अपने अपने दायरे

अपने अपने दायरे

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मिनी ने अपना दुप्पटा ओढ़ा, किताबें हाथ में पकड़ी और चप्पल पहनते--पहनते माँ को आवाज़ दी।

मैं स्कूल जा रही हूं माँ ..।

ठीक है बेटा, संभलकर जाना।


आज वह अपने बारहवीं का परीक्षाफल यानी मार्कशीट लेने जा रही थी।

मिनी तिवारी, छोटे से कस्बे में रहने वाली, एक शुद्ध, संस्कारी ब्राह्मण परिवार की बेटी, आँखों में डाक्टर बनने के सपने संजोए हुए जीव विज्ञान की प्रबुद्ध छात्रा...परिवार अभी तक अपनी परिपाटी के अनुसार जीवन का निर्वहन कर रहा था। जहां न तो बेटियों को घर में बांधे रखने की ज़बरदस्ती थी और न ही असीमित उड़ान भरने की आज़ादी।

मिनी के पिताजी, शासकीय विद्यालय में एकांउंटेंट की नौकरी कर रहे थे। बच्चों की पढ़ाई लिखाई के प्रति बहुत सतर्क। शालीय शिक्षा के साथ अतिरिक्त ज्ञान बच्चों को प्राप्त हो.... इसके लिए किताबों, पत्रिकाओं की भी व्यवस्था किए रहते थे। सो घर में सभी बच्चे प्रबुद्ध थे।और साथ ही वे स्वयं बच्चों के साथ देश, समाज की विसंगतियों, समस्याओं के बारे में बात करते रहते थे, बताते रहते थे, उनसे पूछते रहते थे कि वे सभी अपने दृष्टिकोण से उनपर अपने विचार रखें।

मिनी बारहवीं की छात्रा थी। आगे की पढ़ाई कस्बे में रहकर संभव नहीं थी। पर उसे पूर्ण विश्वास था कि पिताजी उसकी आगे की पढ़ाई के लिए कोई न कोई व्यवस्था ज़रूर करेंगे और इसी विश्वास के दम पर बेहतरीन परीक्षा फल लाकर बहुत खुश थी। पर शाबाशी के साथ एक और संदेश उसकी प्रतीक्षा कर रहा था कि उसकी शादी की बात भी फाइनल हो चुकी है।


आँखों में बसे डाक्टर बनने के सारे सपने धड़ाम से एकबारगी ही टूट गए। 

पिताजी से सूनी आँखों से सवाल किया, आपने तो कहा था पिताजी... आप मुझे आगे भी पढ़ाऐंगे ? फिर यह इतनी जल्दी ब्याह की बात क्यों ?

पिताजी ने भी अपनी बात रखी कि बहुत अच्छे घर से रिश्ता हो रहा है और वे तुम्हारी आगे की पढ़ाई में बाधा नहीं बनेंगे, तुम शहर में ब्याही जा रही हो। जब तक चाहो, लगातार पढ़ सकती हो।


पर पिताजी, डाक्टर तो नहीं बन सकती हूं ?

देखो बेटा, मेरी इतनी ही क्षमता है क्योंकि मेरे पास बहुतों का उत्तरदायित्व है, मैं उसमें से तुम्हारे लिए आज के हिसाब से सर्वश्रेष्ठ को चुन रहा हूं। बेटा ब्रम्हांड का विस्तार तो अनंत है, संभावना का कोई अंत नहीं है पर संपूर्ण, असीम शक्तिशाली ब्रम्हांड का हर एक अणु का दायरा सीमित है, वह अपने दायरे से बाहर नहीं निकल पाता है।समझ लो वह अणु मैं हूं, लेकिन अपनी इस क्षमता में भी मैंने तुम्हारे लिए आगे बढ़ने की संभावना को देखा है।


मिनी बेटी थी, वह जानती थी कि पिताजी की वास्तविक परिस्थितियों के बारे में....वे भी सही थे। पर अब उसे भी भान हो चुका था कि उसकी संभावना अनंत आकाश के विस्तार में नहीं है। वह भी असीम संभावना के आकाश की वह छोटी सी अणु हैं जिसको अपने लिए निर्धारित दायरे में ही घूमना है, घूमने की स्वतंत्रता तो है पर बंधें हुए दायरे में कौन नहीं बंधा हुआ है अपने अपने दायरे में...


दायरे संस्कारों के, दायरे जीवनयापन के, दायरे बंधन के और तो और, दायरे स्वतंत्रता के... तेरे दायरे..मेरे दायरे ?

उसकी कहानी क्या नई है?


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