अर्पण--भाग (१२)
अर्पण--भाग (१२)
दोनों ही मोटर से उतरे और तालाब की सीढ़ियों पर जा बैठे___
डूबते हुए सूरज की लालिमा तालाब को ढ़क रही थी और सूरज धीरे धीरे तालाब के उस ओर के छोर में छिपता चला जा रहा था, तालाब में बैठे हुए पंक्षी अब अपने घोंसलों में लौटने की तैयारी में थे, तालाब की खूबसूरती देखते ही बनती थी, तभी श्रीधर ने एक पत्थर जोर से तालाब की ओर उछाला, पत्थर तालाब के जल की सतह पर तरंगें बनाता हुआ, तालाब के पानी में विलीन हो गया।
तभी राज बोली____
क्यों श्रीधर बाबू! प्रेम भी ऐसा ही होता है ना! जैसे कि ये पत्थर तालाब की गहराई में समा गया है, उसी तरह किसी का प्रेम भी किसी के हृदय में इसी तरह समा जाता है।
जी, शहजादी साहिबा, प्रेम ऐसा ही होता है, आपने बखूबी प्रेम के रहस्य को समझ लिया, कहीं आप किसी से प्रेम तो नहीं कर बैठीं, श्रीधर बोला।
अब आपसे कैसे कहूं?राज बोली।
इसका मतलब है कि शायद आप किसी से प्रेम कर बैठीं है, श्रीधर ने पूछा।
पता नहीं , ये प्रेम है या कुछ और ही, ना उसे पता, ना मुझे पता, राज बोली।
ये कैसी पहेलियां बुझा रहीं हैं आप? जरा खुलकर कहिए, श्रीधर बोला।
अब क्या बोलूं और क्या बताऊं?कुछ समझ में नहीं आता, राज बोली।
अब ऐसी भी क्या उलझन है?अगर आप उसे चाहतीं हैं और वो भी आपको चाहता है तो आप उससे खुलकर पूछ क्यों नहीं लेतीं? श्रीधर बोला।
पूछ भी लेती लेकिन वो जनाब हैं कि मेरे दिल का इशारा समझते ही नहीं, मेरी झुकती पलकों में उन्हें ना उनकी शाम ढ़लने का एहसास होता है और ना मेरी उठती पलकों में उन्हें उनकी सुबह होने का एहसास होता है, यहां तक कि मैं अपने होंठों से जब उनका नाम पुकारती हूं तो ना तो उनके दिल के तार बजते हैं और ना उन्हें मेरी झलक पाकर कोई फर्क पड़ता है, मैं तो हार गई इशारे कर करके , ना जाने किस निष्ठुर, निर्मोही से नेह लगा बैठी, राज बोली।
अरे....अरे.... क्यों कोसती हैं उस बेचारे को, भला उसने आपका क्या बिगाड़ा है? श्रीधर ने पूछा।
बहुत कुछ बिगाड़ा है, रातों की नींद और दिन का चैन छीन लिया है, ऊपर से आप कहतें हैं कि बख़्श तो उस बेचारे को, भला क्यों बख़्श दूं उस गुस्ताख को, इतनी बड़ी गुस्ताखी करके वो भी चैन से ना जी सकेगा, राज बोली।
वो बेचारा भी कहां जी पा रहा है? उसके दिल का हाल आप क्या जानें?श्रीधर बोला।
आप कैसे उसके दिल का हाल जानते हैं भला? राज ने पूछा।
बस, ऐसे ही मैंने देखा है उसे किसी के लिए रातों को जागते हुए, हरपल किसी के सपने बुनते हुए, क्षण क्षण किसी की यादों में खोए हुए, हो सकता है उसका हाल भी आपके जैसा हो और मारे संकोच के वो आपसे कह ना पा रहा हो, श्रीधर बोला।
संकोच....भला किस बात का संकोच, राज ने पूछा।
यही कि आप महलों की शहजादी और वो एक गरीब परिवार का लड़का, शायद यही संकोच आड़े आ रहा हो, श्रीधर बोला।
मैं तो कभी ऐसा नहीं सोचती, मुझे उसके ग़रीब होने पर कोई एतराज़ नहीं है, मैंने उसकी हैसियत देखकर कतई उससे प्यार ना किया था, मैं बस उसकी सीरत पर मर मिटी थी, उसकी इन्सानियत की कायल हो चुकी थी, लेकिन वो है कि कुछ भी नहीं समझता, राज बोली।
आप भी तो कभी उससे इज़हार करने की कोशिश कर सकतीं थीं, श्रीधर बोला।
ये भी भला खूब चलाई आपने, मैं और लड़की होकर प्रेम का इज़हार करने बैठती, आपको क्या लगता है? मैं अपनी शर्मो-हया सब घोल कर पी गई हूं, राज बोली।
तो अब आप क्या चाहतीं हैं?आपकी शिकायत दूर कैसे हो?श्रीधर बोला।
मैं चाहती हूं कि वो मेरा हाथ थामकर बोले कि____
राज! मैं अपनी जिंदगी का हर पल केवल तुम्हारे संग बिताना चाहता हूं, क्या तुम अपने छोटे से दिल में मुझे थोड़ी सी जगह दोगी?राज बोली।
तभी श्रीधर ने राज के दोनों हाथ थामें और बोला____
राज! मैं अपनी जिंदगी का हर पल केवल तुम्हारे संग बिताना चाहता हूं, क्या तुम अपने छोटे से दिल में मुझे थोड़ी सी जगह दोगी....
ये सुनकर खुशी के मारे राज की आंखों से आंसू छलक पड़े और वो बोली___
मेरे दिल में आपका स्वागत है शहजादे! पहले कह दिया होता, इतना सताया क्यों?
लो भाई! अब हमने इज़हार भी कर दिया, तब भी आपको शिकायत है, श्रीधर बोला।
अब कोई शिकायत नहीं है, आज आपने अपने दिल में जगह देकर बहुत बड़ा एहसान किया है मुझ पर, मैं आपकी एहसानमंद हूं, राज बोली।
शुक्रिया तो आपका मुझे अदा करना चाहिए, जो आपने मुझे प्यार के काबिल समझा, श्रीधर बोला।
और कुछ देर दोनों यूं ही प्यारभरी बातें करतें रहे फिर कुछ देर बाद दोनों अपने अपने घर वापस आ गए, आज राज बहुत ही ज्यादा ख़ुश थी और ये खुशी उसके चेहरे पर साफ साफ देखी जा सकती थी, कुछ गुनगुनाते हुए राज घर के भीतर पहुंची, आज नन्दिनी घर पर राज से पहले ही पहुंच चुकी थी , उसने राज को आते हुए देखा तो पूछ बैठी.....
कहां गई थी राज?
जी, दीदी! सैर पर गई थी, राज ने जवाब दिया।
मालूम होता है, किसी अच्छी जगह होकर आ रही हो, तभी तो इतनी खुश हो, नन्दिनी बोली।
बस, दीदी! तालाब के पास तक गई थी, वहां के शांत वातावरण ने तो मेरा मन ही मोह लिया, राज बोली।
बहुत अच्छी बात है लेकिन आइंदा ऐसी सुनसान जगह पर अकेले सैर के लिए मत जाया करो, ज़माना बहुत खराब है, नन्दिनी बोली।
जी , दीदी! नहीं जाऊंगी, राज ने जवाब दिया।
अच्छा जाओ, जाकर कपड़े बदलकर आओ, मैं खाने पर कब से तुम्हारा इंतज़ार कर रही हूं, बहुत ज़ोर की भूख लगी, नन्दिनी बोली।
जी! दीदी! बस अभी आई, इतना कहकर राज चली गई।
और उधर श्रीधर के घर में.....
श्रीधर भी आज बहुत खुश था, आज उसका मन खुशी के मारे झूमने का कर रहा था, वो आज घर पर मिठाई लेकर पहुंचा तो उससे बबलू ने पूछा____
मामा! मैंने तो मिठाई लाने को नहीं कहा था...
बेटा! मिठाई खा और ऐश कर, श्रीधर बोला।
क्यों रे! क्या बात है? जो तू इतना खुश नज़र आ रहा है, कोई ख़जाना हाथ लगा है क्या?सुलक्षणा ने पूछा।
बस, जीजी! ऐसा ही कुछ समझो, श्रीधर बोला।
क्या बकता है रे? पागल हो गया है क्या? सुलक्षणा बोली।
बात ही कुछ ऐसी है जीजी! कि खुशी के मारे मैं पागल हुआ जा रहा हूं, श्रीधर बोला।
कहीं इसका कारण राज तो नहीं, सुलक्षणा बोली।
हां ...जीजी!श्रीधर बोला।
तभी तेरे गाल शर्म से लाल हो रहे हैं, सुलक्षणा बोली।
छी.... जीजी!गाल तो लड़कियों के शर्म से लाल होते हैं मैं तो लड़का हूं, श्रीधर बोला।
वो भी सही है, कुछ भी हो, तुम दोनों ने अपने अपने मन की बात बोल दी ना! मैं यही चाह रही थी बस, सुलक्षणा बोली।
जीजी!आज मैं बहुत खुश हूं, बस अब तो यही आशा है कि वो मेरी जीवनसंगिनी बनकर मेरे जीवन में प्रवेश करें, श्रीधर बोला।
लेकिन श्री! ये कैसे होगा? अभी तो देवनन्दिनी जी ने ब्याह नहीं किया, बड़ी बहन क्वांरी बैठी रहें और छोटी बहन ब्याह कर ले, ये शोभा नहीं देता और मुझे लगता है कि राज भी इतनी स्वार्थी नहीं होगी कि वो बड़ी बहन के क्वांरे रहते ब्याह कर ले, सुलक्षणा बोली।
जीजी! तुम्हारी बात भी सही है और मुझे भी ऐसा करना अच्छा नहीं लगेगा, पहले मैं नन्दिनी जी का ब्याह कराऊंगा, बाद में मैं और राज ब्याह करेंगें, श्रीधर बोला।
मैं अपने भाई से ऐसी ही आशा रखती हूं, सुलक्षणा बोली।
जीजी! मैं इस विषय में राज से भी बात करूंगा, श्रीधर बोला।
और तू तो रोज मिल पर जाता है, तुझे अभी तक ये पता नहीं चला कि नन्दिनी जी से सबसे ज्यादा कौन शख़्स मिलता-जुलता है?सुलक्षणा ने पूछा।
जीजी!एक शख़्स तो है और वो हैं डाक्टर कमलकान्त बाबू, वो ही अक्सर उनसे मिलने आते रहतें हैं, श्रीधर बोला।
तो कुछ पता कर , शायद वो उन्हें पसंद करतें हों इसलिए मिलने आतें हो, सुलक्षणा बोली।
हो सकता है जीजी! यही बात हो, मैं जानने की कोशिश करता हूं, श्रीधर बोला।
और इस विषय पर एक रोज श्रीधर ने राज से भी बात की___
मैं भी यही चाहती हूं कि पहले दीदी का घर बस जाएं, नहीं तो वो अकेली रह जाएंगी और वैसे भी उन्होंने मेरे लिए अपनी सभी खुशियां कुर्बान कर दी, अब उन्हें मेरे लिए और कुर्बानी करने की जरुरत नहीं है, राज बोली।
सही कहती हो राज! लेकिन एक बात तो बताओं कमलकान्त बाबू , नन्दिनी जी के अच्छे मित्र हैं या इससे भी कुछ ज्यादा, मेरी बात का ग़लत मतलब मत निकालना क्योंकि वो अक्सर मिल पर आते रहते हैं और तुम्हारे घर भी उनका बहुत आना जाना है, श्रीधर बोला।
ये बात तो मैंने कभी नहीं सोची, राज बोली।
तो सोचो और जानने की कोशिश करो, श्रीधर बोला।
सही कहते हैं आप!कमलकान्त बाबू है भी तो बहुत अच्छे, अगर वो दीदी की जिंदगी में आ जाएं तो बात बन जाए, राज बोली।
तो फिर चलो हम दोनों जल्द ही इस मसले को हल करते हैं, श्रीधर बोला।
क्रमशः___