल होने को आया रागिनी पहले छोटी मोटी बातें ही भूलती थी लेकिन धीरे-धीरे वो पड़ोसी और रिश्तेदारों को भी भूलने लगी और अब तो उसे घरवालें भी याद नहीं रहते, डाक्टर को दिखाया तो वो बोले कि रागिनी धीरे धीरे अल्जाइमर का शिकार हो रही है।

रागिनी को देखकर सुभाष भी परेशान हो जाता है,उसे यकीन नहीं होता कि ये वही रागिनी है जैसी सालों पहले हुआ करती थी जब इसे शादी के लिए पसंद करने गया था तो ये कितनी चंचल और हंसमुख थी।

लेकिन अब ये कैसी हो गई है, विश्वास नहीं होता,काश,ये पहले जैसी हो जाए।

 तभी दरवाज़े की घंटी बजी__

सुहानी ने दरवाज़ा खोला__

अरे, रितु आंटी! आइए... आइए.. सुहानी बोली।

कैसी है तू! रितु ने सुहानी से पूछा।

मैं ठीक हूं आंटी, सुहानी बोली।

अरे, रितु ! तुम आ गई।

कैसी हो?शुभांश ठीक समय तो स्टेशन पहुंच गया था ना! सुभाष ने पूछा।

हां.. हां..पहुंच गया था, कोई परेशानी नहीं हुई, रितु बोली।

,देखो ना रागिनी को क्या हो गया है, कैसी हालत होती जा रही है,तुम इसकी सबसे अच्छी सहेली हो, मैंने सोचा,शायद तुम्हें देखकर इसे कुछ याद आ जाए, सुभाष बोला।

आइए आंटी पहले आप फ्रेश हो जाइए,आराम कीजिए,इतने दूर से सफ़र करके आईं हैं, फिर आराम से बैठकर बातें करेंगे, सुहानी बोली।

 और सब रात में डिनर करके बातें करने बैठे__

तब सुभाष ने कहा___

देखो तो रितु! कितनी हंसमुख हुआ करती थी, रागिनी और अब देखो तो कैसी हो गई है?

रितु बोली___

वो क्या है ना,भाईसाहब! एक औरत का जीवन जितना सरल दिखाई देता है उतना होता नहीं है, मैं ये मानती हूं कि पुरूषों का जीवन भी सरल नहीं होता लेकिन पुरुष सिर्फ अपने परिवार जैसे कि पत्नी, बच्चें,मां बाप,भाई बहन के विषय में ही सोचता है लेकिन हम स्त्रियां ससुराल और मायके दोनों से बंधी होती है, हम स्त्रियां दोनों परिवारों को लेकर चलती हैं, हम स्त्रियों को दोनों परिवारों के साथ एक संतुलन बैठाना पड़ता है और इस आपाधापी में कभी कभी हम अपने स्वास्थ्य से भी हाथ धो बैठते हैं क्योंकि हम तो सबका ख्याल रखते हैं लेकिन हमारा ख्याल अगर हम स्वयं न रखें तो घर का कोई भी सदस्य नहीं रखता।

आपको पता है,जब रागिनी को लगने लगा था कि वो कई चीजें भूलने लगी है तो इस फ़ोन के जमाने में उसने मुझे चिट्ठी लिखी थी, उसने कहा कि वो फोन में सारी बातें नहीं कह सकती इसलिए चिट्ठी लिख रही है और उसने जो चिट्ठी में लिखा था वो शायद हर औरत के ऊपर गुजरता है, कुछ सहन कर लेतीं हैं और कुछ सहन नहीं कर पातीं, कुछ अपना ध्यान हटाने के लिए कहीं शाॅपिंग, कहीं किटी पार्टी, कहीं कोई क्लब ज्वाइन कर लेतीं हैं लेकिन रागिनी जैसे औरतें जो घर से बाहर नहीं निकलतीं वो उदासीन हो जातीं हैं क्योंकि धीरे धीरे उनके ज़िन्दगी के रंग उड़ने लगते हैं और वो इतनी उदासीन हो जातीं हैं कि अपनी ज़िन्दगी से कई चीजों को वो हटाना चाहतीं हैं जिसे वो भूल जाना ही बेहतर समझतीं हैं,वो कहते हैं ना कि जैसा इंसान सोचता है वैसा बन जाता है ये तो मनोविज्ञान भी कहता है कि हमारी इच्छा शक्ति ही हमें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है लेकिन अगर इच्छा शक्ति ही मर जाए तो फिर इंसान जिन्दा कहां रहा।

और यहीं हुआ है रागिनी के साथ किसी ने भी उसे समझने की कोशिश नहीं की, बुरा मत मानिएगा लेकिन जो उसकी हालत है उसके लिए आप सब भी कहीं ना कहीं जिम्मेदार हैं,उसकी उदासीनता आप सब की देन है,कितना कुछ करती है एक औरत अपने घर के लिए लेकिन बदलें में उसको क्या मिलता है तिरस्कार , उदासीनता और सिर्फ रोग।

यकीन नहीं आता ना तो ये चिट्ठी पढ़ लीजिए।

और सुहानी ने चिट्ठी खोली।

 रितु बोली,जरा जोर से पढ़ना।

 सलोनी ने पढ़ना शुरू किया___

DEAR RITU....

 काश,तू मेरे पास होती, मेरे साथ होती लेकिन तेरी भी मजबूरी है,तू अपने परिवार में ब्यस्त है लेकिन मैं तुझसे कुछ बताना चाहती हूं, कुछ कहना चाहती हूं कि मैं जिन्दगी के ऐसे पड़ाव पर आ पहुंची हूं कि अब मुझे लगने लगा है कि जैसे मेरे परिवार को मेरी जरूरत ही नहीं है,ये वहीं परिवार है रितु जिन सास ससुर और बच्चों की सेवा के लिए मैंने अपनी नौकरी छोड़ी थी वो भी सरकारी,अपना कैरियर,अपनी पहचान गवां दी, मुझे लगा था कि क्योंकि ये मेरे अपने हैं, मुझसे प्यार करते हैं,मेरी चिंता करते हैं, इन्हें मेरी जरूरत है लेकिन अब लगता कि इन सबको मेरी जरूरत ही नहीं हैं।

सास ससुर के प्रति मैं अपना कर्त्तव्य निभाने में कभी पीछे नहीं हटी, तूने तो देखा ही है कि जी जान से मैने उनकी मरते दम तक सेवा की,अब बच्चे भी बड़े हो गए हैं,शुभांश अपने इंजीनियर कांलेज पहुंचकर रम गया, मां की खबर ही नहीं रहती उसे, मैं ही फोन करूं तो करूं और कोई ना कोई बहाना बनाकर जल्दी से फोंन रख देगा।

और सुहानी अपना फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करके अपनी ही दुनिया में मस्त हैं,उसे तो दूसरों की मांऐ स्मार्ट और सुन्दर दिखतीं हैं, मैं तो फूहड़ और रही बात सुभाष की तो मोनोपाॅज के बाद उन्हें भी मुझमें कोई रूचि नहीं है, कभी कभी सोचती हूं कि ये वही सुभाष है जो मेरी हर एक अदा पर मर मिटता था।

अंदर से खोखली हो जा रही हूं,बहन! ऐसा लगता है कि जैसे ज़िन्दगी से रंग धीरे धीरे उड़ते जा रहे हैं,ये अकेला पन खाने को दौड़ता हैं,अब कुछ भी याद नहीं रहता, कभी कुछ भूल जाती हूं तो कभी कुछ,क्या करूं कुछ समझ में नहीं आता, ऐसा कोई नहीं है जिससे मैं खुलकर बात कर सकूं,एक तेरे सिवाय,ना मेरी कोई भाभी और ना बहन,किससे कहूं इसलिए तुझसे सब शेयर कर रही हूं,जीने की आशा मरती जा रही है।

कभी समय मिले तो आकर मिल जा,तू तो नौकरी करती है, तेरे पास उतना समय नहीं है, नहीं तो मैं ही आ जाती तेरे पास और बाकी मिलकर बताऊंगी।

तेरी सखी__

रागिनी__

 चिट्ठी पढ़कर सुहानी रो पड़ी और बोली__

मां इतनी अकेली थी,ये तो हमने कभी सोचा ही नहीं।

सुभाष भी दुखी था कि उसने अपनी पत्नी के मनोभावों को नहीं समझा।

रितु बोली__

 और अंत में ये नतीजा हुआ।


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