STORYMIRROR

ritesh deo

Romance

4  

ritesh deo

Romance

अस्तित्व

अस्तित्व

2 mins
395


जब अपने अवहेलित नजरो से तुमनें मुझे ठुकराया था उस दिन सारा आसमान सूने से भी सूना हो गया था मेरे लिए। हवाओ में सहस्त्र काँटे उग आए थें मेरे लिए। धरती रेत से भी ज्यादा तपने लगी थी मेरे लिए। संसार की तमाम ध्वनियाँ मेरे लिए विस्फोटक से भी ज्यादा ध्वंसकारी सुनाई पड़नें लगी थी। और मैं वहीं किसी कीक़र के पेड़ के जैसे ठूंठ जमा रह गया और ऐसा जमा की मेरी जड़े मुझसे भी ज्यादा विस्तारित हो गई। वहाँ से लौटना हो ही ना सका। किसी की तमाम कोशिशों के वावत भी।


समय बीतता गया किसीने कीक़र में आम की ख्वाहिस भरी उसका हाँथ पकड़ा उसके सर पर स्नेह भरे होंठो से चुम्बन किया और उसी ने उसे फिर से सींचने की जिद पकड़ी। 


लोगो ने उसका लोकोपवाद भी किया पर उसने हर दिन मुझे सींचना नही छोड़, क्योंकि उसे अपनी निजी दृढ़ता पर पूरा विश्वास था। उसे मुझ कीक़र से भी जाने कैसा तो लगाव था कैसी तो उम्मीद थी। हालांकि उसे पता था कीक़र आम नही बन सकेगा फिर भी उसने काँटे उगाने के हेतु ही सही यह स्नेहिल आम्र बीज मुझमे स्थापित कर दिया था।


 कितने वसंत बीते, कितनी वर्षा ऋतु गयी, माघ की ठिठुरन में सारी रात ओस की चादर ओढ पड़ा रहा। पतझड़ आये चले गए। मैं वंही उसी जगह वैसे ही झुका हुवा खड़ा रहा। जहां तूमने अपनी अवहेलित नजरो से देख कर मुझे छोड़ा था। 


और फिर वर्षों बाद एक दिन आया जब मैं जरा जरा ही सही पर पनपने लगा। विकसित होने लगा। हरियाली की वर्क लकीर ओढ़ कर मैं भी विकसित होने लगा। थोड़ा ही सही पर छायादार बन गया पीले फूल खिलने लगे मुझमे।


 किंतु उसके तमाम मिठास भर देने के वावजूद भी तुम्हारी कड़वाहट ज्यों की त्यों मुझमे पनपती रही। एक दिन जिसने मुझे हर पल सींचा मेरे पनपने को लेकर रात दिन प्रेरित करती रही उसी ने मुझे जरा सा सहलाना चाहा तो इसी अवहेलित व्यक्ति ने उसकी उंगलियों को लहूलुहान कर डाला। जरा सी भी कृतज्ञता नही दिखाई उसके प्रति जरा सा भी नही हिचकिचाया। उसकी आँखों के आँसू उसके कपोलों पर बहते रहे और मैं अपने काँटे दार हांथो से उन्हें पोछ भी न सका सिवाय देखने के।


तुम्हारा कींकर कींकर ही रह गया । उसे दूसरों से स्नेह न पाने का अपना ही अपने को दिया हुआ अभिशाप मिल गया।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Romance