अंतिम इच्छा
अंतिम इच्छा
त्रिभुवनजी अपने घनिष्ठ मित्र राकेश को रोज की तरह मोर्निंग वॉक पर बुलाने के लिए उनके घर गए पर जब दो-तीन बार आवाज देने पर भी वो बाहर नहीं आए तो वो अंदर गए वहाँ सोफे पर राकेश मायूस से बैठे हुए थे घबराते हुए त्रिभुवन ने पूछा"क्या हुआ यार तुम्हारी तबियत तो ठीक है?
त्रिभुवन ने शांत स्वर में जवाब दिया "हां मैं ठीक हूँ पर तुम्हारी भाभी हमें छोड़कर चली गई।"
राकेश ने आश्चर्य से कहा"कब हुआ ये सब रात को तो भाभी से बात हुई थी?"
राकेश ने कहा" हाँ रात को तो वो ठीक थी सुबह जब मैं घूमने जाने के लिए तैयार हुआ और उसे उठाने की कोशिश की तो पता चला की वो अब इस दुनिया में नहींं रही है।"
त्रिभुवन ने कहा"तुमने अपने बेटे को खबर कर दी?"
"नहीं जिस बेटे ने जीते जी हमें नहीं पूछा उसे अब क्या खबर करना मैंने मेडिकल कॉलेज वालों को बुला लिया है वो वे तुम्हारी भाभी की मृत देह को शोध कार्य हेतु ले जाएंगे ।"रा केश ने कहा।
त्रिभुवन विस्मित होते हुए बोला"हौसले से काम लो और ये क्या भाभी का हम विधि विधान से दाह संस्कार करेंगे तुम्हारा बेटा यहाँ न सही हम तुम्हारे मित्र तो हैं।"
राकेश गंभीर स्वर में बोले" मैं ये बातें दुख के कारण नहीं कह रहा बल्कि अपने पूरे होशो हवास में कह रहा हूँ बल्कि मुझे तो इस बात का सन्तोष है, की तुम्हारी भाभी मुझसे पहले चली गई वह घुटनों से लाचार थी, चल नहीं पाती थी यदि पहले मुझे कुछ हो जाता तो उसका क्या होता, मैं तो रोज भगवान से ये प्रार्थना किया करता था कि उसे मुझसे पहले दुनिया से उठा ले और रही बात उनकी मृत देह को मेडिकल कॉलेज को देने की तो ये उसकी अंतिम इच्छा थी।"
