अतीत की खिड़कियाँ Tapsya - 4
अतीत की खिड़कियाँ Tapsya - 4
शादी से पहले से ही निर्मला ने सुन रखा था कि उसकी दादी सास बड़ी ही खुर्राट है और घर में उन्ही की चलती है।शादी के बाद उसने देख भी लिया था। लेकिन उसने यह सोच लिया था कि वह दादीजी को शिकायत का कोई मौका नहीं देगी और उनकी सोच को समझने का प्रयास करेगी और उनके अनुभवों से सीखने का।
जैसे-जैसे निर्मला अपनी दादी सास को जानती गयी, वह उनकी हिम्मत, बुद्धिमानी, मेहनत और जुझारूपन की कायल होती गयी। उसकी दादी सास भरी जवानी में विधवा हो गयी थी, उन्हें पीहर या ससुराल कहीं पर भी कोई सहारा देने वाला नहीं था। अपने दम पर अपने बच्चों को पाला पोसा और उनकी शादियां की।
निर्मला की सास तो घर के काम काज में फूहड़ थी ही, दादी सास ने सिखाने की भी कोशिश की लेकिन वह सीखने की इच्छुक भी नहीं थी। उनके बच्चों को भी दादी सास ने ही पाला था। निर्मला ने नोटिस भी किया था कि उसके पति अपनी माँ से ज्यादा दादी के नज़दीक थे।
फिर चाची सास की कमियां भी बड़ी बहू की गलतियों और कमियों के कारण ढक सी गयी थी। चाची सास अंधों में कानी रानी जैसी थी। उनके बाद अब निर्मला घर में बहू बन के आयी थी। अपनी सुशीलता और सुघड़ता के कारण निर्मला जल्द ही अपनी दादी सास की आँखों का तारा बन गयी। दादी जी जब तब अपनी दोनों बहुओं से कहती थी कि," यह निर्मला इतनी गुणी और चतुर है कि इसके काम में कभी कोई गलती ही नहीं होती। जब यह गलती करेगी नहीं तो मैं इसे भला क्यों डाँटूंगी। तुम्हें सिखाने के लिए ही तो डांटती हूँ। मेरे से ज्यादा तुम्हारा अच्छा कौन सोच सकता है। मैं तो यही चाहती हूँ कि तुम्हारी गृहस्थी में सुख और शांति रहे। सब कुछ अच्छे से चले। "
दादीजी बड़ी किफ़ायत से घर चलाती थी। ऐसा ही वह अपनी बहुओं से चाहती थी। निर्मला के मायके में दूध -दही की नदियाँ बहती थी ;लेकिन यहाँ आधा लीटर दूध में सबके लिए चाय बनानी होती थी और फिर दूध बचाकर उसमें जामन देना होता था। दही में खूब सा पानी डालकर रायता बनाना होता था। निर्मला के मायके की छाछ भी उससे ज़्यादा गाढ़ी होती थी। लेकिन निर्मला ने सब कुछ अपने आप ही समझ लिया था।
जब भी बहुएँ अपने बाल धोती थीं तो दादी जी बोलती थी कि अपने कपड़े बालों के आगे डाल लेना ताकि साबुन के पानी से कपड़े धुल जायें। सब्जी की कढ़ाई में कभी आटा गूँधवाती थी या कभी पानी से धोकर वह पानी दाल में डलवाती थी। मज़ाल कभी दूध की भगोनी पर मलाई चिपकी रह जाए। निर्मला सभी काम दादीजी के अनुसार ही करती थी। वह कोई भी चीज़ बर्बाद होने नहीं देती थी।
दादीजी ने तो निर्मला को आगे पढ़ने की भी अनुमति दे दी थी, वह तो रमेश ने अपने अहम् के कारण मना कर दिया था। हर इंसान का दूसरों के साथ व्यवहार दूसरों द्वारा उसके साथ किये जा रहे व्यवहार पर निर्भर करता है। किसी और की नज़रों में जो बुरा है, जरूरी नहीं वह आपके लिए भी बुरा हो। आज जब दादी जी का हाथ निर्मला के सर पर नहीं है, शादी से लेकर उनके ज़िंदा रहने तक दादीजी ने उसे एक भी दिन डाँट नहीं लगाई थी, बल्कि हमेशा उसका पूरा-पूरा ख्याल ही रखा था। निर्मला, दादी सास का दिल जीतकर अपनी एक तपस्या में तो सफ़ल हो ही गयी थी।
अपनी दादी सास को याद करते हुए निर्मला की आँख से दो बूँद आँसू लुढ़क गए थे ;जिन्हें उसने पोंछ लिया। हम इंसान न तो ज़्यादा ख़ुशी बर्दाश्त का पाते हैं और न ही ज्यादा गम। ऐसा कुछ आज निर्मला के साथ भी हो रहा था। उस नींद नहीं आ रही थी और उसका मन भाग -भागकर अतीत की खिड़कियाँ खोल रहा था।
