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Kunda Shamkuwar

Tragedy

4  

Kunda Shamkuwar

Tragedy

अपराधबोध

अपराधबोध

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कुछ दिन पहले मेरी एक दोस्त ने मुझसे कहा,"मैं अपने अपराधबोध से मुक्त होना चाहती हूँ। क्या तुम मेरी मदद करोगी?" मैंने हँसते हुए कहा,"आज तुम मज़ाक के मूड लग रही हो।कैसा अपराधबोध और कैसी मुक्ति?"

"तुम अगर हँसोगी नही तो मैं तुम्हे कुछ बताना चाहती हूँ।"उसके आवाज़ की संजीदगी से मैं भी संजीदा हो गयी। वह कहने लगी,"मैं अपने कलीग से उधार लिया करती थी।तुम तो जानती हो कि मेरे हसबैंड का सीजनल काम होता था। "मैंने कहा,"जिंदगी में उधार चलता रहता है...मैं भी तो उधार लेती रहती हुँ और वापस करती रहती हुँ..."वह आगे बोलने लगी,"जब तब मैं अपने उस कलीग से उधार लेती रही...धीरे धीरे मेरी उधार माँगने की फ्रीक्वेंसी बढ़ती गयी....और वापसी की कम! फिर लोन था की बढ़ता ही गया। क्योंकि ज्यादातर लोन पति के काम के लिए ही लिया था।"कुछ देर रुक कर फिर वह कहने लगी,"क्योंकि वापस करने के लिए पैसे नही थे और कर्ज़ भी बढ़ गया। पति की नीयत बदल गयी और एक दिन लड़ाई की तू तू मैं मैं के बीच पति ने कहा, "तुम्हारा उस कलीग से कोई चक्कर चल रहा है तभी वह तुम्हे पैसे देता रहा है...."

पति का यह रूप मेरे लिए एकदम नया था। बेहद शॉकिंग ! हमारे भाई बहन जैसे रिश्तें पर घिनौना इल्ज़ाम ! मेरे कैरेक्टर पर बात आयी थी।पति की बात को झूठा साबित करने के लिए मैंने उस कलीग से बात करना बंद कर दिया जिसने हर बार मुझे मदद की, सपोर्ट किया। मेरे लिए बेहद तकलीफ़ देने वाला फ़ैसला था...लेकिन मैंने अपने कैरेक्टर और घर को बचाने के लिए उससे बात करना बंद कर दिया। यह जो भी हुआ उससे मेरा मन अपराधबोध से भर गया था।"

वह मेरी दोस्त थी लेकिन उसने कभी भी मुझे इन बातों की भनक नही पड़ने दी। मैं उस कलीग को भी जानती थी।क्योंकि हम एक ही ऑफिस में काम करते थे।

कभी कभी मुझे हम वर्किंग वुमन बेहद अमेजिंग लगती है।क्योंकि हम लोग न जाने कितने सारी बातों को बड़ी ही खूबसूरती से छिपा ले जाती है...

आज इतने सालों के बाद वह अपने जिंदगी के पन्नें खोलकर दिखा रही थी।वह आगे कहने लगी,"तुम तो जानती ही   हो कि पति से अब मेरी अलहदगी हो गयी है। इतने सालों के बाद मैं उनकी फ़ितरत जान गयी हुँ। मैं चाहती हुँ की उस कलीग को पैसे वापस करके मैं अपने अपराधबोध से मुक्त हो जाऊँ... अब मेरी फाइनेंशियल कंडीशन भी ठीक है।" थोड़ा रुक कर वह फिर कहने लगी, "मैं बेहद शर्मिंदा हूँ कि पति की नीयत बदलने पर भी मैं चुप रही रादर मैंने उस समय उनका साथ ही दिया।जिस व्यक्ति ने मुझे हमेशा मदद की उसके पैसे देना तो दूर मैंने पति की बात रखने के लिये उससे बात करना तक बंद कर दिया। तुम बताओ क्या मुझे शर्मिंदगी नही होनी चाहिए?" मैं खामोशी से उसकी बात सुनती रही...वह फिर आगे कहने लगी, "क्या तुम मेरी मदद नही करोगी मुझे इस अपराधबोध से मुक्त होने में?"

मैंने कहा,"मैं कोशिश करूँगी।" मेरे आश्वस्त करने पर वह निकल गयी।

मैंने उस कलीग से बात की ।पहले तो वह कहता रहा कि मैं अब वो सारी बातें भूल चुका हुँ।मेरे जोर देने पर वह फिर कहता रहा कि मैं उन से पैसे नही लूँगा।मैंने फिर कहा कि वह पैसे वापस कर अपने अपराधबोध से मुक्ति चाहती है। क्योंकि तुमने उसे बहुत बार हेल्प की है।

काफी बार कहने पर वह एग्री हो गया और एक तय समय पर मैंने अपने रूम में दोनों को बुला लिया। कहे अनुसार मेरी दोस्त पैसे लेकर आ गयी।

बड़ी मुश्किल से उसने कहा,"जो भी हुआ उससे मैं शर्मिंदा हुँ..." और वह थैंक्स कहते हुए रोने लगी....पहली बार मैं देख रही थी कि पैसे देनेवाला और लेनेवाला दोनो रो रहे है। वह आँसू न जाने कितनी सारी बातें कहे जा रहे थे.........हम तीनों निशब्द थे...



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