अटा पड़ा है दुःख का हाट !
अटा पड़ा है दुःख का हाट !
पार्टी देर रात तक चलने से उस सुबह बकुल देर से उठा ।जब देर से उठो तो दिन भर की सारी दिनचर्या गड्मगड तो होनी ही है ।लेकिन इस भय से बकुल अभी उबरने वाला ही था कि मैडम की किचन से जोर जोर से अदरक कूटने की आवाज़ गूँजने लगी ।हड़बड़ाते हुए उसने बिस्तर छोड़ा ।
"ओ स्साला ,आज तो सारा दिन मैडम के गुस्से का निवाला मिलना तय है । "वह बुदबुदा रहा था ।असल में जब - जब उसके किचन से कुछ ख़ास तरह से अदरक के कूटने की आवाज़ उठा करती थी तो बकुल यह अनुमान लगा लेता था कि आज का दिन उसके लिए कुछ खास है ।
जल्दी- जल्दी करने के बावजूद उसको देर हो गई और बाथरूम से ज्यों ही निकल कर बाहर आया तो आदतन न्यूज पेपर खोलकर बैठ गया ।उसके न्यूज पेपर पढने की इस्टाइल भी कुछ यूं हुआ करती थी मानो वह उसमें घुस ही गया हो !उसे यह नहीं खबर लगी कि सामने रखी उसकी चाय ठंढी हो रही है ।मैडम की तीखी निगाहें जब न्यूज पेपर में पिले पड़े बकुल पर पड़ी तो लगभग चीखते हुए उन्होंने कहा कि कम से कम चाय पर तो वह रहम कर दे ।हड़बड़ा कर बकुल ने चाय पीनी शुरू की तो चाय लस्सी बन गई थी ।अब उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह दुबारा गर्म चाय के लिए कुछ बोले ।चुपचाप वह गटक गया ।उसी दरम्यान उसे ख़याल आया कि उसे आज शाम मठ में आयोजित उस गोष्ठी में भी जानी है जहां स्वामी विशोकानन्द जी का प्रवचन होना है ।मन में आया कि वह मैडम को भी याद दिलाये लेकिन चुप रह गया ।जाने कैसा री-एक्शन झेलना पड़े ।
अमेरिका में रहते हुए यानि रिटायरमेंट के पहले ऎसी दिनचर्या थोड़े ना बकुल की थी । सरिता जब सोई रहती थीं तब वह सुबह पहले एलार्म पर उठ कर फ्रेश हो जाता था और सुबह की पहली किरन पार्क में ही मिलती थी ।कान में ईयर फोन लगाए वह पंडित भीमसेन जोशी ,जगजीत सिंह और अनूप जलोटा के भजनों को अपनी मार्निंग वाक के साथ आत्मसात करता रहता था ।लौटता तो गर्मागर्म चाय मिल जाती थी ।पेपर तब भी पढ़ता था लेकिन पेपर में घुस कर नहीं !नहा- धो कर नाश्ता करके ठीक दस बजे ऑफिस पहुंच जाया करता था ।उसकी दिनचर्या तो रिटायरमेंट के बाद गड़बड़ाई है ।सरिता को सबसे ज्यादा इस से परशानी थी और बकुल को सबसे ज्यादा निश्चिंतता ।आखिर उसने चौंतीस साल छह महीने की कमरतोड़ मेहनत की है ।
बकुल इस समय मठ के विशालकाय हाल में एक समर्पित श्रोता के रूप में स्वामी जी के अमृतमय उपदेशों को आत्मसात कर रहा था ।
"अहंकार उठता है क्योंकि यह उसका स्वभाव है ।वह सत्ता पर अधिकार कर लेना चाहता है जिसे वह अपनी सम्पत्ति और अपने परीक्षण का क्षेत्र मानता है ।अहंकार से मुक्ति के लिए उच्चतर चेतना की जगह चेतना का विस्तार अधिक ज़रुरी है -- निश्चय ही ऊपर जाना ज़रुरी है परन्तु अपने आप में यह काफी नहीं है ।सबसे पहले तुम्हारे अन्दर आध्यात्मिक नम्रता ज़रुरी है ...तुम पशुओं की तरह शारीरिक रूप से हालांकि प्रकृति की शक्तियों से चलते हो लेकिन तुममें और पशुओं में एक भेद है और वह है तुममें मन और बुद्धि की शक्ति का होना ।तुम यदि योग और अध्यात्म के सच्चे भाग में प्रवेश करना चाहते हो तो सबसे पहले तुम्हें प्राकृतिक दुःख सुख को आत्मसात करना होगा ...उससे हर हाल में उबरना ही होगा । "
सचमुच स्वामी विशोकानन्द की बातों में जीवन का सूत्र छिपा हुआ था ।बकुल ने सोचा कि काश सरिता भी साथ आई होतीं ।शायद बकुल से ज़्यादा सरिता को इस तरह के ज्ञानामृत की आवश्यकता थी ............वह जो पिछले बारह साल से अपने छोटे पुत्र राहुल के वियोग में हर क्षण दग्ध जो चल रही थी !जहाँ बकुल के ध्यान में सरिता आईं कि हड़बड़ा कर बकुल ने घड़ी की और देखा ।यह क्या ? आज तो उसने घड़ी ही नहीं पहनी थी । मोबाइल में समय देखा तो रात के दस बज चुके थे ।तुरंत स्वामी जी को नतमस्तक होता बाहर निकल आया ।
उसके घर के बाहर भीड़ लगी हुई थी ।ज्यों ही वह गेट में घुसा मोहल्ले के एक बुजुर्ग पड़ोसी गुप्ता जी ने नज़दीक आकर कहा -
" कहाँ गए थे बकुल बेटा ?तुम्हारी पत्नी....... ..."
वे कुछ आगे बोलते कि बकुल घर के अन्दर जा चुका था ।सरिता लगभग बेहोश पड़ी थी और अगल बगल की महिलाएं उसके पास बैठी थीं ।
"क्या हुआ ..क्या हुआ इनको भाभी जी ?"अचकचाते हुए बकुल ने पूछा ।
" भैया जाने क्या हुआ था ! अचानक से इनके चीखने की आवाज़ जब मैंने सुनी तो मैं भागी- भागी आ गई ।देखा ये किचेन में गिरी पड़ी थीं ।"मिसेज पन्त बोल उठीं जो बकुल के घर से सटे घर में रहती थीं ।
तब तक सरिता सामान्य हो चली थी और इतने ढेर सारे लोगों को अपने इर्द- गिर्द पाकर विस्मित थी ।
"क्या हुआ ..क्या हुआ ? ..अ....अ...आप लोग यहाँ क्यों आये हैं ? " सरिता बोल उठी ।
वहां जुटे लोग एक दूसरे को देखने लगे तो आगे बढ़ कर मिसेज पन्त ने सारा किस्सा सत्रिता को बताया ।सरिता को इस बात पर एकबारगी विश्वास नहीं हुआ ।
तब तक बकुल किचेन से गज़क और कई गिलास में पानी ट्रे में लेकर आ चुके थे ।लोगों ने पानी पिया और बकुल को ढेर सारी सलाह देते हुए चले गए ।
बकुल ने सरिता का हाथ पकड़ते हुए पूछा -"आखिर हुआ क्या था जो तुम चीखते हुए किचेन में बेहोश हो गई थीं ? "
सरिता ने अपने माथे पर जोर देते हुए कुछ बताना चाहा लेकिन उसे ठीक - ठीक याद नहीं आ रहा था ।
"इतना तो याद है कि मैं किचेन में चाय बनाने गई थी तो वहां मुझे लगा कि राहुल खडा है ।मैं...मैं..हठात चीख उठी ।मुझे लगा कि ...मुझे लगा कि...राहुल को तो मरे हुए बारह साल हो चुके हैं..वह ..वह यहाँ कैसे आ सकता है और ...और बस ...मैं .....मैं शायद चीख पड़ी थी ! " माथे पर जोर देते हुए सरिता ने बकुल को बताया ।
बकुल को कोई आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि ऐसा पहले भी अनेक बार वह देख चुके थे ।वह हर संभव प्रयास कर रहे थे कि अनचाही परिस्थितियों में परिवार से जुदा हो चुके लड़के की याद से सरिता अपने को अलग कर सकें ।सरिता को डिप्रेशन की खतरनाक जद में आने से बचाया जा सके इसीलिए इस दुखद घटना के बाद वे कहाँ- कहाँ नहीं घुमाने सरिता को लेकर नहीं गए ।इन बीते बारह वर्षों में बावजूद अपनी तंगहाली और निजी स्वास्थ्य सम्बन्धी दिक्कतों के वे उनको देश तो देश यूरोप की भी दो- दो बार ट्रिप लगवा चुके हैं लेकिन सरिता बदलने को मानो तैयार नहीं थीं । वे जहां भी गईं बिना भूले अपने साथ अपने बिछड़े बेटे की तस्वीर भी साथ लेकर गईं । हर समय फोटो शूट में भी बेटे की तस्वीर सामने रखकर वे फोटो खिंचवातीं ।........और तो और कभी - कभी उस फोटो से बातें भी किया करतीं ।
ऐसे अवसरों पर बकुल नि:शब्द हुआ करते थे क्योंकि उन्हें आज भी अच्छी तरह याद है कि जब उनका युवा पुत्र अनेक प्रयत्न करने पर भी बचाया नहीं जा सका था तो अत्यंत शोक ,उत्तेजना और भ्रम की पराकाष्ठा पर पहुंची उनकी मैडम बोल उठी थीं " इससे तो अच्छा था कि भगवान आपको उठा लिए होते !" बकुल हतप्रभ हो गए थे .............एक सुहागन पत्नी के ऊपर एक माँ की ममता की ऐसी पराकाष्ठा !उनके जी में आया था कि वे उसी क्षण कहीं जाकर आत्म ह्त्या कर लें ...लेकिन दूसरे ही क्षण उन्होंने अपने आप को सम्भाला था और सोचा था कि वह किसी के पति हों या ना हों वह भी किसी के बेटे हैं ।...और........और अगर एक के मरने से दूसरे की मौत रोकी जा सकती तो अब तक ढेर सारे लोग मरते ही नहीं !
अगले दिन डाक्टर ने सरिता की डिप्रेशन की दवा की डोज़ और बढ़ा दी थी ।घर के दोनों प्राणियों की दिनचर्या अगले दिन से फिर वैसी की वैसी ही हो गई ।सरिता कल को कौन कहे पिछले क्षणभर की बात कब का भुला देती हैं और....और हाँ उन्हें याद रहता है तो बस यह कि उनका युवा बेटा राहुल मर चुका है और उसके बिना ज़िन्दगी ज़िन्दगी नहीं ...शायद उनके लिए मौत ही शाश्वत सत्य है........ज़िंदगी ...... ज़िंदगी तो मात्र धोखा है ।
बकुल को अभी भी स्वामी जी की कही कुछ और बातें याद आ रही हैं और सोच रहा है कि काश सरिता उनकी उन बातों को आत्मसात कर पाती ! ।स्वामी जी ने ठीक ही कहा था ;
" देखो , इस पृथ्वी और तुम सभी के जीवन पर कठिन घड़ियाँ आती हैं ... जानते हो क्यों ?....ताकि वे मनुष्यों को अपने छोटे से निजी और सामूहिक अहंकार पर विजय पाने और सहायता और प्रकाश के लिए एकान्तिक रूप से भगवान की ओर मुड़ने के लिए बाधित कर सकें ।कहां नहीं है दुख ?कहां नहीं है मृत्यु ?अगर तुम उसमें ही उलझे रहोगे तो क्या तुम्हारी प्रगति हो पायेगी ? आत्मा का परमात्मा से मिलन हो पायेगा ? पूरी दुनियां के सुख दुख को अपना दुख सुख समझना तो ठीक है लेकिन उनमें उलझना अपने मानवीय जीवन के महत उद्देश्य से भटकना है।"