अपनी पहचान
अपनी पहचान
कहाँ हो सिस...ऐसा लगा कि कोई तूफान आ गया हो, घर का हर कोना गर्जना कर रहा हो....कहाँ हो...कहाँ हो !
हाँ, सुमि ...यहाँ हूँ। कहो, क्या बताने आई हो ?
यह देखो सिस...परसों की ही तो फ्लाइट है कनाडा के लिए...कितनी सारी शापिंग कर आई हूँ, फाॅरेन जा रही हूँ तो स्पेशल दिखना तो माँगता है न...
और उसने पलंग पर फैला दिया ढेरों कपड़े...जींस, टाॅप, स्कर्ट, लांग शर्टस, शार्ट स्कर्ट...
पचास साल की सुमि को यह क्या सूझी ?
विस्फारित नजरों से देख सुमन हैरान ...यह पहनोगी वहां ?
क्यों नहीं सिस...वहाँ क्या मुझे बैकवर्ड दिखना है..
तो यह है फारवर्ड होने की पहचान...
मतलब, ...
अरे, विदेश जा रही हो तो अपनी संस्कृति ले जाओ।
एक संपूर्ण भारतीय नारी तो खुद अपनी संस्कृति की पहचान है। माँग में लाल सिंदूर, माथे पर बड़ी सी बिंदी, गले में मंगलसूत्र, भर-भर हाथ चूड़ियाँ, छन्न-छन्न करते पायल....दस गज की साड़ी में लिपटा सौभाग्य का सौंदर्य !
यह क्या कि यह बताने जा रही हो कि देखो...हम कितने अमेरिकन हो गये हैं ?
विवेकानंद का परचम तो उनके केसरिया बाना और प्रखर विद्वता ने फैलाया था। वे तो वहाँ अमेरिकन बन कर नहीं गए थे।
बहुत खूबसूरत है हमारा केसरिया, हमारी हरीतिमा और हमारा शुभ्र धवल आभा मंडल ...सोचना तो तुम्हें ही है कि क्या पहचान बनानी है तुमको वहां...तमाम भीड़ में खो जाना है या बनना है अपने देश की आन ....!!