असामान्य(एक संस्मरण)
असामान्य(एक संस्मरण)
कभी कभी आंखे बंद कर के बैठूं, तो छाया चित्रों की तरह ,दृश्य आंखों के आगे तैरने लगते है।कुछ खुशनुमा यादें ,तो कुछ आंखे भिगो देने में समर्थ यादें--
बचपन के अपने स्कूल से लेकर अपने बच्चों के स्कूल जाने के संस्मरण, क्या भूलूँ क्या याद करुण की तरह।यूं लगता है सब यादें आपस मे गड्ड मड्ड हो जा रही हो। आभासी दुनिया के मित्रो से वास्तविक दुनिया के रिश्तों तक के संस्मरणऔर फिर चुपके से दिल का दरवाजा खटखटाती है,कुछ असामान्य लोगों से जुड़े लोगों के संस्मरण,जिन्हें शायद सहानुभूति नही, प्यार की जरूरत थी।
पहली याद अपने बचपन की जब हम अपने पापा के मामा के यहां गए, मामा के यहां दिखी थीमुझे वो अपनी वो असामान्य सी लड़की जो मेरी बुआ थी। खूब लंबी, ह्रष्टपुष्ट हंसती हुई, पर कुछ थाजो मुझे उससे डरा रहा था। पर उसने मुझे बुलाया हाथ के इशारे से ,और मैं डरते डरते उसके साथ बाहर चली गई। पर ये क्या?उसने तो मुझे झाड़ी में धक्का दिया और ताली बजाती हुई भाग गई, मैं रो रही थी, मेरे माथे से खून बह रहा था ।उसे डांट कर कमरे में बंद कर दिया गया। दोबारा मुझे वहां जाना नही था सो विस्मृत हो गया वो चरित्र।
दूसरा वैसा ही छाया चित्र आंखों के आगे तैरा, इस बार शादी के बाद--- मैं अपनी जेठानी के मायके में गई हुई थी डिनर---, वहीं था उनका वो सगा भाई, वैसा ही असामान्य चेहरा, एक चम्मच से थाली बजाता हुआ, पूर्ण वयस्क, और--- एक भय की लहर दौड़ गई मेरे शरीर मे, मैं भाभी के पीछे छुपती हुई, -- पर भाभी आदी थी , उसे गले लगाया, उसका मुंह पोछा, पर मेरा डर--
शादी के बाद मायके लौटी हूँ, फिर एक असामान्य चरित्र से मुलाकात, युवा, एक बेहद खूबसूरत लड़की पर गूंगी- दूर के रिश्ते की बहन,मेरे चेहरे पर शादी के बाद की आभा , भरी मांग हाथों में चूड़ियां देख, खुशी उसके भी चेहरे से छलक रही है, वो मेरा हाथ खींच रही है, हंस रही है। मुझे बोलने का इशारा कर रही है मैं कुछ समझती हूँ ,कुछ नही--, शायद वो मेरे शादी के अनुभव सुनना चाह रही थी!क्षमा नाम था, मामी परेशान थीं, उसको लेकर असुरक्षित महसूस करती, क्या होगा, इसका।
बाद में उड़ते उड़ते सुना उसकी शादी किसी दिव्यांग, आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्ति से कर दी गई, बेहद अफसोस लगा था, पर ज़िन्दगी आगे बढ़ती गई-पर एक गूंगी और बेहद खूबसूरत लड़की का भविष्य शायद ईश्वर की कलम भी अच्छा लिखने से चूक गई, और एक कटु अनुभव आए बुरी खबर सुनने को मिली।
आज एक जज साहब के यहां जाना हुआ, फिर ईश्वर के क्रूर न्याय का शिकार, एक और बेटा,मैं स्वाति सौरभ की परवरिश बेहतर ढंग से करचुकी हूँ, वो नही डरते, उससे बात करते हैं।वो बताता है उसका नाम चीनू है, अब उम्र ने मेराभी डर निकाल दिया है , मैं उसे गोद मे बैठाती हूँ,वो मेरे गाल छूकर मुझे आंटी कह रहा है, खुश है।भाभी जी कह रही हैं चीनू आंटी को परेशान मत करो।पर अतीत के ये संस्मरण मेरी प्रेरणा बन चुके है।भले ही ईश्वर ने अन्याय किया हो, उस अन्याय का प्रतिकार हम उन्हें प्यार देकर कर सकते है।
प्यार की भाषा से कौन अनजान है भला? और प्यार देने में डर कैसा??, ईश्वर मुझे हमेशा ये शक्ति दें कि ऐसे वंचित बच्चों के साथ कुछ कर सकूं।
