Dhan Pati Singh Kushwaha

Inspirational

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Dhan Pati Singh Kushwaha

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अपनी भाषा में बेहतर ज्ञान

अपनी भाषा में बेहतर ज्ञान

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मेरे एक घनिष्ठ मित्र ने एक सज्जन को मेरे पास भेजा था कि मैं उनके बच्चे के विद्यालय में प्रवेश से संबंधित यदि कोई समस्या आए तो मैं यथासंभव उनकी सहायता करूं।वे कुछ जल्दी-जल्दी बताने के लिए आतुर प्रतीत हो रहे थे। विद्यालय के स्टाफ रूम में मैंने आग्रह करके उन्हें अपने पास बैठाया । पानी पीने के बाद जब वे संयत हुए तब मैंने उनसे पूछा-" भाई साहब, बताइए कि कुछ समस्या है ,क्या।"


वे कहने लगे-" समस्या तो गंभीर है। आपके विद्यालय के एडमिशन इंचार्ज हमारे बेटे को हिंदी मीडियम में एडमिशन दे रहे हैं और यह तो शुरुआत से ही इंग्लिश मीडियम में पढ़ता रहा है। हम आपसे यही कहने के लिए आए हैं कि आप एडमिशन इंचार्ज से कहकर इंग्लिश मीडियम दिलवा दें।"


उसी समय एडमिशन इंचार्ज भी स्टाफ रूम में आ गये। मैंने उनसे कहा-"अच्छा हुआ, आप यहीं आ गये।ये भाई साहब अपने बच्चे के एडमिशन के लिए आए हैं। इनके बच्चे के प्रवेश में क्या समस्या है?"


वे कहने लगे- " समस्या केवल मीडियम को लेकर है।ये बच्चे को इंग्लिश मीडियम दिलवाना चाहते हैं। जबकि इनके बच्चे का हिंदी का ज्ञान भी अच्छा नहीं कहा जा सकता।"


इस पर वे सज्जन कहने लगे- " मैं अभी-अभी आपको बता रहा था कि ये शुरुआत से ही इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ता रहा है इसलिए इसकी हिंदी कमजोर है।आज के समय में सारी दुनिया में अंग्रेजी में ही अच्छा भविष्य है। हिंदी पढ़कर कुछ भी भला होने वाला नहीं।इसे तो आप इंग्लिश मीडियम में एडमिशन दे दें।बस यही आपसे निवेदन है।"


मैं ऐसे बहुत सारे अनुभवों से गुजरता रहा हूं कि लोग इस बात से स्वयं को ज्यादा गौरवान्वित महसूस करते हैं कि उनकी हिंदी कमजोर है।इस सीधा सा कारण उनका अंग्रेजी प्रेम है जबकि वे उस देश के नागरिक हैं जिसे हिंदुस्तान कहा जाता है, दुनिया के पांच महासागरों में एक को जिस देश से प्रभावित होने के कारण हिंद महासागर कहा जाता है। उसी देश के कई नागरिकों को न जाने क्यों उसी की भाषा में स्वयं को कमजोर बताने में एक गौरव की अनुभूति होती है।वे अपने घर में, पास-पड़ोस में, अपने प्रियजनों और अन्य लोगों के साथ बोलचाल में हिंदी का ही प्रयोग करते हैं। चूंकि अंग्रेजी एक विदेशी और अनजानी भाषा है जिसका सामान्य रूप से वे प्रयोग नहीं करते हैं। उसे सीखने के लिए वे जितना प्रयास करते हैं उससे उनकी पकड़ अंग्रेजी पर अच्छी नहीं हो पाती और हिंदी पर वे समुचित ध्यान नहीं देते जिससे वह कमजोर रह जाती है। इस प्रकार वे तो न तो अंग्रेजी के हो पाते हैं न ही हिंदी के।

हमारे देश में एक और परंपरा प्रचलित है कि किसी भी एक विषय के लिए पूरे वर्ष में एक दिन ,एक सप्ताह या एक पखवाड़ा नियत कर दिया जाता है जिसमें उस के विकास के बहुत ढोल पीटे जाते हैं। यह समय अवधि बीतने के बाद उसे कोई नहीं पूछता। हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी का विषय भी इन्हीं विषयों में से एक है। हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी एक ऐसी भाषा है जिसने दूसरी अनेक भाषाओं के शब्दों को अपने में समाहित कर लिया है और इससे यह और अधिक समृद्ध हुई है। धीरे धीरे उच्च शिक्षा में भी हिंदी का प्रयोग बढ़ रहा है लेकिन इस मामले में जितनी प्रगति अब तक हो जानी चाहिए थी वह अभी तक नहीं हुई है। इसके पीछे रहने के कारणों में उच्च शिक्षा में इसका समुचित प्रयोग न हो पाना है। हम सब यह भी जानते हैं कि किसी भी विषय को अपनी भाषा में सबसे ज्यादा अच्छे तरीके से समझा और समझाया जा सकता है। इस दिशा में पूरी ईमानदारी और दृढ़ निश्चय के साथ सार्थक कदम उठाए जाने की आवश्यकता है।


एडमिशन इंचार्ज ने इशारे से उस बच्चे को बुलाया जिसका प्रवेश होना था। उन्होंने बारी -बारी से उससे हिंदी और अंग्रेजी दोनों पुस्तकों से उसके पठन-वाचन का परीक्षण मेरे सम्मुख प्रस्तुत करवाया। उसके अंग्रेजी के पठन को देखा मुझे बड़ा ही आश्चर्य हुआ कि उनका यह कहना कि यह शुरुआत से ही इंग्लिश मीडियम में पढ़ता रहा है। जबकि उसका अंग्रेजी का ज्ञान बहुत मामूली था ।अंग्रेजी की तुलना में हिंदी काफी बेहतर थी। अंग्रेजी पाठन में जब उन्हें अपना बच्चा काफी अटकता हुआ प्रतीत हुआ तो वे कहने लगे कि मैं इसे ट्यूशन लगवा दूंगा।


एडमिशन इंचार्ज का कार्यभार संभाल रहे मेरे साथी अध्यापक ने उन्हें संबोधित करते हुए कहा-"बच्चे के सर्वांगीण विकास के लिए बच्चे की लगन के साथ-साथ माता-पिता और शिक्षकों की भूमिका बेहद महत्त्वपूर्ण होती है। इसके लिए नियोजन के साथ-साथ, धैर्यशीलता और सतत् अवलोकन की परम आवश्यकता है।जिन बच्चों ने उत्कृष्ट प्रदर्शन करना होता है वे कहीं भी दिखा सकते हैं।न ध्यान देने वाले बच्चे कहीं ध्यान नहीं दे पाते हैं और पिछड़ते चले जाते हैं।टीचर्स को ऐसे बच्चों का विशेष ध्यान देना होता है। बचपन से ही जो संस्कार बच्चे की प्रकृति में आ जाते हैं वे ही भविष्य को तय करते हैं।"


हम दोनों में से कोई बोले इससे पहले वे बोले-'' अब गर्मियों में मैं एक टीचर की सहायता लेने के साथ-साथ स्वयं भी ध्यान दूंगा और अंग्रेजी व हिंदी दोनों ही भाषाओं की अच्छी तैयारी करवाऊंगा। गर्मियों का अवकाश बीतने के बाद पुनः इसमें अपेक्षित ज्ञान आने के बाद ही के लिए प्रवेश के लिए लाऊंगा क्योंकि इस स्थिति में प्रवेश दिलाना इसके लिए काफी नुकसानदायक सिद्ध हो सकता है।"

इस निर्णय के साथ उन्होंने हम दोनों से विदा ली।उनके मुखमंडल के भावों से परिलक्षित हो रहा था कि समस्या का मूल समझ चुके हैं और इसका निराकरण करने हेतु कृत-संकल्पित हैं।


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