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Meeta Joshi

Inspirational Others

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Meeta Joshi

Inspirational Others

अंतर्मन

अंतर्मन

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ऐसा ही था उन दोनों का प्यार। एक रात तो एक दिन, एक सुबह तो एक शाम। वो जितनी चंचल और हँसमुख वो उतना ही धीर-गंभीर। हाँ, दिखने का बहुत सुंदर था और वो.. बिल्कुल सांवली, न नैन-नक्श की सुंदर न चेहरे में कोई आकर्षण। पर कहते हैं ना रिश्ता ऊपर से बन कर आता है, वही उनके साथ हुआ। बहुत से लड़के देखे।

माँ को हमेशा यही चिंता रहती, "इतनी पतली-दुबली है, शन्नो ना लंबाई न दिखने की सुंदर कौन करेगा इससे शादी?"

बाऊजी बड़े निश्चिंत, "देखना राजकुमार जैसा जमाई आएगा। लाइन लग जाएगी मेरी बेटी के लिए। "

माँ उनके विश्वास को देख अंदर तक पीड़ा से भर जाती और सोचती भगवान करे ऐसा ही हो।


शन्नो पापा की बात पर गर्व से भर जाती। ले देकर एक गुण था, जितनी बातों में होशियार उतनी ही पढ़ाई में भी।

कहते हैं किस्मत कब क्या रंग दिखाए कोई नहीं जान सकता। एक दिन अचानक पिता की सड़क दुर्घटना के कारण सिर में चोट आ गई और वो कोमा में चले गए। दोनों भाइयों में बड़ी शन्नो को कम उम्र में ही जिम्मेदारी का हाथ थामना पड़ा। माँ का दायाँ हाथ बन उसने बड़े होते-होते सब जिम्मेदारी उठा ली। पापा की बचत और उनकी पगार घर चलाने को काफी थी।

बी.एस-सी कर वो घर रह प्रतियोगिताओं की तैयारी करने लगी।

आज बहुत खुश थी। पापा के पास भागी आई, "पापा मेरा सरकारी नौकरी में चयन हो गया है। "सोच रही थी पापा अभी उठ खड़े होंगे।

शन्नो की सरकारी नौकरी लग गई। पापा को अपनी बिटिया पर पूरा विश्वास था लेकिन किस्मत में खुशी कहाँ थी!पापा को दिल का दौरा पड़ा और उनका देहांत हो गया।

दोनों भाई पढ़ाई में होशियार थे। एक को पिताजी की जगह नौकरी मिल गई।

माँ को शन्नो की शादी की चिंता सताने लगी। दुनिया भर के रिश्ते देखे, कहीं जन्मपत्री नहीं मिलती, तो कहीं छोटा कद, तो कहीं रंग आड़े आ जाता। अक्सर अकेले में पति की फ़ोटो के आगे खड़ी हो रोती, "आप तो कहते थे जी राजकुमार आएगा। मैंने अपनी तरफ से हर वो कोशिश कर ली है जैसा आप उसके लिए लड़का चाहते थे। अब मैं हिम्मत हार चुकी हूँ, अब जो उसकी किस्मत में लिखा होगा....। "


शन्नो व्यवहार से व हरकतों से बेफिक्र दिखाई देती पर माँ जानती थी बच्ची अंदर से बहुत पीड़ा में है।

अचानक एक दिन सरकारी नौकरी वाला एक रिश्ता आया, वो लोग जल्द ही शादी करना चाहते थे। लड़का बेहद खूबसूरत तथा शांत स्वभाव का था। माँ उसको देख समझ रही थी कि ये कभी हाँ नहीं कहेगा। पर सोच के विपरीत उन लोगों ने हाँ भी कह दी और शादी भी जल्द ही हो गई। बस एक ही समस्या थी। लड़के की पोस्टिंग दूसरे स्टेट में थी। गृहस्थ-जीवन की गाड़ी चल पड़ी। दो बेमेल इंसान कदम मिला, चलने लगे।

शन्नो जितनी बातों की पक्की और व्यवहारकुशल वहीं अनिकेत चुप-चाप रहने वाला, किसी चीज में प्रतिक्रिया न देता। पाँच-साल दूरियों में बीत गए। दो बेटियां ही शन्नो के जीवन का आधार थीं। अनिकेत से बहुत कम मिलना होता। जब जरूरत होती शन्नो बात कर लेती। बेटियों से भी ऐसा लगाव न था कि दूर रहते हुए भी अपनी मौजूदगी बनाए रखता। बेटियों के लिए सिर्फ एक रिश्ता था माँ का। छोटी-बेटी माँ जैसी चंचल और बड़ी पापा जैसी शांत पर भावनाओं को अभिव्यक्त करना जानती थी। माँ के अलावा दादा-दादी, ताऊ-ताई और नानी ये अहम रिश्ते थे।


उम्र बढ़ने के साथ लोग राय देने लगे, "क्या रखा है इस रिश्ते में! सालों में कभी आता है। बच्चियों से कोई मतलब नहीं। क्यों ढो रही है इस रिश्ते को!"


शन्नो स्वभाववश हँस कर कहती, "कौन करेगा मुझसे शादी, आप?" असल में वो हालात से समझौता कर चुकी थी। जैसा भी है आखिर उसका पति है और उसकी बेटियों का पिता। जिस इंसान का स्वभाव ही ऐसा हो तो उसे कौन बदल सकता है।

शन्नो छुट्टी मिलते ही बिन पति के ससुराल में चक्कर लगा आती। खूब समान भरना, सभी को स्नेह व आदर देना, सभी रिश्ते निभाती। शादी-ब्याह में पिता मिल भी जाते तो बच्चों को उनसे कोई विशेष लगाव न रहता।


पिता सा प्यार ससुर जी ने दिया। जब ससुराल जाती ससुर जी से लड़ पड़ती, "बाबू जी घर में रहा करो। देख रहे हो ना दुनिया में कैसी बीमारी फैली है, कहीं बीमारी की चपेट में न आ जाओ। "


छुट्टी बिता घर आई तो पता चला माँ कोरोना की चपेट में है और भाइयों का परिवार भी। लग गई सेवा में। कभी हॉस्पिटल, कभी दवाई, भागा-दौड़ी उसी की थी। इतने में ससुराल से खबर आई कि ससुर जी की हालत खराब है। बाबू चले गए। चाहते हुए भी वो दर्शन को न जा पाई। यहाँ घर में सभी की स्थिति चिंता जनक थी कि ससुराल से जेठानी और सास की कोरोना पॉजिटिव की रिपोर्ट आई।


जेठ और अनिकेत दोनों की रिपोर्ट नेगेटिव थी। किस्मत फिर आड़े आ गई। पता चला अनिकेत को चेस्ट-इंफेक्शन है। दो दिन बाद सांँस में दिक्कत होने लगी। बहुत लोग थे उसे संभालने वाले, लेकिन उसका पहला प्यार उसका पति वो कैसे रुक सकती थी। बिना कुछ सोचे चल पड़ी। अपने जीवनसाथी से कंधे से कंधा मिला चल, सात फेरों का वादा पूरा करने। हॉस्पिटल के चक्कर लगाते रहे। एक जगह आँक्सीजन का इंतज़ाम हुआ। यहाँ भी दूरी बरकरार रही। कोरोना पॉजिटिव निकले। पाँच दिन से शक्ल नहीं देख पाई। पता चला ऑक्सीजन मिलते ही स्थिति थोड़ा सुधरने  लगी है। आज पहली बार बेटियों से दूर उस प्यार की वजह से जिस प्यार ने, कभी उसकी महत्ता को समझा ही नहीं। कभी चिंता, फिक्र, प्रेम दर्शाया ही नहीं। पर शन्नो, उसने तो अनिकेत के बिना भी उसके परिवार का अपनों से बढ़कर किया। बच्चियाँ फ़ोन पर बात तक नहीं करती। बड़ी जिद्द से आज छोटी ने फोन ले कहा, "अपने आने की तारीख बता दो। हम आपसे नाराज हैं। "

फफक पड़ी। कैसे बताती, नहीं जानती थी कब जाना होगा! हॉस्पिटल से फ़ोन आया, अनिकेत की हालत खराब है। वहाँ पहुँची तो डॉ. ने कहा, "ये बिल्कुल सपोर्ट नहीं कर रहे है। जब तक इंसान जीने के लिए खुद प्रयास नहीं करता हम भी कुछ नहीं कर पाते। "


बहुत रिक्वेस्ट के बाद पीपीई किट पहन शन्नो को दूर से अनिकेत से मिलने की इजाजत दी गई।


वहाँ जा दूर से ही फ़ोन कर अनिकेत का हौसला बढ़ाने लगी। उसे उम्मीद बंधाती, "ऑक्सीजन तब काम करेगी जब आप हिम्मत रखोगे। आपको जीना है मेरे लिए। मैंने एक पत्नी होने के नाते आपसे कभी कुछ नहीं माँगा पर आज अपने बच्चों के पिता का साथ माँगती हूँ। आपको वापिस आना होगा हर हाल में, नहीं तो शन्नो अधूरी रह जाएगी। "


अगले दिन सूचना आई कि पेशेंट खतरे से बाहर है।

डॉ. ने कहा, "जब हम आस छोड़ने लगे थे तो इनके जीने के बुलंद हौसले को देख फिर कोशिश की गई, जो सफल हुई। आपकी बातों ने जादू कर दिया। "


माँ को लगा जैसे यमराज से अपने पति के प्राणों को वापिस लाने का वचन उसने पूरा किया।


अगले दिन जब मिलने गई तो अनिकेत को एक फ़ोन भिजवाया। बोली, "थोड़ा चल कर तो आओ, आपको देखना चाहती हूँ। "आज भी कांच की दीवार दोनों के दरमियाँ थी।


"ठीक हूँ। बच्चों को अकेले मत छोड़ना। तुम घर जाओ" कह अनिकेत धीरे-धीरे कदम बढ़ाता चला गया। शन्नो वहीं खड़ी उसे दूर तक देख मुस्कुराती रही। लोगों की बात उसके दिमाग में घूम रही थी, "शन्नो छोड़ दे, ये भी कोई रिश्ता है। "पर वो तो जानती थी मूक अभिव्यक्ति....यहीं से तो उसके प्यार की शुरूआत हुई थी।


इंसान खुश रहना चाहे तो हर हाल में रह लेता है क्योंकि खुश अंतर्मन से हुआ जाता है उसके लिए वजह ढूँढ़ने की जरूरत नहीं। शन्नो जैसे हर हाल में खुश रहने वाला इंसान छोटी-छोटी बातों में अपनी खुशियां ढूँढ ही लेता है। प्यार की अभिव्यक्ति के तरीके सबके अपने होते हैं। अनिकेत के पास शब्द नहीं थे पर उसके अन्तर्मन को महसूस करने वाली जीवन-संगिनी तो थी। चाहे आज के समय में शन्नो के एकतरफा प्यार को लोग बेवकूफी का नाम दें पर शन्नो किसी की बात से विचलित नहीं हुई। उसे अपना फर्ज़ और पति का प्यार दोनों निभाना था। प्रेम को अंतर्मन की गहराइयों से पढ़ा जाता है।



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