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Anuradha Negi

Tragedy Inspirational

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Anuradha Negi

Tragedy Inspirational

असहाय पर अमीर भिखारी

असहाय पर अमीर भिखारी

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 मैं रोज की तरह दफ्तर जा रही थी यह बात तब की है जब मैं उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित नोएडा मैं नौकरी करती थी। दफ्तर जाने का समय सुबह१०:०० का होता था। जहां में एक तरफ सड़क से ऑटो सवारी जाकर दूसरी तरफ सड़क पर मेट्रो लाइन पार करके पहुंचती थी। न जाने उस मेट्रो लाइन पर कितने अनगिनत भिखारी रहते थे। जिसमें छोटे बच्चों से लेकर उनके मा बाप और बड़ी उम्र के लोग भी होते थे जो आपस में एक-एक कोना पकड़ कर बैठ जाते थे। मैं रोज की दिनचर्या देखकर अनदेखा कर देती थी। दूसरी तरफ सड़क पर एक जूस वाला होता था जिसकी दुकान पर सैकड़ों की भीड़ लगी रहती थी। उसकी हाथ की कला बहुत ही प्रशंसा के लायक होती थी। और मैं भी वहां तीसरे चौथे रोज या उपवास के दिन वहां पर जूस पीती थी। कई बार वहां पर छोटे बच्चों के पैसे मांगने के आग्रह पर जो भीख मांगते थे मैं उन्हें पैसे ना दे कर जूस पिलाया करती थी जो कभी तो वहीं पर पीते थे और कभी जूस लेकर वहां से चले जाया करते थे। और मुझे यह देख कर कोई हैरानी नहीं होती थी कि वह जो सर कहां लेकर जा रहे हैं। कोई बात के लिए बचा करके रखता तो कोई अपने किसी साथी या परिवार वाले के लिए ले जाता था यह बात मुझे पता थी।

एक बार की बात है जब मैं शुक्रवार का उपवास ले रखी थी और सुबह दफ्तर जाने के समय हीअपनी गली सेे जूस लेकर जा रही थी । और रिक्शा का इंतजार करते हुए सड़क पर खड़ी थी। तभी वहां पर लगभग १२ साल की लड़की आई और पैसेेेे मांगने लगी. मैंने उससे पूछा कि क्या करेगी पैसे का उसने जवाब दिया कि वह भूखी है और खाना खाएगी। मेरा उपवास था और इससे अच्छी बात क्याा होती कि मैं उपवास के दिन भूखे को खाना खिलाती। मैंने बहुत जूस उसे दिया तो उसने मना कर दिया और कारण पूछनेेे पर बताया उसे पैसा ही चाहिए ५ या १० रुपए जबकि जूस ५० रुपए का था। जब मैंने उसेेेेेेेे पैसे देने के लिए मना किया और जूस लेने को कहा तो वो वहां सेेे चली गई और मुझे कुछ समझ नहीं आया। मैं खड़ी ही थी कि वह २ मिनट बाद फिर आई जूस मांग कर ले गई। और मैं दफ्तर गई। सड़क की दूसरी तरफ जहां जूस वाला रहता था। मैंने वहांं से जूस लेना चाहा और मैं वहां रुक गई मैंं जूस बनने का इंतजार कर रही थी। कि मेरी मेरी नजर सीढ़ियों में बैठे एक आदमी पर पड़ी जो अपनी जांघों केेेे बल वहां बैठा था। वह चल नही सकता था।और मैं उसे कुछ देर तक देखती रही थी। मैं यह गौर कर रही थी कि वह आदमी आखिर क्यों किसी सेे कुछ नहीं मांग रहा हैै। किसी के सामने हाथ नहीं फैला रहा है। फिर मैंने जूस वाले भाई सेेे पूछा कि क्या वह रोज नहीं बैठता है उसने हां में जवाब दिया और कहा कि मैडम वह सिर्फ रात मेंं ही जाता है। जब मैंने उससे पूछा कि वह तो चल नहीं सकता फिर वह कहांं जाता है। तू जूस वालेेेे ने कहा की वह हाथोंं के सहारेे झूलते मेट्रो लाइन के नीचे आकर सो जाता है। मैंने एक पैकेट बिस्कुट और एक जूस का गिलास उस आदमी को दिया तो उसने हाथ जोड़कर आभार प्रकट किया। मुझे दया आ रही थी और मैं सोचती हुई दफ्तर को निकल गई। शाम को मैं फिर उसे देखना चाहती थी तो मैंं वहां पर गई। और मैंने उन्हेंं भैया कहकर बुलाया तो उन्होंने मुझे पहचान लिया और बोले कि अभी उन्हें कुछ नहीं चाहिए। मैंने उन्हें प्रणााम किया और पूछा कि क्यााा वह खानाा खाएंगे जो रोज सुबह मेंं उन्हें लाकर दूंगी। उन्होंने हा या ना कुछ भी जवाब नही दिया।मुझेेेे महसूस हुआ ह शर्मिंदगी महसूस कर रहे हैं।तो मै वहांं से चली गई और अगली सुबह खाने का डिब्बा लेकर गई।जब मैं वहां पर पहुंची तो वह आंखे बंद किए एक तरफ पीठ टिकाकर बैठे थे।मैने उन्हें आवाज दी लेकिन वह नहीं उठे जूस वाला यह सब देख रहा था।और मैंनेे उन्हें  हाथ लगाकर जगाया तो वह उठ गए और फिर से  हाथ जोड़़ दिए। मैंने उन्हें खाना दिया और इतने में जूस वाला भी एक गिलास जूस लेेता आया। और बोला की वह रोज उन्हें जूस देगा लेकिन मैंनेेेे उसे यह कहकर मना कर दिया कि वह सिर्फ रविवार को उन्हें खाना खिला दें।क्योंकि उस दिन मुझे दफ्तर  नहीं जाना होता था और वह मान गया। लेकिन वो भैया हफ्तेे भर के बाद वहां नजर नही आए। ना जूस वालेेे को पता था न मुझे वो उसके बाद दिखे।लेकिन मैं जब भी उस जगह पर जाती हूं। ढूंढती हूं कि क्या पता दिख जाये लेकिन ऐसा नहीं हुआ।आशा है उनसेे भगवान मिलाए कभी ताकि मैं जान सकूं कि हुआ क्या था तब उनकेे साथ।

   


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